रायपुर. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के पर्व बड़े त्योहारों में माना जाता है. साल में एक मात्र यही दिन होता है जब बिना मुहूर्त के ही शादी (Marriage) की जाती है. यही वजह है कि अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त भी कहा जाता है. अब तक इस दिन यदि आप राज्य भर की फेरी मारते तो हर गांव में एक शादी तो जरूर नजर आ ही जाती. जानकारों की मानें तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ऐसा पहली बार होगा कि राज्य में इस दिन शहनाई नहीं बजेगी.
कोरोना महामारी के वैश्विक संकट काल में यह स्थिति भी लोगों को देखनी पड़ रही है. शहर के ज्योतिष दत्तात्रेय होसकरे के मुताबिक हिन्दू धर्म के मुताबिक अक्षय तृतीया को सतयुग के शुभारंभ का दिन माना जाता है. वहीं इसी दिन भगवान परशुराम का भी अवतरण हुआ था. हयग्रीव जिन्हें बुद्धि का देवता माना जाता है समुद्र मंथन के दौरान उनका भी इस दिन प्रादुर्भाव हुआ थ. यही वजह है कि इस दिन को अबूझ मुहूर्त माना जाता है. साथ ही मान्यता होती है कि इस दिन यदि शादी या कोई भी शुभ संस्कार किया गया तो उसका फल अक्षय होता है.
पंडितों की मानें तो…..
उनका कहना है कि लोगों के फोन अब तक घनघनाते रहे कि क्या कोई और तरीका हो सकता है. मैंने कहा कि बहुत जरूरी हुआ तो केवल लड़का, लड़की और माता पिता मिलकर घर में शादी करा लें. भीड़ इकट्ठी न करें. जरूरी नहीं होता कि अक्षय तृतीया को मुहूर्त हो लेकिन इस बार तो मुहूर्त भी है. ऐसे में लोग इससे चूकना नहीं चाहते.
गहनों की खरीदी भी काफी कम हो गई है. (Demo Pic)
होती थी हजारों शादी
यह मुख्यतौर पर किसानों का राज्य है. यहां जुलाई से नवम्बर तक खेती की जाती है. वहीं फसल बेचकर पैसा करीब दिसम्बर से जनवरी तक आता था. ऐसे में शादियां 15 अप्रैल से लेकर जुलाई तक ही की जाती हैं. वहीं, इनमें सबसे ज्यादा शादियां अक्षय तृतीया को होती थी.
प्रियाशरण त्रिपाठी का कहना है कि जिन्होंने इस दिन शादी तय की थी उन्हें इस बात की भी चिंता है कि कैटरर्स से लेकर मैरिज हॉल तक बुक कराने जो एडवांस जमा किया था वह वापस होगा या नहीं. वो लोग कैसे अपनी अन्य बुकिंग में हमारी तारीखें एडजेस्ट होंगी. ऐसे में सरकार को इसके लिए भी एक नियम जारी करना चाहिए.
राजधानी रायपुर के सुमित ज्वेलर्स के अशोक कांकरिया का कहना है कि इस बार जो नुकसान हुआ है उसका आंकलन करना मुश्किल है.
सराफा व्यापारियों का भारी नुकसान
सराफा व्यवसायियों की मानें तो इस दिन को लेकर कई लोगों की इस तरह आस्था होती थी कि पहले से दुल्हन के गहने तैयार कर रखवाते थे. वहीं शादी के दिन ही ले जाते थे. राजधानी रायपुर के सुमित ज्वेलर्स के अशोक कांकरिया का कहना है कि इस बार जो नुकसान हुआ है उसका आंकलन करना मुश्किल है. जिन लोगों ने अक्षय तृतीया को शादी तय की थी उन्होंने आगे बढ़ा दी. पहले से आर्डर रहता था वह सब डंप पड़ा है. अशोक कांकरिया का कहना है कि हर साल इस दिन सांस लेने की भी फुरसत नहीं होती थी. पूरा बाजार तैयार रहता था.
वहीं, राजधानी रायपुर के ही सन एन्ड सन ज्वेलर्स के मोनू शर्मा का कहना है कि 2008 से अब तक अक्षय तृतीया कभी खाली नहीं गया. लगभग लोगों ने शादियां आगे बढ़ा दी हैं, हो सकता है कई पूरे साल भर के लिए ही आगे बढ़ा दी हो. उनका भी कहना है कि इस बार नुकसान का आंकलन मुश्किल है. यही हाल मैरिज हॉल वालों का भी है. रायपुर के वीआईपी रोड में स्थित निरंजन धर्मशाला के ट्रस्टी सुभाष अग्रवाल का कहना है कि इस मैरिज हॉल को बने 18 साल हो गए. वाकई पहली बार है कि अक्षय तृतीया को यह हाल खाली है. मैंने खुद 60 सालों में ऐसा पहली बार देखा है.
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