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बाबू साहेब का बड़ा दालान। 1 अप्रैल की तिथि और दोपहर का समय। सभा में बाबू साहेब के नेतृत्व में वर पक्ष के आठ और कुँवर साहब के नेतृत्व में वधु पक्ष के चार प्रतिभागी थे। सभा में शारीरिक दूरी का सख्त अनुपालन हो रहा था। चारों ओर पिन ड्रॉप साइलेन्स था।
बिजली आ गयी। पंखों के घड़घड़ाने से शांति भंग हुई। अशांति नहीं आई। बाबू साहब ने गतिरोध समाप्त किया …
“आपलोगों को शर्बत-चाय भी नहीं … “
कुँवर साहब ने अपने कोक को सेनेटाइज्ड टिश्यू से पोंछा और एक घूँट लेते हुए कहा, “कोई बात नहीं।“
“… तो डेट बढ़ा दिया जाए ना?”
“कितनी बार बढ़ाएँगे? पिछले साल 5 मई से 11 नवंबर किए और 11 नवंबर से फिर 13 मई …”
“लॉकडाउन …”
“लॉकडाउन अब अंग्रेजों की गर्मियों की छुट्टी जैसा हो गया है। अपने समय पर आ धमकता है।“
“फिर?”
“मैंने कोविड सरक्षा और प्रबंधन के WA विशेषज्ञों से विमर्श करके विवाह के लिए एक वृहद कोविड आचार संहिता तैयार की है।“
“वाह! तब मुझे कोई आपत्ति नहीं लेकिन कोविड आचार संहिता का अक्षरश: अनुपालन होना चाहिए।“
“बिल्कुल होगा।“
सभा समाप्त के बाद बाबू साहेब ने एक पल गँवाए बिना आचार-संहिता का अध्ययन आरम्भ कर दिया। वह जितना डीपली घुसते समधी जी के प्रति उनकी श्रद्धा उतनी ही बढ़ जाती, ”ऐसी सख्त आचार संहिता तो मैं स्वयं भी नहीं बना सकता था।“ शाम में उन्होंने अपने चेला छिल्टू को मेहमानों की सूची देकर उन्हें फोन पर आमंत्रित करने को कहा। आचार-संहिता का हवाला देते हुए मेहमानों को यह भी बताने को कहा कि शादी के तीनों मुख्य कार्यक्रम छेंका, तिलक और विवाह तीनों 13 मई को ही संपन्न होंगे।
“7-8 लोग घर के हैं, 4-5 पट्टीदारी के। कुल 21 बाराती जाने हैं। फूफाजी को बुलाना बेकार है। आकर बस खिसियाना ही तो है उनको।“
“वह शादी में आकर फूफवत खिसियाएँगे। नहीं बुलाने पर दुखवत खिसिया जाएँगे। लिस्ट फाइनल है, छिल्टू। बेसी दिमाग मत लगाओ। उन्हें आचार-संहिता की एक कॉपी भी भेज देना ताकि वह तैयारी कर सकें। हमारी तरफ से वही पर्यवेक्षक होंगे।“
12 मई की शाम फूफाजी सिंह साहब आ पहुँचे। आते ही उन्होंने अपना चाइनीज थर्मामीटर अपने ही माथे पर ‘टूँ’ बजाया और जोर से बोले – 97.5। फिर उन्होंने सबका बुखार नापा और आचार संहिता अनुपालन पर संतोष जताया। फुफवत खिसियाने की रस्म के लिए उन्होंने कुछ और बहाने खोज लिए। सोने से पहले उन्होंने छिल्टू को निर्देश दिया कि किसी के खाँसने-छींकने की सूचना उन्हें तत्काल दी जाए।
13 मई की दोपहर। मातृपूजा आरम्भ होने से पहले फूफाजी ने सबका बुखार तीन बार नापा और लोगों को कोविड आचार संहिता चार बार बताई। मातृपूजा के लिए बाबू साहेब और उनकी पत्नी छह फीट की दूरी पर बैठाए गए। दोनों के धोती और आँचल का गँठजोड़ करने के लिए एक अतिरिक्त गमछी लगी। पंडित जी उन दोनों के सामने छह फीट की दूरी पर ऐसे बैठे कि तीनों के बीच एक त्रिभुज बन गया। दूर बैठा नाई बुलाने पर आता और कार्य संपन्न कर अपनी जगह चला जाता। पंडित जी से छह फीट दूर बैठे फूफाजी फालतू बातों पर फूफवत खिसियाते रहे। सबको काढ़ा पिलाकर उन्हें शांत किया गया।
