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Thursday, November 13, 2025
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बांधवगढ़ किले में मनाई गई श्री कृष्ण जन्माष्टमी।

उमरिया – आइए आज आपको ले चलते हैं विश्व प्रसिद्ध बांधवगढ़ के किले पर अभी तक आपने वन्य जीवों के लिए बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व को जाना है। आज आपको यहां के किले और भगवान बाँधवाधीश के बारे में बताते हैं।लोगों के आस्था का अपना अलग – अलग तरीका होता है, कोई शहर में बने मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना करता है तो कोई घर में लेकिन जहां हजारों श्रद्धालु पुरातन काल से घने जंगलों के बीच पहाड़ पर जाकर भगवान कृष्ण का जन्म उत्सव पर्व मनाते हैं। आज हम आपको वहीं ले चलते है। वह भी विष्व प्रसिद्ध स्थल है बांधवगढ का किला।   ये खूबसूरत वादियां, घास के बड़े – बड़े मैदान और चारों ओर फैली हरियाली… हम ये किसी जंगल की सैर नहीं करा रहे हैं…. बल्कि जन्माष्टमी के मौके पर एक ओर जहां पूरा देश गोविन्दाओं का करतब देखने में मशगुल है वहीं हम आपको ले चलते हैं घने जंगलों के बीच मनाये जाने वाले जन्माष्टमी पर्व की झलक दिखाने…

दर असल बाघों की घनी आबादी के लिये मशहूर बांधवगढ टाईगर रिजर्व के बीचो – बीच पहाण पर मौजूद है बांधवगढ का ऐतिहासिक किला। इस किले के नाम के पीछे भी पौराणिक गाथा है कहते हैं, भगवान राम ने वनवास से लौटने के बाद अपने भाई लक्षमण को ये किला तोहफे में दिया था, इसीलिये इसका नाम बांधवगढ यानि भाई का किला रखा गया है। वैसे इस किले का जिक्र पौराणिक ग्रन्थों में भी है। स्कंध पुराण और शिव संहिता में इस किले का वर्णन मिलता है।

बांधवगढ की जन्माष्टमी सदियों पुरानी है पहले यह रीवा रियासत की राजधानी थी, तभी से यहां जन्माष्टमी का पर्व धूम – धाम से मनाया जाता है और आज भी ईलाके के लोग उस परंपरा का पालन कर रहे है।बांधवगढ के किले पर मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के मेले में शामिल होने के लिये दूर – दूर से लोग पैदल चल कर आते हैं। ये है बांधवगढ टाईगर रिजर्व के मेन गेट, पर वन कर्मी लोगों की तलाशी लेकर पर्यावरण की सुरक्षा के लिये पोलीथीन को गेट के अंदर ले जाने से रोक रहे हैं। घने जंगल और चारो ओर लगी सुरक्षा व्यवस्था की बीच से चल करपहला पड़ाव आता है शेष शैय्या का। यहां लोग रुक कर कुंड का ठंडा पानी पीकर अपनी थकान मिटाते हैं, ताकि आगे की चढाई चढ सके। यहां भगवान विष्णू की भीमकाय लेटी हुई प्रतिमा की श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। ओर इस प्रतिमा के चरणों की ओर से एक झरने से अविरल धारा निकलकर कुंड में जमा होती रहती है।

यहां आराम के बाद लोग आगे बढते हैं, काफी खतरनाक रास्तों को पार करके दुर्गम रास्तों पर चल कर मिलती है लोगों को मंजिल जिसके लिये लोग इतनी परेशानी सहते हैं। पहाड़ पर कई द्वार हैं जो पहले इस किले की सुरक्षा के लिये बनाये गये थे और आज भी यह द्वार केवल जन्माष्टमी के दिन खुलता है बाकी पूरे साल बंद रहता है। द्वार को पार करने के बाद कई देवी – देवताओं की प्रतिमा मिलती है और भगवान विष्णू के सभी अवतारों की मूर्तियां भी यहां आकर्षण का केन्द्र हैं। इसकी पूजा के बाद लोग पहुंचते हैं राम – जानकी मंदिर में जो सैकड़ो साल से आज भी अपनी गौरव – गाथा सुनाने के लिये सीना ताने खड़ी है। यहां पत्थर का एक काफी बड़ा पीढा भी है जहां बैठ कर यहां के राजा कुदरत के नजारे देखा करते थे। इसी मंदिर में जन्माष्टमी का त्योहार पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ धूम – धाम से मनाया जाता है। पहले यहां रात में लोगों को रुकने की अनुमति थी लेकिन समय के साथ – साथ नियम भी बदलते जा रहे हैं, अभी बीच में श्रद्धालुओं की संख्या पर भी पार्क प्रबंधन ने प्रतिबंध लगा दिया था, वहीं अगर नहीं बदला है तो लोगों का अपने राजा के परम्परा को निभाने का तरीका और आस्था।

विगत वर्ष तो पार्क प्रबंधन श्रद्धालुओं की आस्था पर कुठाराघात करते हुए लोगों को भीतर नही जाने दिया था, लेकिन गत वर्ष लोगों और रीवा राजघराने के महाराज पुष्पराज सिंह और भाजपा से विधायक उनके पुत्र युवराज दिव्यराज सिंह के प्रयासों से आम जनता को जाने की अनुमति मिली तो मात्र 6 हजार लोग ही दर्शन कर पाये थे लेकिन इस वर्ष 11 हजार लोग बाँधवाधीश के दर्शन किये।वहीं बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के सहायक संचालक दिलीप मराठा ने बताया कि हमारे साथ पुलिस और राजस्व की टीम भी लगी है, हमारे विभाग के 300 कर्मचारी लगे हुए हैं और अन्य विभागों की जानकारी नहीं है, अभी तक 11 हजार लोग दर्शन कर चुके हैं। जगह – जगह पर हमारे लोग तैनात हैं, श्रद्धालुओं के लिए पानी, शौचालय, कूड़ेदान की व्यवस्था की गई है।

वहीं रीवा राज घराने के उत्तराधिकारी और भाजपा से विधायक दिव्य राज सिंह ने बताया कि आज जन्माष्टमी का पर्व मनाया गया है, हजारों वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है, कई सालों बाद यह भीड़ आज यहां आई है, मैं सभी श्रद्धालुओं को धन्यवाद देता हूँ कि सभी ने नियमों का पालन करते हुए दर्शन किया है और प्रशासन को भी धन्यवाद देता हूँ, हमारी यह परंपरा सदियों से चलती आ रही है और आगे भी चलती रहेगी। 650 वर्ष तो हमारे पूर्वजों को हो गया और उससे पहले का यह किला है, आज भी बांधव गद्दी हमारे किले में उसी की पूजा अर्चना हम और हमारा परिवार करता है, हमारा और प्रशासन का कार्य है लोगों के लिए व्यवस्था बनाना और प्रशासन ठीक से कार्य कर रही है।

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