नई दिल्ली: भारत के सामने चीन का मनोवैज्ञानिक युद्ध फेल हो चुका है. चीन की सेना जो ताकत दिखा रही थी, उसका कोई असर नहीं पड़ा. क्योंकि चीन की सेना कितने भी दावे कर ले, उसकी ताकत सिर्फ एक भ्रम है. इस भ्रम को तोड़ने वाले कुछ और सच भी हम आपको बताते हैं.
सबसे पहला भ्रम तो यही है कि चीन की सेना, भारत से बहुत ताकतवर है. जबकि सच ये है कि भारतीय सेना में करीब 14 लाख सैनिक हैं. जबकि वर्ष 2015 के बाद से चीन अपने सैनिकों की संख्या को लगातार कम कर रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक चीन में अब 10 लाख से भी कम सैनिक हैं.
चीन की एक बड़ी कमजोरी ये है कि वर्ष 1979 से लेकर वर्ष 2015 तक चीन में One Child Policy लागू थी. जिसकी वजह से चीन के ज्यादातर सैनिक अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं. ऐसे में मुमकिन है कि युद्ध की स्थिति में चीन के सैनिक देश से पहले, अपने परिवार के बारे में सोचें.
चीन की सेना की एक और बड़ी कमजोरी ये है कि उसने 41 वर्ष पहले आखिरी बार युद्ध लड़ा था. वर्ष 1979 में वियतनाम के हाथों उसे हार का सामना करना पड़ा था. इस हिसाब से चीन की सेना में अब शायद ही ऐसा कोई भी जवान या अधिकारी बचा होगा जिसे युद्ध लड़ने का अनुभव होगा.
जबकि भारत ने करीब 21 वर्ष पहले करगिल युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह हराया था. भारतीय सेना को दुश्मन के घर में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक करने का भी अनुभव है.
और चीन, अपने जिन सैनिकों के दम पर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की धमकियां देता है, असलियत में वो भारत से जंग के लिए तैयार ही नहीं हैं. खुद चीन की सेना ने माना है कि उसके बीस प्रतिशत सैनिक, युद्ध करने के लिए फिट नहीं हैं.
बीस प्रतिशत सैनिकों का वजन भी जरूरत से ज्यादा है, और चीन के 25 प्रतिशत सैनिक, शराब के आदी हो चुके हैं.
यानी चीन भले ही दुनियाभर में अपनी ताकत का दम भरता हो, लेकिन वो केवल उसका मायाजाल है और कुछ नहीं.
देखें DNA-
चीन खुद भी ये बातें जानता है. उसे पता है कि युद्ध की स्थिति में उसे सैनिकों की कमी हो सकती है. इसलिए वो एक बैक अप प्लान पर भी काम करता है. इसके तहत चीन में सभी नागरिकों के लिए दो वर्ष के लिए सैन्य सेवाएं देना अनिवार्य है.
चीन की सेना में 35 प्रतिशत सैनिक ऐसे ही होते हैं, जिन्हें अनिवार्य सेवा तहत लाया जाता है, यानी इन्हें मजबूर करके सैनिक बनाया जाता है. अब सोचिए ऐसे लोग कैसे कोई युद्ध लड़ सकते हैं.
चीन की सेना में ग्रामीण और शहरों से 50-50 प्रतिशत जवानों को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है. सेना में शामिल नागरिकों को 90 दिन की सैन्य ट्रेनिंग दी जाती है. ताकि जरूरत पड़ने पर उन्हें युद्ध के मैदान में लड़ने के लिए भेजा जा सके.
रक्षा विशेषज्ञ ये भी दावा करते हैं कि राजनीतिक विचारधारा से सैनिकों का ब्रेनवॉश, दुनिया में सिर्फ चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी ही करती है, और इसी कारण से चीन की सेना को कम्यूनिस्ट पार्टी की सेना भी कहा जाता है.
दक्षिण सूडान में चीन के सैनिकों से जुड़ी वर्ष 2015 की एक कहानी बहुत प्रचलित है. चीन के ये सैनिक संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन के तहत दक्षिण सूडान गए थे. वहां पर इन्हें एक शरणार्थी शिविर की सुरक्षा की जिम्मेदारी मिली थी. लेकिन जब विद्रोही गुटों का हमला हुआ तो चीन के सैनिक ना तो नागरिकों को बचा पाए, ना ही खुद की सुरक्षा कर पाए. नागरिकों की हत्या और बलात्कार होते रहे, लेकिन चीन के सैनिक अपने कैंप से बाहर ही नहीं. खुद चीन के कैंप पर विद्रोही गुटों ने गोलाबारी की, जिसमें चीन के दो सैनिक मारे गए थे. इसके बाद तो चीन के सैनिक अपने हथियार और गोला बारूद छोड़कर वहां से भाग गए.
अब इसी घटना में चीन के सैनिकों और भारत के सैनिकों का अंतर बताते हैं. जिस वक्त दक्षिण सूडान में ये हमला हुआ था, उस वक्त भारतीय सेना की एक टुकड़ी भी वहां पर थी, जिसे रिज़र्व में रखा गया था. ये भारतीय सेना की 7वीं कुमाऊं रेजिमेंट के जवान थे, जिन्हें हमले के बाद हालात पर काबू पाने के लिए बुलाया गया था. बेखौफ होकर भारत के जवानों ने उस इलाके में विद्रोहियों को भगाया और उस इलाके को फिर से अपने कब्जे में लिया. बताया जाता है कि बाद में दक्षिणी सूडान के UN मिशन के कमांडर ने भारतीय सैनिकों से खुद मुलाकात की और इन सैनिकों का शुक्रिया अदा किया.