फूफाजी ने बारात जाने वाली एक कार व दो बसों और उसके ड्राइवरों को विधिवत सैनेटाइज किया। ड्राइवरों के साथ गाड़ियों का भी बुखार नापा। नहवावन और चुमावन के लिए फूफाजी ने महिलाओं के लिए मास्क और फेसशील्ड के अतिरिक्त दस्ताने भी अनिवार्य कर दिए। दूल्हे के साथ कुँवरपत का भात खाने वाले लौंडों को फूफा जी ने ना के बराबर दही लेने को कहकर हड़काया। फूफाजी के भड़कने से पहले विटामिन सी सप्लीमेंट नींबू का शर्बत सबको दे दिया गया।
अब फूफाजी को रस्म के अनुसार दूल्हे को जोड़ा पहनाना था। उन्होंने दूल्हे को शेरवानी और जूते स्वयं पहनने को कहा। रस्म पूरा करते हुए उन्होंने उसे डबल मास्क और सिंगल फेसशील्ड पहनाया। बाबू साहेब आचार संहिता के अनुसार फूफाजी का नेग देने में हिचक रहे थे। फूफाजी ने नियमों को शिथिल कर दिया और उन्होंने नेग में मिले एक हजार एक रूपये सैनेटाइज करके अपने बटुए में डाल लिया।
बिना बैंड बाजे के बारात निकली। आठ आठ फीट की दूरी पर लगी गाड़ियों में बैठने से पहले बाराती छह फीट की दूरी बनाकर चल रहे थे। एक उत्साही बाराती ने कोविड आचार संहिता के विरूद्ध डीजे बजा दिया। फूफाजी ने आपत्ति नहीं की। दरअसल, वह अपनी सलहजों के साथ ठुमका लगाना चाहते थे। आचार संहिता की धज्जियाँ उड़ाने की हिम्मत नहीं हुई तो फूफाजी ने सबकी तरह अकेले ही नाच लिया। फुफवत खिसियाने में उन्होंने चीन को भद्दी भद्दी गालियाँ दीं। अपना भाव बढ़ाने के लिए फूफा जी नियम के विरूद्ध दूल्हे की कार में बैठ गये। दोनों बसों में पंडित और नाई सहित आठ-आठ लोग बैठे, तीन ड्राइवर जोड़कर 21 हो गये। लिहाजा, छिल्टू सहित तीन सजे-धजे बाराती छोड़ दिए गये।
दुआरी-बारात से पहले फूफा जी ने आचार संहिता अनुपालन का जायजा लिया। तभी किसी ने डीजे बजा दिया। बारात में सबसे छह फुट आगे चलते हुए फूफाजी चिल्लाये, “रुल इज रुल।” शायद फूफाजी का अकेले नाचने का मन नहीं था या वह वधु पक्ष के पर्यवेक्षक द्वारा उन पर चढ़ बैठने की आशंका से ग्रस्त थे।
उधर वधु पक्ष आचार संहिता के अपने पर्यवेक्षक, वधु के जीजाजी के नेतृत्व में वर पक्ष का स्वागत करने के लिए आगे बढ़ा। दोनों पक्ष छह-सात फीट की दूरी पर खड़े हो गये। दोनों पर्यवेक्षकों ने आगे बढ़कर तीन फीट की दूरी से एक दूसरे का बुखार नापा। 97 और 97.5 की दो तेज आवाजें उभरीं। इसके बाद दोनों पर्यवेक्षकों ने दूसरे पक्ष के एक-एक प्रतिभागी का बुखार नापा और अपने अपने पक्ष में किसी के नहीं खाँसने का मौखिक हलफनाम दिया। जीजाजी ने बारातियों का मास्क और फेसशील्ड देखा और उनकी संख्या गिनकर तेज आवाज में 21 बोला। फिर साराती पक्ष ने बारातियों को सैनेटाइज किया हुआ माला सादा संटी के सहारे पहना दिया।
दरवाजे पहुँचकर फूफाजी फॉर्म में आ गये। उन्होंने वधु पक्ष के नर-नारी की गिनती करके जोर से 21 कहा। वह मास्क और फेसशील्ड से संतुष्ट दिखे। खाने-पीने में कोविड आचार संहिता का मुआयना करते हुए वह बड़बड़ा रहे थे कि कुछ भी गड़बड़ दिखा तो मेरा भोजन मेरे अटैची में रखा है। बार-बार सैनेटाइजर के छिड़काव के बीच द्वार पूजा, छेंका और तिलक के कार्यक्रम संपन्न हुए। दूल्हे और दुल्हन ने छह फीट की दूरी से एक दूसरे को रंगीन संटी से सैनेटाइज्ड माला पहनाया। फोटोग्राफर ने उन्हें मास्क और फेसशील्ड हटाने को कहा तो फूफा जी गरज पड़े, “रूल इज रूल।“
