- आस-पड़ोस के लोग चौबीस घंटे रखते थे नजर
- तीन दिन नहीं निकला बाहर तो कर दिया फोन
कोरोना वायरस का डर लोगों के अंदर इस कदर गहरा गया है कि कभी हमदम कहलाने वाले पड़ोसी, आज दुश्मन लगने लगे हैं. बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले के रेलवे कॉलोनी में एक ऐसा ही मामला सामने आया है. राजस्थान के कोटा में इंजीनियरिंग की तैयारी करने वाला एक छात्र जब लॉकडाउन के बीच कोटा के जिलाधिकारी से परमिशन लेटर (परमिट) लेकर अपनी मां के पास रेलवे क्वाटर पहुंचा तो जैसे बवाल खड़ा हो गया. आस-पड़ोस के लोग उस छात्र पर चौबीसों घंटे नजर रखने लगे.
छात्र राजस्थान से लौटने के बाद कुछ दिनों तक घर के अंदर ही रहा. पड़ोस के लोगों को लगा कि कहीं उसे कोरोना वायरस तो नहीं. उन्होंने प्रशासन को इस बात की खबर दे दी. प्रशासन ने छात्र को कोरोना संदिग्ध समझते हुए मेडिकल टीम को भेजा. बाद में उस छात्र को एम्बुलेंस में बैठाकर आवासन केंद्र (दूसरे राज्यों से आए लोगों को मेडिकल टीम की उपस्थिति में रखने के लिए यह केंद्र बना है) में रख दिया गया. इस केंद्र में पहले से 250 मजदूर रह रहे थे. 20 घंटे बीत जाने के बाद भी छात्र की ना तो जांच की गई और ना ही किसी क्वारनटीन सेंटर में भेजा गया.
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छात्र की मां को इस बात की जानकारी मिली. वो अगली सुबह कृष्णा हाई स्कूल पहुंच गयी. यहीं पर उस छात्र को रखा गया था. मां ने प्रशासन को छात्र के साथ लापरवाही करते देखा. जिसके बाद उन्होंने आजतक से मदद की गुहार लगाई. आजतक ने पूरे मामले की जानकारी अंचलाधिकारी (सीओ) धर्मेंद्र पंडित को दी. उन्होंने मामले को संज्ञान में लेते हुये तुरंत डॉक्टर को बुलवाया और छात्र की जांच करवाई.
अंचलाधिकारी ने आजतक से कहा की बच्चे की जांच करा कर उसे होम क्वारनटीन के लिए भेजा जाएगा.
पीड़ित छात्र की मां ने आंखों में आंसू लिए पड़ोसी की हरकतों से नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा कि जो हमारे खास पड़ोसी थे आज वही दुश्मन बने बैठे हैं. अफवाह फैला कर मेरे बच्चे को आवासन केंद्र भिजवा दिया. केंद्र में कई लोग एक साथ रहते हैं. ऐसे में मेरे बेटे की रिपोर्ट निगेटिव भी होती तब भी इतने लोगों के साथ रहते हुए वह संक्रमित हो जाता.
लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि कोरोना क्या है? घर पर दूध पहुंचाने वाले ने दूध पहुंचाना बंद कर दिया है. पानी वाला गेट के बाहर ही पानी छोड़कर चला जाता है. पीड़ित मां ने सरकार से गुहार लगाई है की वे लोगों को कोरोना के बारे में जागरूक करें और पड़ोसियों को सकारात्मक व्यवहार की जिम्मेदारी का भी एहसास कराएं.
उन्होंने कहा, ‘मेरा बच्चा कोटा में इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा था. लॉकडाउन की वजह से वह कोटा में ही फंस गया. बहुत कोशिश के बाद वहां के डीएम के आदेश पर उसे आने दिया गया. हमने बेटे के घर में आते ही रेलवे को इस बात की सूचना दी. जिसके बाद उसे होम क्वारनटीन किया गया. लेकिन तीन दिन बाद पड़ोसियों ने अफवाह फैला दी कि बच्चा बीमार है. जिसके बाद उसे उठा कर प्रशासन ले गई. चार दिनों तक उसका कोई टेस्ट नहीं हुआ. ना ही उसे वापस भेजा गया.’
छात्र की मां ने कहा कि जहां मेरे बेटे को रखा गया था वहां कोई सुविधा नहीं है. सारे लोग एक जगह बंद हैं, सबके लिए एक ही बाथरूम है. मान लीजिए मेरा बच्चा नेगेटिव भी है तो भी यहां रहने के बाद क्या संक्रमित नहीं होगा. समस्या यही है कि लोग कोरोना को समझ नही पा रहे हैं.
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वहीं जितवारपुर प्रखंड के सीओ धर्मेंद्र पंडित ने कहा, ‘हमें लोगों से शिकायत मिली थी. जिसके बाद एम्बुलेंस भेजकर उसे यहां बुलाया गया था. हमने सुबह उनसे मुलाकात के दौरान कहा है कि छात्र का टेस्ट कराया जा रहा है. निगेटिव पाए जाने पर उसे होम क्वारनटीन के लिए भेज दिया जाएगा. अभी अगर कोई भी व्यक्ति बाहर से आता है तो लोग हमें फोन कर शिकायत करते हैं. हमलोग अब शिकायत करने वाले पर भी निगरानी करेंगे. अगर कोई शख्स बेवजह बाधा उत्पन्न करता है तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी.’


