मोदकपाल थाना क्षेत्र के मुरकीनार में सीआरपीएफ की 229 बटालियन के कैंप से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर सीआरपीएफ के जवानों और नक्सलियों के बीच कथित मुठभेड़ का दावा पुलिस ने किया. इस मुठभेड़ पर ग्रामीणों ने सवाल उठाया और मोदकपाल थाने में इसकी जांच के लिए लिखित शिकायत भी की. बीजापुर के एसपी कमलोचन कश्यप का कहना है कि ग्रामीण की मौत मामले में शिकायत मिली है. पुलिस इसकी निष्पक्ष जांच करेगी.
घटना के प्रत्यक्षदर्शी ओमनपल्ली किस्टैया.
‘हम मना कर रहे थे और वे गोलियां चला रहे थे’बीजापुर पुलिस ने दावा किया कि मुठभेड़ सुबह करीब 4 बजे हुई. इसी दिन दोपहर करीब 1 बजे ग्राउंड जीरो पर पहुंचे न्यूज 18 छत्तीसगढ़ के बीजापुर सहयोगी मुकेश चन्द्राकर ने प्रत्यक्षदर्शियों से बात की. घटना के प्रत्यक्षदर्शी और यालम धरमैया के चार साथियों में शामिल ओमनपल्ली किस्टैया ने बताया- ‘हम लोग पक्षियों का शिकार कर रहे थे और महुआ भी बीन रहे थे. इसी दौरान जवान आए और हमें घेर लिया. हम खुद को बचाने के लिए उन्हें अपने बारे में बताने की कोशिश कर रहे थे, इतने में उधर से गोलियां चलने लगीं. दुब्बक कन्नैइया की मौके पर ही मौत हो गई.’
क्रॉस फायरिंग की थियोरी पर सवाल क्यों?
दरअसल ये पहला मौका नहीं है, जब बस्तर में पुलिस और नक्सलियों के बीच कथित मुठभेड़ के दौरान क्रॉस फायरिंग में ग्रामीण मारे गए हों और इसके बाद एकतरफा फायरिंग का आरोप सुरक्षा बल के जवानों पर लगा हो.
बीजापुर के माेदकपाल में वारदात स्थल पर निरिक्षण करते ग्रामीण.
केस-1: सारकेगुड़ा में 17 ग्रामीणों की मौत
बीजापुर के सारकेगुड़ा और सुकमा जिले के कोट्टागुड़ा और राजपेंटा गांव से लगे घने जंगलों में सुरक्षाबल के जवानों ने 28-29 जून 2012 की मध्यरात कथित मुठभेड़ में 17 नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया था. इसके अलावा इस घटना में 10 ग्रामीण घायल हुए थे. मारे जाने वालों में सात नाबालिग भी शामिल थे. आदिवासी ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि वे बीज पंडूम त्योहार मनाने के लिए बैठक कर रहे थे, जहां सुरक्षाबलों ने फायरिंग की. वहां कोई नक्सली नहीं थे. मामले में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया. न्यायिक जांच आयोग ने नवंबर 2019 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें मुठभेड़ को फर्जी बताया गया और सुरक्षा बल के जवानों द्वारा ग्रामीणों पर एकतरफा फायरिंग की बात कही गई. ये एक तरह का पैनिक फायर (दहशत या घबराहट में जवानों द्वारा की गई फायरिंग) था.
केस-2: एड़समेटा मामले की हो रही सीबीआई जांच
बीजापुर के एड़समेटा में 17-18 मई 2013 की मध्यरात्री में 3 नाबालिग समेत 8 लोगों की मौत गोलियां लगने से हुईं. सुरक्षा बल के जवानों का दावा था कि वे सर्चिंग के लिए निकले थे. इसी दौरान नक्सलियों ने उनपर हमला कर दिया. पहले तो कहा गया कि घटना में 8 नक्सली मारे गए हैं, लेकिन जब इस मुठभेड़ पर सवाल उठे और जांच की मांग की गई तो कहा गया कि क्रॉस फायरिंग में ग्रामीणों की मौत हुई है. इस मामले में कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई जांच कर रही है. इस मामले में भी शिकायत की गई है कि सुरक्षा बल के जवानों ने ग्रामीणों पर एकतरफा फायरिंग की.
सांकेतिक फोटो.
