- घटना 30 मार्च की है, सीनापाली के स्वास्थ्य कार्यकर्ता गोपाल सूर्यवंशी ने गोहरापदर निवासी बेलमती पति हेम कुमार को प्रसव पीड़ा के दौरान देवभोग सीएचसी में भर्ती कराया
- डॉक्टरों ने गर्भवती का परीक्षण कर जुड़वां बच्चों की जानकारी दी तथा प्रसव को असामान्य बताकर हायर सेंटर यानी गरियाबंद के लिए रेफर कर दिया, जो देवभोग से 121 किमी दूर है
दैनिक भास्कर
Apr 03, 2020, 03:43 AM IST
देवभोग. देवभोग सीएचसी को कोख में जुड़वा बच्चा होने से प्रसव कराना मुश्किल हो गया। देवभोग से पीड़िता को पास के ओ़डिशा स्थित धर्मगढ़ अस्पताल रेफर कतर दिया गया लेकिन वहां पहुंचने से पहले उसे ओडिशा प्रशासन ने रास्ते में रोक दिया। पीड़िता व परिजन को 6 घंटे तक इंतजार करने के बाद भी अनुमति नहीं मिली तो वे करीब 200 किमी का चक्कर लगाकर गरियाबंद, राजिम होते हुए अभनपुर के एक निजी अस्पताल पहुंचे लेकिन तब तक एक मासूम ने कोख में ही दम तोड़ दिया। दूसरे बच्चा व मां अभी चिकित्सकों की देख रेख में है।
कोरोना वायरस के भय के बीच जब मदद और मानवीय पहलुओं से जुड़ी कई सकारात्मक खबरें आ रहीं हैं तब ये खबर समूची व्यवस्था को झकझोरने वाली है। इस पूरी भागदौड़ में पीड़िता का खर्च 5 गुना बढ़ गया। जिलाबंदी में ओडिशा कालाहांडी प्रशासन की सख्ती गर्भवती माता की जान पर बन आई। घटना 30 मार्च की है, सीनापाली के स्वास्थ्य कार्यकर्ता गोपाल सूर्यवंशी ने गोहरापदर निवासी बेलमती पति हेम कुमार को प्रसव पीड़ा के दौरान देवभोग सीएचसी में भर्ती कराया।
वहां मौजूद डॉक्टरों ने गर्भवती का परीक्षण कर जुड़वां बच्चों की जानकारी दी तथा प्रसव को असामान्य बताकर हायर सेंटर यानी गरियाबंद के लिए रेफर कर दिया, जो देवभोग से 121 किमी दूर है। सामान्यतः रेफर के बाद इस इलाके के लोग गरियाबंद न जाकर कालाहांडी के धर्मगढ़ अस्पताल ही जाते हैं, क्योंकि वह मात्र 15 किमी दूर है, सो इस परिवार ने भी यही किया। शाम करीबन 7.30 बजे 102 से पीड़िता को लेकर 6 किमी दूर ओडिशा की संधिकोलिहारी सीमा पर मौजूद पुलिस ने इन्हें रोक लिया जबकि इनके पास रेफर लेटर था।पीड़ित परिवार मिन्नत करता रहा पर जवानों ने एक न सुनी।
स्वास्थ्य कर्मी सूर्यवंशी ने बताया कि रात 12 बजने को थे लेकिन उन्हें केवल अनुमति मिलने का आश्वसन दिया जा रहा था और इधर पीड़ा बढ़ रही थी। गर्भवती बेलमती बार-बार बेहोशी की हालत में जा रही थी। पीड़ितों ने लौटना मुनासिब समझा और देवभोग आकर 102 वापस कर दी तथा रात को ही एक किराए की गाड़ी से गरियाबंद पहुंचे।
गरियाबंद के सरकारी अस्पताल ने भर्ती ही नहीं किया
पति हेम कुमार ने बताया कि 120 किमी सफर तय कर सुबह 4 बजे जिला अस्पताल गरियाबंद पहुंचे पर पीड़िता को किसी ने भर्ती नहीं किया। राजिम के निजी नर्सिंग होम में उन्हें मदद मिली। जांच के बाद राजिम से एंबुलेंस से अभनपुर स्थित एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती किया। वहां के डॉ. प्रज्ज्वल सोनी ने बताया कि गर्भ में मौजूद दो बच्चों में से एक की मौत हो चुकी थी, दूसरे का सुरक्षित प्रसव कराया गया। डॉ. सोनी ने बताया कि केस देखकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाते, घंटे भर का विलंब होता तो दूसरा नवजात व माता की जान खतरे में पड़ जाती। दोनों को सप्ताह भर निगरानी में रखा गया है। पति हेम ने बताया कि खर्च 5 गुना बढ़ गया पर ओडिशा पुलिस बर्ताव असहनीय पीड़ा देने वाला है।
अफसर बोले- अनिवार्य केस नहीं रोके जाएंगे
मामले में धरमगढ़ एसडीएम पद्मनाभ बेहेरा ने कहा कि कोई रेफरल पर्ची हो या एसडीएम से लिखा हुआ तो मेडिकल आवश्यकता वालों को आने जाने की छूट है। देवभोग एसडीएम भूपेंद्र साहू ने कहा कि इस तरह की बातें सामने आने के बाद ओडिशा प्रशासन से बात की गई है। उनके यहां के इमरजेंसी वालों को हमने छूट दी है। साहू ने कहा कि मेडिकल जांच के लिए जाने वाले बीएमओ से संपर्क कर सकते हैं या सीधे मेरे मोबाइल पर बात कर सकते है। अनिवार्य केसों को रोका नहीं जाएगा।
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