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गिद्धों के संरक्षण के कारगर प्रयास

विशेष लेख


गिद्धों के संरक्षण के कारगर प्रयास


 


भोपाल : रविवार, फरवरी 23, 2020, 18:35 IST

पारिस्थितिकीय संतुलन में गिद्ध की महत्वपूर्ण भूमिका है। जानवरों का सड़ा, बदबूदार माँस और गंदगी मिनटों में चट कर ये पर्यावरण को स्वच्छ और सम्पूर्ण पृथ्वी को महामारी से बचाते हैं। भारत सहित विश्व में गिद्धों की चिंतनीय ढंग से कम हुई संख्या को देखते हुए मध्यप्रदेश में गिद्धों के संरक्षण के कारगर प्रयास किये जा रहे हैं। गिद्धों को विलुप्तप्राय बनाने में सबसे बड़ा कारण डायक्लोफिनेक नामक दवा की मृत पशु अवशेषों में मौजूदगी है।

मध्यप्रदेश में 7 प्रजाति के, भारत में 9 और विश्व में 22 प्रकार के गिद्ध पाये जाते हैं। प्रदेश में सफेद गिद्ध, चमर गिद्ध, देशी गिद्ध, पतल चोंच गिद्ध, राज गिद्ध, हिमालयी गिद्ध, यूरेशियाई गिद्ध और काला गिद्ध की मौजूदगी मिली है।

सफेद गिद्ध

सफेद गिद्ध (Egyptian Vulture) मध्यप्रदेश के अलावा गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और उत्तराखण्ड में भी दिखाई पड़ता है।

वर्णन छोटे गिद्ध, जिनमें लम्बे नुकीले पंख, छोटा नुकीला सिर तथा फनाकार पूँछ। वयस्क मुख्यत: मटमैले-श्वेत, जिनका मुँह पंख-रहित पीताभ तथा उड़ान-पंख काले। तरुण काले-भूरे, जिनका मुँह पंख-रहित धूसर। वयस्कता के साथ-साथ पूँछ, शरीर तथा पर पंखनी सफेद तथा मुँह पीताभ होते चले जाते हैं। मानव आवासीय स्थलों के समीप खुले स्थानों में व्याप्त। हिमालय में 2500 मी. की ऊँचाई तक दिखाई देते हैं। सम्भवत: अब यह क्षेत्र (फील्ड) का सबसे आम गिद्ध है। भोजन की तलाश में व्यापक क्षेत्रों का भ्रमण करता है। घोसला चट्टानों, पेड़ों तथा पुराने भवनों में बनाता है।

पंख सफेद होते हैं, जो किनारों पर काले होते हैं। चेहरा छोटा, रोएंदार एवं पीले रंग का होता है। चोंच पतली तथा पीले या ग्रे रंग की होती है। लिंग एक समान दिखते हैं। आकार में चील से मिलता-जुलता है। बच्चा काले रंग का होता है।

चमर गिद्ध

चमर गिद्ध (White-rumped Vulture) मध्यप्रदेश के अलावा गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड आदि में पाया जाता है।

वर्णन जिप्स गिद्धों में सबसे छोटे। वयस्क मुख्यत: काले, जिनमें पुट्ठा तथा पृष्ठ सफेद तथा निचले पर पंखनी सफेद होते हैं। तरुणावस्था के मुख्य लक्षण : गहरा भूरा रंग, धारीदार अधरभाग तथा ऊपरी पर-पंखनी, गहरे पुट्ठा तथा पृष्ठ भाग, सफेद सिर और गला तथा पूर्णत: गहरी चोंच। उड़ान के समय अधर भाग तथा चिले पर पंखनी देसी गिद्ध तथा पतलचोंच गिद्ध के समान भागों के रंगों से विशिष्ट रूप से गहरे। तरुणावस्था में रंग हिमालयी गिद्ध के तरुण के समान परंतु अत्यधिक छोटा तथा अल्पाकार, पंख पतले तथा दुम छोटी। इसके अधरभाग पर भी अल्प धारियाँ तथा अग्रपीठ तथा कंधे पर स्पष्ट धारियों की अनुपस्थिति। बस्तियों के समीप स्थानों में व्याप्त समतल तथा पहाड़ियों पर 2500 मी. की ऊँचाई तक दिखाई देते हैं। इनका ज्यादातर समय उड़ते हुए बीतता है। बहुत मिलनसार होते हैं। रात्रि निवास ऊँचे वृक्षों के अलावा, ऐतिहासिक इमारतों, पहाड़ों की कंदराओं में करते हैं। इनका घोंसला ऊँचे पेड़ों पर, चट्टानों पर तथा पुराने भवनों पर पाया जाता है।

