Monday, June 30, 2025
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Chhattisgarh News In Hindi : Child cancer continues to increase in Chhattisgarh due to delay in treatment and detection | इलाज और पहचान में देरी से छत्तीसगढ़ में बढ़ा बच्चों का कैंसर फिर भी, उनके इलाज और ठीक होने का अनुपात देश से दोगुना

  • डॉक्टर्स बता रहे हैं कि बच्चों में आनुवांशिक नहीं बल्कि लाइफ स्टाइल व केमिकल फूड भी कारण
  • डॉ. प्रदीप चंद्राकर के अनुसार यहां चार तरह के कैंसर देखने में आ रहे हैं, जिनका शुरू में इलाज संभव है

Dainik Bhaskar

Feb 04, 2020, 02:34 AM IST

रायपुर (संदीप राजवाड़े /पीलूराम साहू ) . राजधानी और छत्तीसगढ़ में पिछले दो-तीन साल में बच्चों में कैंसर के केस इसलिए बढ़े हैं क्योंकि माता-पिता पहचान नहीं पाते और इलाज देर से शुरू होता है। शून्य से 14 साल के बच्चों में यह बढ़ रहा है। लेकिन छत्तीसगढ़ के लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि यहां इलाज से बच्चों का कैंसर ठीक होने का अनुपात देश के अनुपात से दोगुना से ज्यादा है। हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार देश में कैंसर पीड़ित बच्चों के ठीक होने के अनुपात 30-35 फीसदी ही है। जबकि राजधानी के इंदिरा गांधी रीजनल कैंसर सेंटर में 60-70 प्रतिशत बच्चे ठीक हो रहे हैं। यह अांकड़े विकसित देशों के 80 प्रतिशत के करीब हैं। राजधानी रायपुर के कैंसर सेंटर में पिछले साल कैंसर पीड़ित 255 बच्चों को इलाज के लिए लाया गया।  

इस सेंटर के डाक्टरों ने इलाज के साथ-साथ पिछले 5 साल में कैंसर पीड़ित बच्चों को लेकर कई तरह के अांकड़ों निकाले हैं। कैंसर सेंटर के डायरेक्टर डॉ. विवेक चौधरी के अनुसार इन अांकड़ों के अाधार पर कहा जा सकता है कि बच्चों में कैंसर की वजह अानुवंशिक तो है ही, मौजूदा लाइफ स्टाइल और जंक फूड वगैरह ने 14-15 साल के बच्चों में यह बीमारी ज्यादा लगाई है।   

कई दिन चला अलग इलाज
पांच साल के रिसर्च का सबसे चौंकाने वाला अांकड़ा यही है कि इलाज के लिए आने वाले अधिकतर पीड़ित बच्चों में जब कैंसर बढ़ जाता है, या तकलीफ बढ़ने लगती है, तब पैरेंट्स को पता चलता है और कैंसर का इलाज शुरू हो पाता है। कैंसर सेंटर आने वाले 90 फीसदी मामले ऐसे ही हैं। पिछले साल अंबेडकर अस्पताल परिसर में स्थित इस कैंसर सेंटर में जितने बच्चे अाए, उनकी उम्र 13 दिन से 14-15 साल के बीच है। डा. चौधरी ने बताया कि इस सेंटर में बच्चों के कैंसर का सभी तरह के इलाज नि:शुल्क है। इसलिए 70 फीसदी तक बच्चे पूरी तरह ठीक होकर जा रहे हैं। 65 से 70 फीसदी बच्चे पूरा इलाज कराकर ठीक हो रहे हैं। 

बच्चों में चार तरह के कैंसर
सेंटर के डॉ. प्रदीप चंद्राकर के अनुसार यहां चार तरह के कैंसर देखने में अा रहे हैं, जिनका शुरू में इलाज संभव है। अधिकतर ल्यूकीमिया या ब्लड कैंसर के मामले हैं। बच्चों में कमजोरी, पीलापन, दर्द से रोना व ब्लड निकलना इसका लक्षण है। दूसरा ब्रेन ट्यूमर है। शरीर में झटके, सिर दर्द, उल्टी, बेहोशी और कमजोरी इसके लक्षण हैं। तीसरा सारकोमा है, जिसे हड्‌डी या मांसपेशी का कैंसर भी कहते हैं। इसका लक्षण सूजन तेजी से बढ़ना है। चौथा न्यूरोब्लास्टोमा या पेट का कैंसर है। नहलाते समय कहीं गठान महसूस हो, पेशाब में खून अाए तो यह हो सकता है। 

