आज के जमाने भूकंप से डर नहीं लगता। डर तो केवल इस बात से लगता है कि कहीं जियो के टावर ना गिर जाएं।
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लो कर लो शेयर **
}पति वो प्राणी हैं जो चप्पल झाड़कर भी यह दिखाता है कि उसने पूरे घर की सफाई की है।
}उस आदमी को मूर्ख कोई नहीं बना सकता, जिसको अक्ल बादाम खाने से नहीं, मां की चप्पल खाने से आई हो!
}सरकारी नौकरी कलयुग का एकमात्र ऐसा ब्रह्मास्त्र है, जिसे फेंककर मारने पर सैकड़ों मील दूर से रिश्ते आने लगते हैं!
}पतियों को अपनी थकान तभी याद आती है, जब प|ी कहती है, ‘बैठो मुझे तुमसे कुछ बातें करनी हैं।’
}अच्छे दिन तो तब आएंगे जब किसी फिल्म में शादी का सीन चल रहा हो और वहीं वैधानिक चेतावनी लिखी आए – “इसे आप अपनी ज़िंदगी में खुद ट्राय ना करें।’
}हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां लोग 10 मिनट की मुलाकात में शादी फिक्स कर देते है, लेकिन 1-1 घंटे के पांच इंटरव्यू लेने के बाद भी नौकरी नहीं देते।
फनी लॉज़ प्रहलाह सिंह शक्तावत
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{आगरा में ट्रम्प की यात्रा के कारण 15 किमी के क्षेत्र को पूरा खाली करवा लिया गया।
– प्रशासन को डर था कि कहीं लोग डोनाल्ड ट्रम्प की गाड़ी के आगे आकर हैंडपंप लगवाने का ज्ञापन न दे दें।
{डोनाल्ड ट्रम्प को बदबू न आए, इसके लिए ताजमहल के पास यमुना नदी में 500 क्यूसेक पानी छोड़ा गया।
– इतनी व्यवस्थाओं को देखकर तो कहीं ऐसा न हो कि आगरा वाले ट्रम्प को आगरा से जाने ही नहीं दें।
{विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने मातृभाषा दिवस मनाने के निर्देश को अंग्रेजी में जारी किया।
– शायद उनके कम्प्यूटर में अंग्रेजी-हिंदी ट्रांसलेटर टूल ठीक से काम नहीं कर रहा होगा।
{अब आधार कार्ड से मतदाता परिचय पत्र को जोड़ा जाएगा।
– लगता है सरकार को जल्दी ही एक अलग विभाग बनाने की नौबत आ जाएगी जो सिर्फ आधार को सबसे लिंक करने का ही कार्य करेगा।
ह्यूमर ट्यूमर सौरभ**
पोएटिक फन
गोकुल सोनी**
आम आदमी
मैंने कहा- नेताजी,
एक रहस्य सुलझाइए
आप ‘जनता’ और
‘आदमी’ के पहले
‘आम’ शब्द क्यों लगाते हैं?
आपका हर भाषण
‘आम’ आदमी, ‘आम’ जनता
के लिए होता है
पर ‘आम’ आदमी है कि
फिर भी कष्टों से रोता है।
वे मुस्कराकर बोले-
अरे बुद्धू, इतना भी नहीं समझा
‘आम’ ही तो ऐसा फल है,
जो बड़े काम आता है
वक्त आने पर ‘चूस’
लिया जाता है
चूस लेने के बाद गुठली,
छिलका फेंक दिया जाता है।
प्रियतम
समय के साथ बदलती
परिभाषा को वैवाहिक संबंध
अच्छी तरह बताता है
व्यक्ति, शादी के पहले ‘प्रिय’
शादी के बाद ‘प्रियतम’
और बाद में सिर्फ ‘तम’
नजर आता है।
भगोना
होटल वाले ने पकड़ा चोर को
बोला- आंख बचाकर
तुम मुझे यूं ठगो ना
भगोना लेकर
यूं ‘भगो ना’।
हास्य बत्तीसी लहरी**
पिछले सप्ताह हमने यह फनी फोटो देकर पाठकों से कैप्शन आमंत्रित किए थे। पेश हैं कुछ चुनिंदा नॉनसेंस कैप्शन :
>एक गोरी, एक भूरी,
दो बिल्लियों ने सेल्फी निकाली। -सीरत, उदयपुर
>सौ मण मेकअप करके बिल्ली चली सेल्फी लेने…।
-जितेंद्र कुमार कुमावत
>खुश है झाडू़ के साथ दिल्ली, सेल्फी के साथ बिल्ली।
– प्रीति परिहार, जोधपुर
>बिल्लियां करने लगी लड़कियों से होड़। – विशाल पोरवाल
>तेरी-मेरी कहानी…जैसे सेल्फी पुरानी…।
-भारती वरलानी, जयपुर
>बिल्लियों का वैलेंटाइन डे।
– नीशू जैन
>लव आजकल।
– रश्मी चौरड़िया
>ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे, सेल्फी लेना हम नहीं छोड़ेंगे।
-रमेश वर्मा
>मेरी स्वैग वाली सेल्फी।
– राहुल बंजारा
>चल बिल्ले सेल्फी ले ले रे ….। -राजकुमार चारण/मुकेश मेघवाल/ जया उपाध्याय
>बिना पाउट के ये कैसी सेल्फी। – निकिता पाहुजा
>तू खींच मेरी फोटो… पिया! -प्रिया कुमारी
ये फोटो नॉनसेंस है **
इस हफ्ते का नॉनसेंस फोटो
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इस तस्वीर को देखकर आपके भी दिमाग में मजेदार कैप्शन आ रहे होंगे। तो भेज दीजिए [email protected] पर…
डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे की सारी तैयारियां हो गईं?