इनकीविशेषता पंख विहीन सर तथा गला पतला होता है। पीठ पर एक बड़ा सफेद चिन्ह रहता है, जो उड़ते समय दिखाई देता है।

देसी गिद्ध

देसी गिद्ध (Indian Vulture) मध्यप्रदेश के अतिरिक्त गुजरात, हरियाणा, राजस्थान आदि में दिखाई पड़ता है। वर्णन वयस्क देसी गिद्ध में शरीर तथा ऊपरी पर-पंखनी का रंग रेतीला-भूरा, सिर तथा गर्दन काली, पश्च-ग्रीवा पर हलके पंख, सफेद रोम कण्ठ-वेष्ठन, पीताभ चोंच तथा सिर तथा अधर भाग में धुंधली धारियों की कमी, उड़ान के समय पहाड़ी गिद्ध की तरह मध्य निचले पर पंखनी पर चौड़ी सफेद पट्टी की अनुपस्थिति तथा पुट्ठा और पृष्ठ श्वेत। हिमालयी गिद्ध की अपेक्षा छोटा तथा कम भारी शरीर, जिसमें अधिक गहरे सिर तथा ग्रीवा, सफेद कण्ठ-वेष्ठन तथा गहरे पैर तथा पंजे। तरुणावस्था में कण्ठ-वेष्ठन कोमल पाण्डुरंग युक्त, चोंच तथा सेयर गहरे, जिस पर धुंधला कलमेन तथा सफेद रोमाच्छादित सिर तथा गर्दन। तरुण को तरुण चमर गिद्ध से अलग करने में सहायक लक्षण : धुंधले तथा अल्प स्पष्ट धारियों युक्त अधरभाग, धुंधले ऊपरी तथा निचले पर पंखनी तथा सफेद पुट्ठा तथा पृष्ठ की उपस्थिति। बस्तियों तथा खुले वनों में व्याप्त। ये ज्यादातर लम्बी उड़ान भरते हैं। जमीन पर धीरे-धीरे बतख की तरह चलते हैं और झुक कर बैठते हैं। इनका घोंसला ऐतिहासिक इमारतों पर अथवा पहाड़ों की कंदराओं में मिलता है।

पैरों के ऊपरी भाग पर सफेद तथा नर्म पंख इनकी विशेषता है। पर रहित गर्दन के निचले हिस्से पर नर्म हल्के भूरे, श्वेत पंखों की कालर-सी होती है।

राज गिद्ध

राज गिद्ध (Red-headed Vulture) मध्यप्रदेश के साथ-साथ उत्तर भारत के कई प्रदेशों में दिखायी पड़ता है।

वर्णन अपेक्षाकृत पतले नुकीले पंख। वयस्क में नग्न लाल सिर तथा सेयर, गर्दन के आधार तथा ऊपरी जंघा पर सफेद धब्बे तथा लाल पैर तथा पंजी, उड़ान के समय द्वितीयक-पंखों के आधार पर सिलेटी-श्वेत रंग। तरुणावस्था में सिर पर सफेद रोम, सिर तथा गर्दन का गुलाबी रंग, ऊपरी जंघा पर सफेद धब्बे तथा सफेद निचली दुम पंखनी। बस्तियों के समीप खुले स्थानों में तथा अच्छी वृक्षदार पहाड़ियों में व्याप्त। हिमालच में 2500 मी. की ऊँचाई तक मिलते हैं।

ये दूसरे प्रकार के गिद्धों की तुलना में सहिष्णु होते हैं। मृत जानवर भी यह बाकी गिद्धों के जाने के बाद खाते हैं और मनुष्य के आने से पहले उड़ जाते हैं। इनका घोंसला ऊँचे पेड़ों पर पाया जाता है। इसका सिर, टांग, गर्दन एवं सीना रक्त वर्ण के होते हैं। लाल और काले पंखों के बीच सफेद परों की पट्टी होती है, शेष देह काली होती है। राज गिद्धों की सम्पूर्ण संरचना अलंकृत-सी दिखाई देती है, जिसके कारण राज गिद्ध अन्य गिद्धों से अलग पहचाना जाता है।

हिमालयी गिद्ध

हिमालयी गिद्ध (Himalayan Griffon) प्राय: उत्तरी भारत के कुछ प्रदेशों में पाया जाता है। यह मध्यप्रदेश में भी दिखाई पड़ता है।

