शहर के दारोगा पारा निवासी जैन गुजराती समाज की वरिष्ठ महिला सदस्य यशवंती मेहता की पार्थिव देह को परिजनों ने मेडिकल कॉलेज को सौंप दी। यशवंती 86 वर्ष की थीं। पति एलएन मेहता ने छह वर्ष पहले नेत्रदान किया था, उससे प्रेरित होकर प|ी यशवंती ने नेत्र, किडनी और अंगदान की घोषणा की थी। मेडिकल कॉलेज में किडनी डोनेशन की कोई व्यवस्था न होने से उनकी किडनी का डोनेशन नहीं किया जा सका। परिजनों ने बताया कि यशवंती मेहता के कमर के निचले हिस्से और कूल्हे का ऑपरेशन पिछले रायपुर में होने के बाद वे कुछ समय से अस्वस्थ चल रही थीं। बेटे हरीश मेहता ने बताया कि पिता का निधन 2014 में हुआ था, उन्होंने भी निधन के पहले नेत्रदान करने घोषणा की थी।
उनकी इच्छा के अनुसार उनके परिजनों ने आंख के डोनेशन का शहर में इंतजाम न होने की वजह से रायपुर मेडिकल कॉलेज में दोनों आंखों का डोनेशन किया था। मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसरों ने बताया कि मृत होने के बाद ऑर्गन डोनेशन के नियम में राज्य में कुछ पेचीदगियां हैं। रायगढ़ सहित प्रदेश के दूसरे मेडिकल कॉलेजों में भी ऑर्गन बैंक ऐसी व्यवस्था नहीं हैं। इससे सिर्फ आंख और अंग दान के अलावा कुछ भी ऑर्गन का दान नहीं हो सकता हैं। डॉक्टरों कहना हैं कि एनाटोमी एक्ट में देहदान करने का प्रावधान मेडिकल कॉलेजों में है और किडनी डोनेशन भी ऑर्गन डोनेशन नियमों में आता हैं। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने ऑर्गन डोनेशन और ट्रांसप्लांट के नियमों के साथ ऑर्गन बैंक बनाने के लिए कहा हैं। अंगदान और नेत्रदान करना सामाजिक और धार्मिक
दृष्टिकोण से अच्छा नहीं माना जाता हैं, ऐसी सोच अलग हटकर यशवंती मेहता ने अंगदान करने की घोषणा की थी। बेटे हरीश ने बताया कि मां 1948 में गणित और विज्ञान में हायर सेकंडरी की पढ़ाई पूरी की थी। विज्ञान की अच्छी समझ होने से सामाजिक और धार्मिक भावनाओं से हटकर उन्होंने मेडिकल छात्रों की पढ़ाई के लिए पूरा शरीर दान कर दिया है।
यशवंती मेहता
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