Sunday, December 8, 2024
HomestatesUttar Pradeshक्या एमपी जाकर एनकाउंटर से बच गया विकास दुबे? जानें- गिरफ्तारी और...

क्या एमपी जाकर एनकाउंटर से बच गया विकास दुबे? जानें- गिरफ्तारी और सरेंडर में अंतर – difference between surrender and arrest in police station court vikas dubey safe zone encounter

  • पुलिस के सामने सरेंडर का प्रावधान नहीं
  • पुलिस आरोपी की गिरफ्तारी ही करती है
  • सरेंडर कोर्ट के सामने किया जाता है

कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की मौत का मुख्य आरोपी गैंगस्टर विकास दुबे पुलिस की गिरफ्त में आ गया है. 2-3 जुलाई की दरमियानी रात वारदात को अंजाम देने के बाद से ही विकास दुबे फरार चल रहा था. 9 जुलाई की सुबह विकास दुबे मध्य प्रदेश के उज्जैन से पकड़ में आया. इसके बाद से ही इस बात पर बहस चल रही है कि क्या ये सरेंडर है या गिरफ्तारी? इस मसले पर aajtak.in ने यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह से बात की, जिसमें उन्होंने तफ्सील से बताया कि सरेंडर और गिरफ्तारी में क्या फर्क होता है.

गिरफ्तारी

यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह के मुताबिक, ”सरेंडर नॉर्मली कोर्ट के सामने होता है, पुलिस के सामने सरेंडर का कोई प्रोविजन नहीं है. पुलिस के सामने गिरफ्तारी ही होती है. गिरफ्तारी जुबान से, छूकर, जोर-जबरदस्ती करके की जाती है. यानी गिरफ्तारी के तीन प्रकार होते हैं.

जुबान से गिरफ्तारी मतलब- पहले पुलिस आरोपी को बिना टच किए कहेगी कि आप गिरफ्तार हैं. बता दें कि ऐसा फिल्मों भी दिखाया जाता है जब पुलिस आरोपी से कुछ दूरी पर खड़े रहकर ही कहती है ‘यू आर अंडर अरेस्ट’. विक्रम सिंह के मुताबिक, इसके बाद पुलिस आरोपी को टच करेगी और कहेगी हमने आपको अरेस्ट किया और टच करके छोड़ देगी. (छोड़ने का मतलब उसे शरीर से नहीं दबोचे रखेगी). लेकिन अगर आरोपी हुकुम-उदूली करे यानी बात न माने तो पुलिस उसके ऊपर बल प्रयोग करके गिरफ्तार कर सकती है. इन तीन तरीकों में से किसी भी तरह गिरफ्तारी की जाती है और इसके बाद 24 घंटे के अंदर कानून के तहत आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है.

सरेंडर

पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह के मुताबिक, ”कुछ आरोपी थाने में जाने से परहेज करते हैं. वो कहते हैं कि थाने में मारपीट होती है, इसलिए वो अदालत जाते हैं. इसे हाजिर अदालत कहा जाता है. हाजिर अदालत का मतलब यही होता है कि अदालत के सामने हाजिर हो गए. इस दौरान पुलिस अदालत के सामने कह सकती है कि हमें तफ्तीश करनी है, हमें पुलिस कस्टडी रिमांड दीजिए. 3 से लेकर 14 दिन तक रिमांड मिलती है. पुलिस की मांग पर 3, 7 या 14 दिन की रिमांड मिल जाती है. इसके बाद आरोपी से पूछताछ की जाती है, मेडिकल एग्जामिनेशन होता है. जब पुलिस आरोपी को दोबारा कोर्ट में दाखिल करती है तो कोर्ट में इस दौरान अगर आरोपी के बदन पर कोई चोट के निशान हों तो ‘हंगामा-ए गिरफ्तारी में मुनासिब चोट पुहंची’ कह दिया जाता है. क्योंकि मारपीट की इजाजत नहीं होती है, लेकिन आरोपी के साथ ये मारपीट निश्चित ही पुलिस की तरफ से की जाती है.”

