काबर के बाकी के छै महीना म तो कभू काम-बूता करेच नइ हे. जब छै महीना कमा के धान के कटोरा कहा सकथे त तो पूरा बारा महीना किसान कमातीन ते लछमी ह बारो महीना अपन हाथ ले रुपिया बरसाही. कुबेर कहातिन छत्तीसगढ़िया मन. फेर बारो महीना कमाए बर पानी जादा जरूरी हे अऊ इहें के अधिकांश रकबा गैर अपासी हे. महानदी अऊ शिवनाथ कस बड़े-बड़े नदिया होय के बाद घलो कभू कभू छत्तीसगढ़ महतारी के अंग अंग ह भादो म घलो पानी बर तरस जथे. एखर प्रमुख कारन हे सिंचाई के पर्याप्त साधन नइ बन पाए के. जघा जघा जब बांध नइ बने हे त फेर डोली से डोली तक नहर कहां ले पाये. पानी के अभाव म खेती संग किसान लरघाए ल धर लेथे. अभी तक ले खेती के लइक पर्याप्त पानी नइ गीरे हे. अइसन म तो मरे बिहान हे.
न कोनो करा फुरफुंदी उड़त दिखय न कोनो करा गहिरीन कीरा रेंगत दिखय न फांफा उड़त दिखय. अरे भई जब फांफा नइ उड़ही त बादर कहां ले गरजही जब बादर गरजही नहीं त फूटू कहां ले फूटही. ओइसे भी एसो अथान खाए बर लुलवा गे हन फेर भगवान ले बिनती हे कि फूटू साग खाए बर लार टपकाए बर झन परय. ओइसे तो फूटू ( मशरूम) कतको किसम के होथे. कतको ह खाए के त कतको देखाए के. मशरूम के खेती म कतको के जीवन चलत हे. जऊन ह बारामासी हरे. कतको कर डर ग प्राकृतिक जीनिस के पार कृत्रिम ह नई पा सकय. काबर के कृत्रिम म वैज्ञानिक ढंग ले खेती करे बर ताप मेंटेन करे बर परथे फेर सावन भादो के फूटू बर अपने-अपन ताप मेंटेन रथे. बादर गरजीस ते फूटू फूटिस.
मशरूम के बीज ह कृषि विश्वविद्यालय रायपुर म बाटल म मिलथे. गहूं के दलिया म बारीक मशरूम के बीजा ल मिंझार के पैरा कुट्टी म डार के पालीथीन म भर के मिंयार म लटका दे. चार-छै दिन म पैरा कुट्टी ह ढिड़हा कस बन जथे ताहन पालिथीन ल हेर के डोरी म बांध के पैरा कुट्टी ल लटका दे. बीस पच्चीस दिन बाद मशरूम ह कुट्टी के चारो कोती ले फूटथे. मशरूम म भारी प्रोटीन होथे कथे तभे तो भाव म घलो आगी लगे रथे. मशरूम घलो दू किसन के होथे. (1) बटन मशरूम ह बटन कस रथे. (2) अम्ब्रेला मशरूम ह छतरी कस छतराए रथे. वोइसे तो छत्तीसगढ़ म कतको किसम के फूटू पाए जाथे फेर चांउर फूटू अऊ कोदई फूटू ल ही खाए जाथे. कतको मन दूसर फूटू ल घलो खा लेथे. चांऊर फूटू ह चांऊर कस चकचक ले सादा रथे. जादा करके कन्हार म चांऊर फूटू ह फूटथे. गोल छितराहा बानी के रथे. कोदई फूटू ल कनकी फूटू के नाव ले घलो जाने जाते. कोदई फूट ह कोदई कस धूमलाहा रथे. एके जघा घमघम ले नानेच नान फूटे रथे. कतको कन राहय रांधबे ताहन पुच ले ताय. तेखरे सेती साग ल बढ़ाए बर चनादार नही ते कनकी ल मिंझार के रांधे ले चटनी कस थोर थोर पुर जथे. अऊ गजब के मिठाथे घलो. बोतका फूटू ह चीनी बांटी कस नही ते अंडा कस दिखते. छोटे-बड़े सबो किसम के होथे. जादा करके मुरमाहा नही ते परिया भुईंया म ए फूटू ह फूटथे.
बोतका फूटू ह ठोस सुग्घर देखे के लइक रथे. भिंभोरा म जऊन फूटू फूटथे ओला पिहरी कहिथन. इही ल डोहरू फोटू घलो कहिथन. जतके कोड़बे ओतके पाबे | बम्हरी म फूटथे तेला बंबरी फूटू अऊ गोबर म फूटथे ओला गोबर फूटू कहिथन. घाम परते भार सबो फूटू ह गल जथे या फेर कीरा पर जथे. लकड़ी फूटू ह लकड़ी कस चेम्मर रथे. पींवरहू बानी के रथे. लकड़ी म एक अइसे फूटू फूटथे जेखर छतरी भर रहिथे. ए फूटू म तै पांव राख के खड़ा हो जबे तभो थोरको उद् नइ जले. पैरा फूटू ह कुसवाहा रंग के रखे. कटाए पेड़ म फूटू नइ फूटे. परपोसी होथे. मन भर के शोषण करथे. फूटू ह सबो जघा नइ फूटे. दियार मन जउन जघा दीमक बनाए रथे उही करा फूटू फूटथे. फूट साग खाए बर हे त झडी झक्खर म गांव जाए बर परही रे भई.
(दुर्गा प्रसाद पारकर छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
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FIRST PUBLISHED : June 27, 2022, 16:05 IST
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