वर्णन यूरेशियाई गिद्ध से बड़ा, अधिक चौड़े शरीर तथा कुछ अधिक लम्बी पूँछ युक्त। धुंधले पाण्डु-श्वेत पर-पंखनी तथा शरीर, गहरे उड़ान-पंख तथा पूँछ से स्पष्ट विभेद करते हैं तथा पाण्डुरंग का झालरदार गुलुबंद। अधरभाग में स्पष्ट धारियों की कमी। गहरे नख युक्त गुलाबी पैर तथा पंजे एवं पीत चोंच तथा सेयर। तरुणावस्था में भूरे रोमयुक्त गुलुबंद, चोंच तथा सेयर प्रारंभिक तौर पर काली, गहरा भूरा शरीर तथा सुस्पष्ट पाण्डु धारियों युक्त ऊपरी पंख-पंखनी (पर-पंखनी का रंग लगभग उड़ान-पिच्छों से मेल खाता हुआ) एवं पृष्ठ भाग तथा पुट्ठा भी गहरे भूरे। तरुणावस्था में उपस्थित धारीदार पृष्ठभाग तथा अधर भाग तथा निचले पंख-पिच्छों पर स्पष्ट सफेद पट्टिका इसे काला गिद्ध से अलग करने में महत्वपूर्ण लक्षण; इसके तरुण के पक्षति तरुण चमर गिद्ध के पूरा समापन परंतु शरीर अधिक बड़ा तथा अधिक भार वाला, जिसमें अधिक चौड़े पंख तथा लम्बी पूँछ, अधरभाग अधिक घनी धारियों से युक्त तथा अग्रपीठ एवं कंधे पर भी धारियाँ। पहाड़ियों में स्थित खुले स्थानों में व्याप्त। 600 मी. से अधिक ऊँचाई पर मिलते हैं, 5000 मी. से ऊपर तक भोजन की तलाश में घूमते हुए मिल जाते हैं, शीतकाल में समतल मैदानों पर आ जाते हैं।

ये अधिकतर पहाड़ों के ऊपर छोटे समूहों में या अकेले रहते हैं। भोजन की तलाश में लम्बी दूरियाँ तय करते हैं। समूह में पहाड़ों पर रात्रि निवास करते हैं। ये समूह में ऊँची चट्टानों की सुरक्षित कंदराओं में घोंसला बनाते हैं। इसके भूरे काले पंखों के मध्य सीने पर लाल रंग का मांसल स्थल दिखता है। पर-रहित गर्दन के निचले हिस्से पर नर्म भूरे श्वेत पंखों की कालर-सी होती है। चोंच पीली-सी तथा पैर गुलाबी होते हैं।

युरेशियाई गिद्ध

यूरेशियाई गिद्ध (Eurasian Griffion) मध्यप्रदेश के साथ-साथ उत्तर भारत के कई प्रदेशों में दिखायी पड़ता है।

वर्णन – देसी गिद्ध से अधिक बड़े तथा पुष्ट चोंच युक्त। वयस्क के मुख्य लक्षण पीली चोंच, जिस पर काली सेयर, सफेद सिर तथा गर्दन ऊनी सफेद गुलुबंद, आरक्ती आभा युक्त पाण्डु पृष्ठभाग, आरक्ती-भूरे अधरभाग तथा जांघ, जिस पर स्पष्ट पाण्डु धारियाँ तथा गहरे सिलेटी पैर तथा पंजे। आरक्ती-भूरे निचले पर पंखनी, जिस पर सामान्यत: स्पष्ट सफेद पट्टिका, विशेषकर मध्य-पिच्छों के ऊपर। अवयस्क में वयस्क की अपेक्षा पृष्ठभाग तथा ऊपरी पर-पंखनी पर अधिक आरक्ती भूरा रंग (जिन पर स्पष्ट पाण्डु धारियाँ); अवयस्क में आरक्ती-भूरा रोम युक्त गुलुबंद, सिलेटी सिर तथा गर्दन पर अधिक सफेद रोम, चोंच काली तथा गहरी परितारिका (जो वयस्क में पीत-भूरी होती है)। खुले स्थानों में, मुख्यत: : 910 मी. के नीचे ग्रीष्म में 3000 मी. की ऊँचाई तक मिलते हैं।

यह पहाड़ों पर रहता है तथा सर्दियों में सूखे मैदानों में घूमता है। अधिकांशत: जोड़े अथवा छोटे समूहों में रहते हैं। ज्यादातर भोजन की तलाश में उड़ते रहते हैं। ये चट्टानों की कंदराओं में घोंसला बनाते हैं। हिमालयी गिद्ध से छोटा तथा गहरे भूरे रंग का होता है। सिर तथा गर्दन सफेद और चोंच पीलीहोती है ।

काला गिद्ध

काला गिद्ध (Cinereous Vulture) मध्यप्रदेश के साथ-साथ उत्तर भारत के कई प्रदेशों में दिखाई पड़ता है।