सरेंडर-गिरफ्तारी का महीन अंतर

पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह के मुताबिक, ”कुछ पुलिस अफसर ऐसे होते हैं जो मारपीट नहीं करना चाहते तो वो आरोपी से कहते हैं कि हम तुम्हें छुएंगे नहीं, तंग नहीं करेंगे, तुम सरेंडर का एक ड्रामा कर दो. ये भी कानूनी है, लेकिन ये जायज इसलिए नहीं होता क्योंकि सरेंडर होकर भी ये गिरफ्तारी ही होती है, जैसे विकास दुबे के केस में हुआ है.”

सरेंडर करने में आरोपी को क्या फायदा?

विक्रम सिंह का कहना है कि अगर आरोपी सरेंडर करता है तो इसमें ये सहूलियत होती है कि वो तुरंत जेल चले जाते हैं, मारपीट से बच जाते हैं और अपने मुकदमे की पैरवी करते हैं. एनकाउंटर का शिकार होने के भी कम चांस रहते हैं.

विकास दुबे को क्या फायदा मिला?

विक्रम सिंह के मुताबिक, ”विकास दुबे को सबसे बड़ा फायदा ये मिला कि फर्जी मुठभेड़ में मध्य प्रदेश में नहीं मारा गया, क्योंकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता है जब किसी दूसरे राज्य की पुलिस आरोपी का एनकाउंटर करती हो. दूसरे राज्य की पुलिस हमेशा यही सोचती है कि वो क्यों अपने सिर पर इतनी जहमत ले. हालांकि, किसी वॉन्टेड या इनामी बदमाश को गिरफ्तार करने का हक हिंदुस्तान की किसी भी पुलिस के पास होता है.” यानी विकास दुबे अगर यूपी में कहीं भी खुद के सरेंडर करने की कोशिश करता तो शायद उसका अंजाम कुछ और होता.

एनकाउंटर किस आधार पर करती है पुलिस?

विक्रम सिंह के मुताबिक, ”आईपीसी की धारा 94 से 106 के तहत आत्म रक्षा यानी सेल्फ डिफेंस का अधिकार दिया गया है. पुलिस भी इसी अधिकार का इस्तेमाल करती है. अगर पुलिस किसी अपराधी को मार गिराना चाहती है तो अपनी हिफाजत के नाम पर वो फायरिंग कर सकती है.” पूर्व डीजीपी ने ये भी बताया कि ट्रांजिट रिमांट के दौरान भी पुलिस एनकाउंटर कर देती है. ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं. बता दें कि उज्जैन पुलिस ने बिना केस दर्ज किए ही विकास दुबे को यूपी पुलिस एसटीएफ के हवाले कर दिया है.

UP के मोस्ट वांटेड विकास दुबे को हमने गिरफ्तार किया, 8 घंटे की पूछताछ: उज्जैन पुलिस

वहीं, इस पूरे मसले पर सीनियर एडवोकेट रीता कोहली का कहना है कि अगर कोई यूपी का अपराधी है और उसने मध्य प्रदेश में सरेंडर किया या गिरफ्तारी दी तो वो कोर्ट में इसका लाभ लेने की कोशिश करेगा. साथ ही वो अधिकारिक तौर पर एमपी पुलिस के रिकॉर्ड में आ जाएगा. हालांकि, दूसरी तरफ उज्जैन के एसपी ने बताया कि उज्जैन में विकास दुबे के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया गया है. बिना मामला दर्ज किए ही उज्जैन पुलिस ने उसे यूपी पुलिस की एसटीएफ को सौंप दिया है. ऐसे में विकास दुबे के लिए कानून तौर पर ये एक झटका भी है.

आजतक के नए ऐप से अपने फोन पर पाएं रियल टाइम अलर्ट और सभी खबरें. डाउनलोड करें

  • Aajtak Android App
  • Aajtak Android IOS




Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

RECENT COMMENTS

casino online slot depo 10k bonus new member slot bet 100