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Thursday, November 13, 2025
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वो एक्टर जिसने कहा था- जब मैं मर जाऊं तो मेरे जनाजे पर लाल रंग का झंडा लगाना – Balraj sahini death anniversary bollywood actor marxist said this for last rites last desire tmov

बलराज साहनी को फिल्म इंडस्ट्री का पहला नेचुरल एक्टर कहा जाता है. कई लोग उन्हें पहला स्टार भी कहते हैं. उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर लोग चर्चा करते हैं. उनकी परफॉर्मेंस की लोग सराहना करते हैं. बलराज साहनी की 47वीं पुण्यतिथि पर लेकर आए हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी अनकही और अनसुनी बातें जो खुद उनके बेटे परीक्षित साहनी ने बताई. परीक्षित साहनी ने कुछ समय पहले ही अपने पिता पर एक किताब लिखी थी. किताब का नाम है दि नॉन कन्फर्मिस्ट: मैमोरीज ऑफ माई फादर बलराज साहनी.

जो जी चाहता वो करते थे बलराज साहनी

इस किताब में उन्होंने अपने पिता के फिल्मी काम के बारे में तो बात की ही थी मगर उन्होंने उनके निजी जीवन के भी कई सारे पहलुओं के बारे में बात की थी. परीक्षित ने बताया था कि रियल लाइफ में बलराज साहनी बहुत हिम्मती इंसान थे. वे चुटकियों में बोल्ड डिसीजन ले लिया करते थे. उन्हें पानी से बहुत प्यार था और उन्हें तैरने में बहुत मजा आता था. बर्फ के पानी में कपड़े उतारकर नहाने चले जाते थे. समुद्र में करीब एक किलोमीटर तक तैरकर आते थे. कभी शांति निकेतन में रबींद्रनाथ टैगोर की शरण ली तो कभी गांधी के द्वार चले गए. और फिर बलराज साहनी ने जो किया उससे उनका परिवार हैरान रह गया.

दूसरे वर्ल्ड वॉर में लंदन चले गए बीबीसी रेडियो में नौकरी करने

बलराज साहनी के पापा का अच्छा व्यवसाय था. उनकी इच्छा थी कि बलराज साहनी उनके व्यवसाय को आगे लेकर जाएं. मगर 1939 को एक दिन अचानक बलराज साहनी ने इस बात का निर्णय लिया कि वे लंदन में बीबीसी रेडियो में नौकरी करने जा रहे हैं. उनकी शादी हो चुकी थी और उनका एक 6 महीने का बेटा (परीक्षित साहनी) भी था. ऐसे समय बलराज साहनी का ये फैसला सभी के लिए अवाक कर देने वाला था. जब विश्वभर में जंग छिड़ी और हर तरफ महामारी फैली थी, ऐसे समय में बलराज साहिनी अपने 6 महीने के बेटे को अपने छोटे भाई और हिंदी साहित्य के बड़े उपन्यासकार भीष्म साहनी को सौंप कर लंदन चले गए थे.

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जेल से आते थे शूटिंग करने

अपनी विचारधारा और बेबाकीपन की वजह से बलराज साहनी को जेल की हवा भी खानी पड़ी थी. एक समय ऐसा था जब वे दिलीप कुमार की एक फिल्म में इंस्पेक्टर का रोल कर रहे थे. इस दौरान हाथ में हथकड़ी बांधे उन्हें जेल से शूटिंग सेट पर लाया जाता था. वो इंस्पेक्टर का रोल प्ले करते थे और फिर वापस जेल चले जाते थे. दरअसल कम्युनिस्ट रैली में शामिल होने की वजह से उन्हें जेल में डाला गया था.

आखिरी दम तक मार्क्सिस्ट रहे बलराज साहनी

बलराज साहनी मार्क्सिस्ट विचारधारा से इतने ज्यादा प्रभावित थे कि मरते दम तक उन्होंने मार्क्सिस्ट विचारधारा को नहीं छोड़ा. उन्होंने अपने अंतिम समय में ये कहा था कि जब मेरी मौत होगी तब कोई पंडित ना बुलाना. कोई मंत्र नहीं पढ़े जाएंगे. जब मेरी अंतिम यात्रा निकलेगी तो मेरे जनाजे पर लाल रंग का झंडा होना चाहिए.

बलराज साहनी ने अपने करियर के दौरान दो रास्ते, वक्त, काबुलीवाला, गरम कोट, करम हवा, धरती के लाल, दो बीघा जमीन और संघर्ष जैसी फिल्मों में काम किया. 13 अप्रैल 1973 को उनका निधन हो गया.

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