केस-3: दिन में साथ खेला, रात में क्रॉस फायरिंग में मौत
बीजापुर के तिम्मापुर सीआरपीएफ कैंप के 100 मीटर के दायरे में 12 दिसंबर 2017 में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ का दावा जवानों ने किया. इस मुठभेड़ में तत्कालीन ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष सुकलू पुनेम के बेटे नंदू पुनेम की मौत क्रॉस फायरिंग में हो गई. सुकलू पुनेम न्यूज 18 से बातचीत में कहते हैं कि उस रात मुठभेड़ नहीं हुई थी. मेरा बेटा अपने चचेरे भाई कक्केम सुक्कू के साथ रात में पैरा के ढेर के पास आग ताप रहा था. इसी दौरान जवान आए और उसपर फायरिंग कर दी. जबकि दिन में मेरा बेटा कैंप के उन्हीं जवानों के साथ क्रिकेट खेलता था. उनके कहने पर जरूरत के सामान भी उन्हें देता था. मेरे बेटे की मौके पर मौत हो गई और कत्यम के पैर में गोली लग गई. कत्यम का इलाज छह महीने तक चला इसके बाद उसकी भी मौत हो गई. ये क्रॉस फायरिंग में नहीं बल्कि पैनिक फायरिंग में मारे गए.
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तीन साल में 243 आम नागरिकों की हत्या
लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में साल 2017 से 2019 के बीच नक्सल हिंसा की वारदातों में 223 नागरिक मारे गए. आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में कुल 373 नक्सल वारदातें हुईं. इनमें 70 आम नागरिकों की जान गई. सुरक्षा बलों के 60 जवान शहीद हुए. जबकि 80 नक्सलियों को मारे व 796 को गिरफ्तार करने का दावा किया जा रहा है. साल 2018 में कुल 392 नक्सल वारदातें हुईं. इनमें 98 आम नागरिकों की जान गई. सुरक्षा बलों के 55 जवान शहीद हुए. जबकि 125 नक्सलियों को मारे व 931 को गिरफ्तार करने का दावा किया जा रहा है.
साल 2019 में कुल 263 नक्सल वारदातें हुईं. इनमें 55 आम नागरिकों की जान गई. सुरक्षा बलों के 22 जवान शहीद हुए. जबकि 79 नक्सलियों को मारे व 367 को गिरफ्तार करने का दावा किया गया है. बस्तर के एक आला पुलिस अधिकारी के मुताबिक जनवरी 2020 से 17 अप्रैल तक 20 आम नागरिकों की मौत नक्सल हिंसाओं में हो चुकी है. यानि की 2017 से अब तक नक्सल हिंसाओं में 243 आम नागरिक मारे गए हैं. हालांकि इन आंकड़ों में नक्सलियों द्वारा सीधे हत्या, क्रॉस फायरिंग, आईईडी की चपेट में आने से मौत के मामले शामिल हैं.
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आदिवासियों पर निशाना
बस्तर की सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी सुरक्षा बल के जवानों पर आदिवासियों के उत्पीड़न का खुलकर आरोप लगाती हैं. सोनी सोरी कहती हैं- ‘एकतरफा फायरिंग में ग्रामीणों को मारकर सुरक्षा बल के जवान उसे क्रॉस फायरिंग का नाम दे देते हैं. 2 फरवरी 2019 को सुकमा के गोदलगुड़ा में तीन महिलाओं पर फोर्स ने फायरिंग कर दी. इसमें एक की मौत हो गई. 11 जनवरी 2018 को दंतेवाड़ा में बच्चों पर फोर्स ने फायरिंग कर दी. इसमें एक बच्चे की मौत हो गई. दरअसल फर्जी मुठभेड़ में जब फोर्स ग्रामीणों को मार देती है तो पहले उन्हें नक्सली साबित करने की कोशिश करती है और जब नक्सली साबित नहीं कर पाती है तो उन्हें क्रॉस फायरिंग में मारा जाना बता देती है. क्रॉस फायरिंग के दर्ज किए गए ज्यादातर मामले पैनिक फायरिंग के होते हैं.’
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क्रॉस फायरिंग और पैनिक फायरिंग में फर्क
बिलासपुर हाई कोर्ट में प्रमुख रूप से आदिवासी उत्पीड़न के मामलों की पैरवी करने वाली अधिवक्ता शालिनी गेरा न्यूज 18 से बातचीत में कहती हैं- ‘क्रॉस फायरिंग और पैनिक फायरिंग में बहुत अंतर है. क्रॉस फायरिंग वो है, जिसमें दो गुटों में गोलीबारी हो रही हो और उन गोलियों का शिकार कोई तीसरा पक्ष हो जाए. जबकि पैनिक फायरिंग दहशत या घबराहट में आकर की जाती है.’
अधिवक्ता शालिनी कहती हैं- ‘क्रॉस फायर का जो बचाव है, यह सुरक्षा बल मौके को देखते हुए प्रयोग में लाते हैं. उदाहरण के रूप में 2012 के सारकेगुड़ा कांड में, जिसमें 17 ग्रामीण मारे गये थे. पहले तो सुरक्षा बलों ने सभी को खूंखार नक्सली करार किया. जब खबर आई कि मृतकों मे से 10 वर्ष की बच्ची सहित 7 नाबालिग़ थे तो सुरक्षा बलों ने कहा कि घमासान फायरिंग के दौरान नक्सली ग्रामीणों की आड़ लेकर भाग रहे थे, और ऐसे में कुछ ग्रामीण नक्सलियों की गोलियों से ही क्रॉस फायरिंग में मारे गये हैं, पर न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट स्पष्ट कहती है कि घटना स्थल पर किसी भी नक्सली का होना प्रमाणित नहीं किया गया है और फायरिंग एक तरफा थी, और केवल सुरक्षा बलों ने ही की थी. बस्तर में ऐसे कई उदाहरण हैं.’
