Tuesday, July 15, 2025
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coronavirus second wave for kids: कोरोना की नई लहर बच्चों के लिए ज्यादा खतरनाक? बच्चे में अगर दिखें ये लक्षण तो तुरंत कराएं टेस्ट – is coronavirus second wave more dangerous for kids know the symptoms

कोरोना महामारी ने एक बार फिर भारत में अपना कहर दिखाना शुरू कर दिया है। दूसरी लहर के बाद तेजी से बढ़ रहे संक्रमण के मामलों के बीच कहा जा रहा है कि Covid का नया स्ट्रेन बच्चों के लिए अधिक खतरनाक साबित हो सकता है। वहीं दूसरी ओर अभी तक किसी भी वैक्सीन को बच्चों पर इस्तेमाल के लिए मंजूरी नहीं मिली है। ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि नया स्ट्रेन बच्चों पर कैसे असर डाल सकता है और इसके कैसे लक्षण उनमें नजर आ सकते हैं।

शक्तिशाली होकर लौटा कोरोना

कोरोना के नए स्ट्रेन दुनियाभर के विशेषज्ञों को फिर से चिंता में डाल चुके हैं। भारत समेत कई देशों में कोरोना के मामले फिर से रफ्तार पकड़ने लगे हैं। वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि यह वायरस नए स्ट्रेन में और भी अधिक शक्तिशाली होकर लौटा है। पिछले स्ट्रेन से जहां बच्चों को इतना खतरा नहीं था, वहीं नए स्ट्रेन बच्चों के लिए भी अधिक खतरनाक हो गया है। सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि भारत और दुनियाभर में कई शैक्षणिक संस्थान खुल गए हैं, जबकि ऐसी अब तक कोई भी वैक्सीन नहीं बनी है जिसकी खुराक बच्चों को दी जाने की मंजूरी मिली हो।

नया स्ट्रेन बच्चों पर कर रहा असर

कोरोना को लेकर जारी कई स्टडीज और रिसर्च के मुताबिक, नया स्ट्रेन पहले के मुकाबले अधिक शक्तिशाली और खतरनाक है, जो आसानी से इम्यून सिस्टम और एंटीबॉडीज़ से बचकर शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है। पहले जहां देखा जा रहा था कि सिर्फ बड़े ही इससे प्रभावित हो रहे थे, वहीं अब शैक्षणिक संस्थानों से सामने आती रिपोर्ट्स दिखाती हैं कि अब बच्चे भी इसका शिकार होने लगे हैं। कुछ महामारी विशेषज्ञों का मानना है कि नया स्ट्रेन बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को पार कर आसानी से नुकसान पहुंचा सकता है।

भारत, जो अब कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रहा है, उसमें यंगर ऐज ग्रुप के संक्रमित मरीजों का सबसे बुरा आंकड़ा बेंगलुरु के एक स्कूल में देखने को मिला, जहां इस वायरस ने 400 बच्चों को अपनी चपेट में ले लिया। बच्चों में संक्रमण के मामले और भी कई जगहों से लगातार सामने आ रहे हैं।

व्यस्कों से पहले दिख रहे बच्चों में लक्षण

COVID के नए वैरिएंट्स , फिर चाहे वह भारत और यूके का डबल म्यूटेंट वैरिएंट हो या फिर ब्राजिलियन वैरिएंट, इनमें जेनेटिक मेक-अप की क्षमता है, जो वायरस को व्यक्ति के शरीर में प्रवेश और अहम सेल लाइनिंग पर हमला करने देता है। इससे संक्रमण के लिए ज्यादा तेजी से फैलना आसान हो जाता है।

कोविड के नए स्ट्रेन से संक्रमित होने वाले बच्चों पर अभी ज्यादा रिसर्च भले ही नहीं की गई है, लेकिन एक्सपर्ट का मानना है कि वायरस के न्यू स्ट्रेन्स पहले के मुकाबले अधिक संक्रामक हैं। इससे प्रभावित होने पर पुराने लक्षणों से अलग लक्षण भी देखने को मिल सकते हैं, जो गंभीर स्थिति में लाते हुए मरीज को भर्ती होने पर मजबूर कर सकते हैं।

कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, सेकंड वेव के साथ रिवर्स ट्रेंड भी देखने को मिल रहा है। शुरुआत में जहां ये सवाल उठते दिख रहे थे कि बच्चों के कारण संक्रमण तेजी से फैलता है या नहीं? वहीं अब नए स्ट्रेन के सामने आने और परिवार व समूह के ज्यादा प्रभावित होते मामलों के बीच डॉक्टर्स ने ऐसे कई मामले रिपोर्ट किए हैं, जिनमें सामने आया कि व्यस्क से पहले बच्चों में संक्रमण के लक्षण जल्दी विकसित हुए और दूसरों में फैले। यही चीज टीनेजर्स और यंग अडल्ट के लिए भी कही जा सकती है, जिन्हें लेकर आशंका है कि वे वायरस के प्रमुख वाहक बनते जा रहे हैं।