पनपियाव करके बाराती जनवासे चले गये। जनवासे में आज्ञा की विधि में दो पतली लाठियों में बँधा लोटा घुमाया गया। फूफाजी की तानाशाही में दब्बू बने भसुर जी ने कन्या निरीक्षण में सिल्क की दर्जनों साडियाँ, सलवार-सूट, 21 नग आभूषणों के अतिरिक्त 51 मास्क और 21 फेसशील्ड भी चढ़ाए। गीतों वाली गाली पर फूफाजी से लेकर भसुर जी तक सब मोहित थे। उसके बाद बारातियों ने भोजन किया।
दुल्हे के शादी के लिए जाने के बाद जनवासे में सुतल भगत का नाच होने लगा। जीजाजी ने फिर दुल्हे का बुखार नापा। तीन चार सालियों ने छह फीट दूर से दूल्हे की आरती की। दूल्हे के मचलते अरमान सालियों-सलहजों के मास्क और फेसशील्ड से कुचले जा रहे थे। दूर खड़ी सास दूल्हे की बलाएँ ले रही थी लेकिन दामाद को पूरा न देख सकने की कसक मन में थी। जीजाजी की सख्त निगरानी और फूफाजी की गश्ती के बीच लावा मिलाने, भँवर घुमाने और सिन्दूर दान आदि विधियाँ संपन्न होती रहीं। फूफाजी सोने चले गये।
दूल्हा के जूते चोरी हो गये। अब कोहबर में जाना था। पहले वधु को कोहबर में भेजा गया। पीछे से वर नंगे पैर चला। सालियों ने उसे दरवाजे से चार फीट पहले ही जूता चोरी के नेग और कोहबर की फरमाइश के लिए रोक दिया। एक साली ने चुहल किया, “मास्क के उपर से ई समझ नहीं आता कि जीजाजी का मोंछ है या बकरी का पोंछ।“ साली-सलहजों के जोरदार कहकहे पर दूल्हे की हँसी रूक नहीं सकी। हँसते-हँसते उसे खाँसी आ गयी। दूल्हे ने सफाई दी, “अरे … हँसने से …” एक साली ठोंठियाई, “जीजाजी करत बारन … ई कइसन चोना … जीजाजी के खोंखी खोंखी … आ हमनी के करोना।”
पर्यवेक्षक जीजाजी आ धमके, “अब तो कोहबरे में क्वोरंटीन होगा।“ फूफाजी भी आए और उन्होंने दूल्हे के पक्ष में ‘पार्टली बाय लॉ पार्टली बाय प्रैक्टिस’ का जुमला उछाला। जीजाजी चढ़ बैठे, “रूल इज रूल।“ कोहबर गृह में आठ फीट की दूरी पर बैठे दुल्हा-दुल्हन के बीच पारदर्शी पर्दा लगाया गया। साली-सलहजों को खिड़की के पास मर-मजाक के लिए बैठाया गया और शुरू हुआ कोहबर में क्वोरंटीन या क्वोरंटीन का कोहबर। कोहबर के बाद वहीं दूल्हे को अकेले क्वोरंटीन कर दिया जाना था।
जूते चुराने का नेग 5001/ में सेटल हुआ। कोहबर की फरमाइश पर दुल्हे ने राग गर्दभ छेड़ा, “ … दरम्यां तेरे-मेरे इक काँच की दीवार है … देख तो सकते हैं लेकिन कुछ कर सकते नहीं …” वाह-वाह के बीच दूल्हे की WA बीप बजी। एक साली चहकी, “दीदी का मेसेज है …“ दूल्हा सकुचाते हुए बोला, “शब्दों में हेरफेर का ताना मिला है, … देख तो सकते हैं लेकिन बात कर सकते नहीं।“ जोरदार ठहाकों के बीच दुल्हन भी हँसने लगी। हँसते-हँसते उसने खाँस दिया।
दूल्हे का छोटा भाई दौड़कर फूफा जी को बुला लाया। जीजाजी रक्षात्मक होकर हँसी का हवाला देने लगे। फूफाजी ने उन्हें ‘रूल इज रूल’ का हूल देकर शांत कर दिया। फिर जीजाजी और फूफाजी के बीच गंभीर मंत्रणा हुई। फूफाजी-जीजाजी समझौते के अनुसार विदाई की कारूणिक विधि संपन्न हुई।
दूल्हा अपनी दुल्हन लिए घर पहुँचा। समझौते के अनुसार उन्हें एक ही कमरे में क्वोरंटीन कर दिया गया। कोविड लक्षण दिखने पर जाँच होनी तय हुई थी। आज 16 मई तक उनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं दिखे। फूफाजी जामा-धोती का नेग लेकर वापस जा चुके हैं।
मंडली की ओर से नव दंपत्ति को कोरोना टीका लगवा कर कोरोना मुक्त रहने की और उनके सुखी दाम्पत्य जीवन की मंगल कामना।
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