अपराध को कम करने की कोशिश
बस्तर में लंबे समय तक सक्रिय रहे जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार न्यूज 18 से बातचीत में कहते हैं- ‘किसी भी संघर्ष में सरकारी सिपाहियों द्वारा जनता पर अगर घबराहट में गोली चलाई जाती है, जिसमें निर्दोष लोगों की मृत्यु होती हो तो वह एक गंभीर मामला है. इसे सुरक्षा बल पैनिक फायर कहते हैं, लेकिन मामला इतना सीधा नहीं है. कई बार जिसे पैनिक फायर कह कर सिपाहियों के अपराध को कम करने की कोशिश की जाती है, वह दरअसल जान बूझकर की गई कार्रवाई होती है.’
हिमांशु कुमार कहते हैं- ‘आंतरिक सुरक्षा की समस्या से जूझ रहे बस्तर जैसे संवेदनशील इलाकों में सिपाही अपने साथियों की मौत से गुस्से में होते हैं. उनके दिमाग़ में अपनी जान को लेकर भी डर होता है, ऐसे में सिपाही अपने आसपास की जनता को युद्द में रत दूसरे पक्ष का समर्थक मानने लगते हैं और बदला लेने के लिए जनता को सबक सिखाने के लिए उन्हें मार डालते हैं. मैंने इस तरह के अनेकों मामलों को अदालत में उठाया है.’
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कैसे रूकेगा पैनिक फायर?
छत्तीसगढ़ सरकार के पूर्व अपर मुख्य सचिव (गृह) और रिटायर्ड आईएएस बीकेएस रे न्यूज 18 से बातचीत में कहते हैं- ‘नक्सल मोर्चे पर तैनात सुरक्षा तंत्र को खूफिया तंत्र से सुनिश्चित करना चाहिए कि कौन नक्सली है और कौन ग्रामीण. इसके अलावा वहां तैनात जवानों को विशेष ट्रेनिंग देने की जरूरत है, जिसमें उन्हें बस्तर की परिस्थितियों और वहां की संस्कृति की जानकारी भी दी जाए. एक समय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किए गए केपीएस गिल ने भी यही सुझाव दिया था. जवानों को ये समझाना होगा कि उन्हें वहां की जनता की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया गया है. उन इलाकों में तैनात कई जवान अपरिपक्व होते हैं और आवेश या उत्तेजना में आकर ग्रामीणों को निशाना बना लेते हैं. ग्रामीणों पर अनावश्यक फायरिंग करने वालों पर कड़ी कार्रवाई भी होनी चाहिए.’
सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार भी कहते हैं- ‘पैनिक फायर रोकने के लिए सिपाहियों के प्रशिक्षण की ज़रूरत है. सिपाहियों को पता होना चाहिए कि जिस संघर्ष में उन्हें भेजा जा रहा है उसके सामाजिक राजनैतिक और आर्थिक आयाम क्या क्या हैं? जनता किस तरह उसमें फंसी हुई है और सरकार का लक्ष्य जनता की रक्षा का है ना कि जनता को मारना. इसके अलावा इस तरह की घटना में शामिल सिपाहियों की हरकतों की जांच और दोषी पाए जाने पर कार्रवाई की जरूरत है.’
बीजापुर के पामेड़ में तैनात सुरक्षा बल का जवान. फाइल फोटो.
जनता की रक्षा करना ही लक्ष्य है
बस्तर संभाग के पुलिस आईजी सुंदरराज पी का कहना है- ‘साल में एक या दो ही ऐसी घटनाएं होती हैं, जिसमें नक्सलियों से मुठभेड़ के दौरान क्रॉस फायरिंग में कोई ग्रामीण हताहत होता है. सुरक्षा बल के जवानों की प्राथमिकता और लक्ष्य ही वहां के ग्रामीणों की सुरक्षा करना होता है. बीजापुर के मोदकपाल में हुई घटना के बाद जवानों ने ही घायल को अस्पताल पहुंचाया. जवानों की नीयत हरदम ही ग्रामीणों को बचाना होता है. क्योंकि एक भी ऐसी घटना के बाद ग्रामीणों का फोर्स पर से भरोसा उठने लगता है. ऐसे में सालों से ग्रामीणों के मन में भरोसा बनाने के लिए की गई मेहनत पर पानी फिर जाता है. फिर भी अगर मुठभेड़ पर सवाल उठ रहे हैं तो उसकी जांच की जाएगी.’
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