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जी, अगर वे बीजेपी जॉइन करना चाहें तो हमने तो उसकी भी तैयारी कर रखी है।
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जी हुजूर, पूरे शहर में ट्रम्प भैया मित्रमंडली नाम के हार्दिक स्वागत वाले बैनर लगवा देंगे।
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यदि आप कुछ दिन पहले आते तो बिग बॉस में जा सकते थे।
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पार्टी कार्यकर्ताओं से कहिएगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति के स्वागत में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।**
ताजमहल के अलावा और कौन-सी जगह है, जहां मैं जा सकता हूं?**
सेंसिबल मीम सौरभ जैन**
पिछली बार हमने बात की थी जनरल नायिका, पारिवारिक नायिका और कॉलेज जाने वाली नायिका के बारे में। आज बात करते हैं कुछ और नायिकाओं की।
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नायिका के कारण पता चला, नहाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है**
हैप्पीक्रेसी आश करण अटल
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>गांव की नायिका : गांव की नायिका अक्सर झील या पहाड़ी के उस पार रहा करती है, जो कहानी की डिमांड के हिसाब से कभी इस पार आ जाती है। अगर वह इस पार नहीं आ सकी तो नायक उस पार पहुंच जाता है। उसका जूड़ा बड़ा और घाघरी छोटी होती है। निर्देशक के अनुसार वह भोली और नादान होती है ,जबकि ऐसी लगती कहीं से भी नहीं है। इसका रूप-यौवन डिक्शनरी वाली नायिका के जोड़ का होता है। यह जब भी दिखती है, पनघट या खेतों में ही दिखती है। गांव की नायिका का घर में क्या काम? गांव की नायिका उस गांव में होती है, जिस गांव में एक दुष्ट लाला और एक जालिम ठाकुर होता है। नायिका का गांव बड़ा प्यारा होता है जो किसी एंगल से कश्मीर लगता है तो किसी एंगल से दार्जिलिंग।
गांव की नायिका ज्यादातर अपना दिल किसी परदेसी को देती है। इसी उम्मीद में कई शहरी युवकों ने गांव की तरफ प्रस्थान किया, पिकनिक के प्रोग्राम बनाए, लेकिन सभी को निराश लौटना पड़ा, क्योंकि फिल्मी गांव की नायिका फिल्मी गांव में ही पाई जाती है, असली गांवों में नहीं।
>नहाने वाली नायिका : नहाने वाली नायिका का फिल्मों को चलाने में बड़ा योगदान रहा है। जिस-जिस फिल्म में ये नायिका रही, उस-उस फिल्म ने जुबली मनाई। इसलिए यह कहा जाने लगा कि नहाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
नहाने वाली नायिका का अपना इतिहास रहा है। वह पहले भीगने वाली नायिका हुआ करती थी- ‘एक लड़की भीगी-भागी सी।’ जितना मजा नायिका को भीगने में आता, लगभग उससे दुगुना मजा दर्शकों को देखने में। नतीजा, नायिकाओं में भीगने की होड़ लग गई। एक साड़ी में भीग रही है, दूसरी सलवार कमीज में। उस होड़ को खत्म करने के लिए ही नहाने वाली नायिका ने अवतार लिया बिकनी में नहाने वाली नायिका के रूप में। इसका भारतीय रजत पट पर काफी समय तक एकछत्र राज रहा। इसी के बल पर फिल्में हिट होती रहीं।
>नर्तकी नायिका : इसका उद्भव कोठे पर हुआ। इसने कई साल तक स्क्रीन पर राज किया। कभी देवदास की “चंद्रमुखी’ बनकर, कभी पाकीज़ा की “पाकीज़ा’ बनकर तो कभी मुकद्दर का सिकंदर की “जोहरा’ बनकर। रूप और यौवन में वह डिक्शनरी वाली नायिका पर भारी पड़ती थी, लेकिन डिक्शनरी वाली नायिका की तरह राह दिखाने वाली या कहीं पहुंचाने वाली नायिका नहीं बन सकी, क्योंकि वह कोठे पर रहने वाली होती थी।
नर्तकी नायिका दर्शकों के दिलों में तो घर बनाने में सफल रही, लेकिन अपना घर कभी नहीं बसा सकी। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, परिवर्तन प्रकृति का नियम है। नायिका में परिवर्तन आया, फिर नृत्य में परिवर्तन आया। पहले नायिका कोठे पर नाचती थी, आजकल कॉलेज में नाचती है। पहले अकेली नाचती थी, अब भीड़ के साथ नाचती है। पहले नर्तकी नायिका होती थी, आजकल नायिका सिर्फ नर्तकी बनकर रह गई है।
पात्रों का पोस्टमार्टम
सिनेमाई
, रायगढ़, रविवार, 23 फरवरी, 2020
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