वर्णन – अत्यधिक बड़े गिद्ध, जिनमें चौड़े समानान्तर किनारे वाले पंख होते हैं। विड्यन करते समय पंख समतल (सामान्यत: जिप्स प्रजातियों में परों को हलके ‘V’ आकृति में रखा जाता है) सिर तथा चोंच के धुंधले भाग के अतिरिक्त दूर से सम्पूर्ण एक समान गहरे रंग का दिखाई देता है। वयस्क काला-भूरा, जिसमें हलका भूरा गुलुबंद, वृहद निचले पर पंखनी पर धुंधली पट्टी भी दिखाई दे सकती है परंतु निचले पंख भाग जिप्स की अपेक्षा अधिक गहरे तथा एकरूपता लिये हुए। तरुणावस्था में वयस्क से अधिक एकरूपता लिये हुए। खुले स्थानों में 3000 मी. से नीचे व्याप्त।

यह मैदानी क्षेत्रों में अकेले ही भोजन ढूँढता दिखता है, अधिकांशत: नदियों के समीप दिखाई पड़ता है। इनका घोंसला पहाड़ों की कंदराओं में अथवा पहाड़ों पर उगे छोटे वृक्षों पर पाया जाता है। सिर का आकार कोणीय, आँखें गहरी, कालर भूरा, पंख चौड़े तथा पूँछ छोटी होती है। उड़ते समय पंखों को फड़फड़ाता है। इससे यह चीलों में आसानी से पहचाना जाता है।

पतल चोंच गिद्ध

पतल चोंच गिद्ध (Slender-billed Vulture) उत्तरी भारत के कई प्रदेशों में पाया जाने वाला यह गिद्ध यदा-कदा उत्तरी मध्यप्रदेश में दिखाई पड़ता है।

वर्णन देसी गिद्ध की अपेक्षा चोंच, सिर तथा ग्रीवा अधिक पतले तथा कोणीय चोटी (एवं सुस्पष्ट कर्ण नाल)। देसी की अपेक्षा शरीर का रंग गहरा तथा भूरा एवं शरीर पतला, जिसके जंघा पर सफेद धब्बे (जो उड़ते समय सुस्पष्ट)। उड़ते समय, ‘परों’ के पिछले किनारे गोलाई युक्त तथा शरीर से चिपके हुए तथा बाहरी प्राथमिक-पिच्छों की लम्बाई अन्त: प्राथमिक-पिच्छों से अधिक। उड़ान-पिच्छों के आन्तर भाग एकरूप लिये हुए गहरे (जो देसी गिद्ध में गहरे सिरे युक्त धुंधले होते हैं)। निचली दुम पंखनी भी गहरी (देसी में हलके) तथा उड़ते समय पंजे पूँछ के सिरे तक पहुँचते हैं। (जो देसी में पूँछ सिरे तक नहीं पहुँचते)। वयस्क में गहरी चोंच तथा सेयर, जिसमें धुंधला कालमेन, सिर तथा गर्दन रोम रहित छोटे तथा रुक्ष गंदले सफेद कण्ठ-वेष्ठन तथा गहरे नख (देसी में पीत) तरुणावस्था में मुख्यत: गहरी चोंच सफेद रोमयुक्त सिर तथा गर्दन एवं अधरभाग पर धुंधली धारियाँ। खुले वनों में व्याप्त। 1500 मी. की ऊँचाई तक दिखाई देते हैं।

ये मरे जानवरों को खाते हैं। प्रजनन गाँवों से दूर एकांत में करते हैं। इनका घोंसला ऊँचे पेड़ों पर मिलता है। साँप की तरह पतली गर्दन, पतली लम्बी चोंच। आँखों के घेरे गहरे होते हैं तथा चेहरे से अलग दिखते हैं। सिर तथा गर्दन की खाल बाल रहित तथा सिकुड़ी होती है।

गिद्ध प्राय: सुरक्षित स्थान यथा ऊँचे स्थलों अथवा वृक्षों पर विश्राम करते हैं। पुरानी इमारतों एवं पहाड़ी कंदराओं में इन्हें देखा जा सकता है। कई बार ये खेतों में या फिर जलाशय के किनारे भी विश्राम करते पाये जाते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से गिद्ध प्राय: ऊँचे स्थलों अथवा वृक्षों पर अपना घोंसला बनाते हैं। मैदानी क्षेत्रों के जंगलों में ऐसे वृक्ष सागौन, शीशम, हल्दू, सेमल, पीपल आदि होते हैं। ऊँचे वृक्षों के अभाव में जंगल के बाहर कम ऊँचाई के वृक्ष भी घोंसला बनाने के लिये उपयुक्त पाये गये हैं। ऐसे वृक्ष आम, बबूल, नारियल आदि हैं।


सुनीता दुबे


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