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छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में मिट्टी के दीपों, कलशों और मटकों से बना अनोखा हनुमान मंदिर श्रद्धा और कला का प्रतीक है. 17 वर्षों से बन रहे इस मंदिर में अब तक दो लाख से अधिक दीप और कलश लगाए जा चुके हैं.

कलश मंदिर
लखेश्वर यादव/ जांजगीर चांपा- आपने आज तक कई मंदिर देखे होंगे, जिनमें पत्थर, संगमरमर या ईंटों का उपयोग होता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में एक ऐसा मंदिर है जो इन सबसे अलग है. यह मंदिर न तो ईंट से बना है और न ही पत्थर से, बल्कि इसका निर्माण मिट्टी के दीपकों, कलशों और मटकों से किया गया है. यह अनोखी कृति श्रद्धा और कला का अद्भुत मिलन है.
धमधा-खेरागढ़ मार्ग पर है यह अनोखा मंदिर
यह मंदिर दुर्ग जिले के धमधा से खेरागढ़ मार्ग पर स्थित है. मंदिर की खासियत है कि इसकी रचना पूरी तरह से छोटे-बड़े मिट्टी के दीयों और कलशों से की गई है. मंदिर के पास ही भगवान हनुमान की प्रतिमा विराजमान है, जहां श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं.
श्रद्धा से निकली निर्माण की प्रेरणा
पंडित नरेंद्र बाबा बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण करीब 17 साल पहले शुरू हुआ था और अब तक यह लगभग 50 फीट ऊंचा बन चुका है. यह मंदिर उन दीपों और कलशों से बना है जिन्हें नवरात्रि और दीपावली के दौरान पूजा के बाद तालाबों में विसर्जित कर दिया जाता है. पंडित जी ने श्रद्धालुओं से इन पूजन सामग्रियों को एकत्र कर मंदिर निर्माण की पहल की, ताकि श्रद्धा का यह प्रतीक सम्मान के साथ संरक्षित हो सके.
चमत्कारी मंदिर में लाखों दीपों का समर्पण
अब तक इस मंदिर में दो लाख से अधिक मिट्टी के दीप और कलश लगाए जा चुके हैं. मंदिर में स्थापित कलशों में चंद्रपुर की मां चन्द्रहिसी, दंतेवाड़ा की मां दंतेश्वरी, डोंगरगढ़ की मां बमलेश्वरी और रतनपुर की मां महामाया मंदिर के ज्योति कलश भी शामिल हैं, जो श्रद्धालुओं की भक्ति और इस मंदिर की महत्ता को दर्शाते हैं.
कलशों की पूजा का सम्मानजनक विकल्प बना यह मंदिर
नवरात्रि और दीपावली जैसे पर्वों के दौरान श्रद्धालु नौ दिनों तक देवी पूजा कर कलशों में दीप जलाते हैं, लेकिन पर्व के बाद ये कलश तालाबों में विसर्जित हो जाते हैं या उपेक्षित रहते हैं. इस मंदिर की कल्पना और निर्माण का उद्देश्य है कि इन पूजनीय सामग्रियों को सम्मान के साथ स्थान मिले.
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