आज, 25 जून 2025, भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय की 50वीं बरसी है – आपातकाल। ठीक 50 साल पहले, 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी, जिसने अगले 21 महीनों तक भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को झकझोर दिया था। यह वह दौर था जब सरकार विरोधी आवाजों को दबाया गया और कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियों को जेल भेज दिया गया।
राजघरानों की महारानियां भी रहीं तिहाड़ की मेहमान:
आपातकाल के दौरान गिरफ्तार होने वालों में राजस्थान और मध्य प्रदेश की प्रतिष्ठित राजमाताएं भी शामिल थीं। जयपुर की राजमाता गायत्री देवी और ग्वालियर की महारानी विजयराजे सिंधिया को दिल्ली की तिहाड़ जेल में रखा गया था। राजमाता गायत्री देवी ने अपनी जेल यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए बताया था कि “पहली रात मैं सो नहीं पाई। मेरी कोठरी के बाहर नाला था, जिसमें कैदी मल त्यागते थे। कमरे में पंखा नहीं था, मच्छरों को हमारे खून से ज्यादा ही प्यार था।” ये मार्मिक शब्द उस कठिन दौर की तस्वीर पेश करते हैं जब राजनीतिक विरोधियों को अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था।
आधी रात को लागू हुआ आपातकाल, सुबह रेडियो पर सुना देश ने संदेश:
25-26 जून 1975 की रात को, राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के आपातकाल के आदेश पर हस्ताक्षर के साथ ही देश में इमरजेंसी लागू हो गई। अगली सुबह पूरे देश ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज में ऑल इंडिया रेडियो पर एक संदेश सुना: “भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है, लेकिन इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है।” इस घोषणा के साथ ही देश में नागरिक स्वतंत्रताओं पर पाबंदी लग गई, प्रेस सेंसरशिप लागू हो गई और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं।
आपातकाल का यह दौर भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ‘काला अध्याय’ माना जाता है, जिसकी यादें आज भी कई लोगों के जेहन में ताजा हैं।