Friday, March 29, 2024
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Rs 1 crore rewarded Maoist Rama krishna rk dies read How a simple teacher become terrorist Naxalite cgnt – 1 करोड़ के इनामी माओवादी रामकृष्ण की मौत, पढ़ें

रायपुर. माओवादियों (Maoist) के शीर्ष नेतृत्व के अहम सदस्य अक्किराजु हरगोपाल उर्फ रामकृष्ण (Ramkrishna) उर्फ आरके की मौत हो गई है. 63 साल की उम्र में रामकृष्ण की मौत बीते 14 अक्टूबर को किडनी फेल होने के कारण हुई. लंबे समय से आरके माओवादियों के सेंट्रल कमेटी का सदस्य था. रामकृष्ण उर्फ आरके (RK) पर सरकार ने 1 करोड़ रुपये के इनाम घोषित कर रखे थे. माओवादियों के सेंट्रल कमेटी प्रवक्ता अभय ने शनिवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर रामकृष्ण की मौत होने की जानकारी पुष्ट की. अभय ने विज्ञप्ति में बताया है कि 14 अक्टूबर 2021 की सुबह 6 बजे सेट्रल कमेटी सदस्य आरके की मौत हो गई. इसी दिन दोपहर में आरके के शव का माओवादियों ने दाह संस्कार कर दिया. रामकृष्ण की मौत कहां हुई और दाह संस्कार कहां किया गया, प्रेस विज्ञप्ति में इसका कोई जिक्र नहीं है. हालांकि सूत्र बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में सुकमा जिले के सीमावर्ती इलाके में उसकी मौत हुई है.

बता दें कि रामकृष्ण सेंट्रल कमेटी मेंबर के साथ ही AOBSZC का सेक्रेटरी रहते हुए सुरक्षा बलों और सरकार के लिए चुनौती बन गया था. बताया जाता है कि माओवादियों की ओर से किए जाने वाले लगभग हर बड़ी वारदातों में इसकी भूमिका रही है. बताया जाता है कि सुरक्षा एजेंसियों की सूची में रामकृष्ण एक बड़ा दहशतगर्त था.  साल 2018 में उसे सेंट्रल कमेटी पोलित ब्यूरो का मेंबर बनाया गया था.

संगठन में रहते की शादी
माओवादियों की ओर जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक संगठन में रहते हुए ही आरके का विवाह नक्सली सिरीशा से हुआ था. इन दोनों से एक बेटा मुन्ना (पृथ्वी) हुआ. मुन्ना भी माओवादी बना, जो साल 2018 में उड़ीसा के मलकानगिरी जिले के रामगुड़ा में सुरक्षा बलों के साथ हुई एक एनकाउंटर में मारा गया था. प्रेस नोट में बताया गया है कि किडनी की बीमारी के इलाज के लिए आरके का डायलिसिस शुरू किया गया था. इसी प्रक्रिया के बीच उसकी किडनी फेल हो गई, जिससे मौत हुई. रामकृष्ण को स्वास्थ्य से जुड़ी दूसरी समस्याएं भी थीं.

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सरकार से चर्चा के बाद सुर्खियों में आया
बता दें कि साल 2004 में आंध्र प्रदेश की तत्कालीन वाएस राजशेखर रेड्डी सरकार के साथ माओवादियों की एक शांति वार्ता हुई थी, जिसका माओवादियों की ओर से सेंट्रेल कमेटी मेंबर रामकृष्ण ने ही नेतृत्व किया था. इस वार्ता के बाद रामकृष्ण को एक अलग पहचान मिली थी. राष्ट्रीय स्तर पर रामकृष्ण सुर्खियों में आया. हालांकि सरकार के साथ की गई ये शांतिवार्ता असफल हो गई थी. इसका कोई परिणाम नहीं निकला.

शिक्षक से कैसे बना नक्सली?
गौरतलब है कि आरके उर्फ रामकृष्ण का जन्म साल 1958 में आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के पलनाड क्षेत्र में हुआ था. इसके पिता स्कूल टीचर थे. पढ़ाई में रुचि रखने वाले रामकृष्ण ने वारंगल से 1978 में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. इसके बाद कुछ समय तक अपने पिता के साथ एक शिक्षक के रूप में गुंटूर में ही सेवा दी. इसी दौरान नक्सल आंदोलन से आरके आकर्षित हो गया. साल 1980 में माओवादियों के गुंटूर जिला पार्टी सम्मेलन में भाग लिया. 1982 एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में नक्सलियों की पार्टी में शामिल हुआ. पार्टी ने रामकृष्ण को 1986 में गुंटूर के जिला सचिव बनाया. इसके बाद 1992 में वे राज्य समिति के सदस्य उसे चुना गया.

रामकृष्ण ने 4 साल तक दक्षिण तेलंगाना आंदोलन का नेतृत्व किया. वह 2000 में आंध्र प्रदेश के लिए माओवादियों का राज्य सचिव भी बनाया गया. इसके बाद जनवरी 2001 में 9वीं लोक युद्ध कांग्रेस की केंद्रीय समिति का सदस्य रामकृष्ण को बनाया गया. साल  2018 में रामकृष्ण को माओवादियों के केंद्रीय समिति द्वारा पोलित ब्यूरो में नियुक्त किया गया था.

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