उम्र के अनुसार बीमारी
 

वर्ष       उम्र 15-44     उम्र 45-60
    
पुरुष/महिला     पुरुष/महिला
 
2019      684/722      665/1229
 
2018      809/900      859/1375
 
2017      734/888      786/1246
 
2016     692/811      708/1138
 
2015      435/860      599/949

कैंसर था पर दूसरी बीमारियों का इलाज होता रहा… ऐसे कई मामले जिनसे बढ़ गई बच्चों की तकलीफ
 

केस 1 | बसना के ठाकुरपाली के सालभर के बच्चे की अांख में कैंसर है। उसे 3 फरवरी को इलाज के लिए रीजनल सेंटर लाया गया। डाक्टरों ने केस हिस्ट्री जानी तो चकित रह गए क्योंकि बच्चे के जन्म के 10 दिन बाद ही उसकी अांख सफेद दिखने लगी थी। महीनों तक अांख का इलाज चला। राजधानी के एक बड़े अस्पताल में भी इलाज हुअा। समस्या बढ़ी, तब डाक्टरों ने यहां भेज दिया। लेकिन अब उस अांख की रोशनी चली गई है।  

केस 2| बलरामपुर से इलाज कराने आया 4 साल का बच्चा कैंसर से पीड़ित है। बच्चे की मां ने बताया कि पहले कभी ऐसा नहीं लगा कि उसे कोई बीमारी है। उल्टी व पेट दर्द देने पर दवाई खिला देते थे। पिछले साल नानी के घर जाने पर नहाने के दौरान पेट पर हाथ फेरने पर पाया कि वहां कुछ सूजन व गठान है। इसके बाद दवाई शुरू हुई। तकलीफ बढ़ी, तब डाक्टरों ने रायपुर भेजा। अब कैंसर का इलाज चल रहा है, बच्चा ठीक हो रहा है। 

कैंसर की महिला मरीज 5 साल में 40% बढ़ीं, इनमें से ज्यादातर 45-60 की उम्र की
प्रदेश में पांच साल में कैंसर के महिला मरीजों की संख्या 33 से 40 फीसदी तक बढ़ गई है। इनमें ज्यादातर 45 से 60 वर्ष की महिलाएं है। डॉक्टरों का कहना है कि जीवनशैली व खानपान में आए बदलाव इसके सबसे बड़े कारण हैं। यही नहीं 15 से 44 साल की महिलाओं में कैंसर के केस कम हुए है। ये आंकड़े प्रदेश के सबसे बड़े अंबेडकर अस्पताल स्थित इंदिरा गांधी  रीजनल कैंसर सेंटर का है। अंबेडकर में केवल कैंसर के मरीजों का ऑनलाइन डॉटा रजिस्ट्रेशन होता है। इससे मरीजों के वास्तविक आंकड़े का पता चल पाता है। 

ज्यादा उम्र में शादी भी वजह : राजधानी-प्रदेश में महिलाओं में ज्यादातर केस सर्वाइकल, मुंह व ब्रेस्ट कैंसर के है। इनमें 70 फीसदी तो सिर्फ सर्वाइकल है। कैंसर सेंटर के डाक्टरों के अलावा सीनियर कैंसर विशेषज्ञ डॉ. युसूफ मेमन व ब्लड कैंसर विशेषज्ञ डॉ. विकास गोयल ने सरकारी और निजी अस्पताल में अाने वाले मरीजों के विश्लेषण से जो निष्कर्ष निकाले हैं, उनके अनुसार 10-15 साल की बच्चियों की शरीर की कोशिकाओं में इरिटेशन होता है। 25 से 40 साल के बीच खानपान, जीवनशैली में बदल जाती है। वजन भी बढ़ता है। यह तो कैंसर के कारण हैं ही, गुटखा, शराब व अधिक प्रदूषण से भी कैंसर हो रहा है। हालांकि ब्रेस्ट कैंसर के अधिकांश मामले ऐसी महिलाओं के हैं जिनकी शादी 23 से अधिक उम्र में हो रही हैं। देर से शादी और संतान होने से ब्रेस्ट की दूध वाली ग्रंथियां ठीक से काम नहीं करतीं। इससे नार्मल कोशिकाएं कैंसर में बदल जाती हैं। ग्रामीण महिलाओं में गर्भाशय के मुख का कैंसर हाइजीन मेंटेन नहीं करने से है। 
 


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