बच्चों पर हो सकता है जानलेवा असर

बच्चों में कोरोना को लेकर एक ओर जहां रिसर्च जारी हैं, वहीं दुनियाभर में कई डॉक्टर्स ने उनमें सिम्टोमैटिक इंफेक्शन बढ़ने की आशंका जताई है। एक ओर जहां पहले बच्चों में वायरस के कम प्रभाव और एसिम्टोमैटिक केस देखने को मिल रहे थे, वहीं अब उनमें पहले के मुकाबले ज्यादा लक्षण देखे जा रहे हैं। खासतौर से ये मामले 2-16 के किड्स में अधिक हैं।

डॉक्टरों ने अस्पताल में भर्ती होने वाले संक्रमित बच्चों की बढ़ती संख्या पर भी चिंता जाहिर की है। उनके मुताबिक, इनमें Multisystem Inflammatory Syndrome (MIS-C), जो एक रेयर ऑटोइम्यून कंडिशन होती है से प्रभावित होने की आशंका है, जिससे मृत्युदर भी बढ़ सकती है।

Journal of Tropical Pediatrics (JTP) के मुताबिक, COVID-19 से संक्रमित हुए हर 3 में से 1 बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराने और ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। इनमें स्वास्थ्य से जुड़ी कई जानलेवा जटिलताएं भी विकसित हो सकती हैं। इस वजह से बच्चों के संक्रमित होने को भूल से भी हल्के में नहीं लेना चाहिए।

बच्चों में संक्रमण के बढ़ते मामलों का कारण

बड़ों और बच्चों में बढ़ते मामलों के पीछे कई कारण हो सकते हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, इनमें लापरवाही के साथ ही, स्कूल व अन्य शैक्षणिक संस्थानों का फिर से खुलना बड़ी वजह है। पिछले साल जहां स्कूल बंद थे और बच्चे घरों में ही थे, वहीं अब वे बाहर आने लगे हैं। प्ले एरिया, ग्रुप्स, ट्रैवलिंग में बढ़ा एक्सपोजर और हाइजीन व मास्क को लेकर लापरवाही भी बच्चों के ज्यादा संक्रमित होने के लिए जिम्मेदार है।

कोरोना के लक्षण जो बच्चों में दिख सकते हैं

Harvard Health की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना बच्चों की सेहत के लिए कई तरह से बुरा साबित हो सकता है। कुछ में इसके लक्षण दिख सकते हैं, तो ये भी हो सकता है कि उनमें सिम्प्टम्स न दिखें। वहीं, ऐसे बच्चे जिनमें क्रोनिक इम्यूनिटी प्रॉब्लम है उनके लिए यह समस्या और भी जटिल हो सकती है। बहरहाल, कोरोना के जो सबसे आम लक्षण खांसी, बुखार, जुकाम और सिरदर्द ही हैं।

हालांकि, अब जब कोरोना के मामले फिर से तेजी से बढ़ रहे हैं, ऐसे में नए तरह के लक्षणों को भी इग्नोर न करते हुए और टेस्ट जरूर कराना चाहिए। बच्चों में बड़ों से अलग लक्षण भी देखने को मिल सकते हैं। नीचे दिए गए लक्षणों में से अगर कोई भी आपको अपने बच्चे में नजर आए, तो टेस्ट कराने में ही भलाई है।

  • बुखार का बने रहना
  • त्वचा पर चकत्ते, कोविड टोज़
  • आंखें लाल होना
  • शरीर या जोड़ों में दर्द
  • उल्टी जैसा होना, पेट में ऐंठन या इससे संबंधित अन्य समस्या
  • फंटे होठ, चेहरे और होठों पर का नीला पड़ना
  • इरिटेशन
  • थकान, सुस्ती और अधिक नींद आना

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कोरोना के लक्षण छोटे शिशुओं में भी दिख सकते हैं। ऐसे जो या तो पैदा हुए हैं और एक साल से भी छोटे हैं।

  • त्वचा पर अलग रंग के पैच नजर आना
  • बुखार
  • भूख न लगना या चिड़चिड़ापन
  • उल्टी
  • मांसपेशियों में दर्द
  • होठों व त्वचा में सूजन
  • छाले होना

बच्चों की वैक्सीन कब?

बच्चों पर 100 प्रतिशत असर करे ऐसी वैक्सीन बनाने में अभी एक साल तक का समय लग सकता है। एक ओर जहां अभी तक 16 साल तक के बच्चों के लिए कोई टीका नहीं है, वहीं दूसरी ओर इसे लेकर ट्रायल लगातार जारी हैं। Moderna Inc. 2-12 साल के प्रतिभागियों पर डोज़ का ट्रायल जारी रखे है, वहीं Pfizer’s की mRNA, जो अभी भी वैक्सीन के बच्चों पर प्रभाव को लेकर स्टडी पीरियड में है, उसे 12-15 साल के बच्चों पर 100 प्रतिशत प्रभावी पाया गया है। इसके साथ ही नवजातों के लिए टीके को लेकर भी स्टडीज़ लगातार जारी है।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


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