Sunday, July 20, 2025
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Story in Chhattisgarhi on a womans nightmare – छत्तीसगढ़ी में पढ़ें

अतेक शूरवीर रेहे तब आघू कोती ले आते, देखे रहितेंव तोर मरदानगी ला. नइ तोर मुंह ला कोकम-कोकम के लहूलुहान कर दे रहितेंव तब महूं मोर बाप के बेटी नइ कहातेंव. अब का बतावौं, जौंन होना रिहिस तौंन तो होगे, फेर तोला छोड़वं नइ रे गड़वना, किरहा. मोर इज्जत मं आज तैं दाग लगा देस, सोचत होबे में गउंटिया के बेटा हौं, मोर बाप मालगुजार हे, फेर ओ सब ला भुला जा, बानी वाले महूं बेटी हौं. तुंहर गांव मं ससुराल आय हौं तब इज्जत बेचे लैे नइ आय हौं. बेचत होही तोर दाई, बहिनी, बहू, बेटी मन, फेर मोर गांव तुंहर गांव असन नंगरा नइहे, नइ ककरो आंखी दूसर के बहू-बेटी, बहिनी बर गडय़. गीता, गंगा बरोबर हे मोर गांव, सत-इमान, नियाव अउ परेम के झरना नित बहावत हे. अतराप मं हमर गांव के नांव बाजे हे.

परदा कूद के आय रिहिसे बड़े गउंटिया के बेटा मनसुखा. बहुत दिन ले मउका के ताक मं रिहिसे छितकीन के. बारी, बियारा, खेत-खार तक ओकर पीछा कर डरे रिहिस हे फेर अवइया-जवइया मन के मारे दार गलबे नइ करत रिहिसे. ओला अतको भान नइ होवन दिस के ओहर छितकीन के पीछा करत हे. पासा हिसाब लगा के खेलत रिहिस, के सांपों झन मरय अउ लाठी घला झन टूटय. एक दिन बने मउका मिलिस. ओकर घर के मन सबो झन सोमनाथ के मेला गे रिहिन हे. घर मं अक्केला छितकीन भर रिहिसे. मनसुखा ताक मं तो रहिबे करिसे. संझउती के बेरा हे, परदा कूद के बखरी मं आगे. ओहर छेना सुखाय रिहिसे तौंन ला लहुटावत रिहिसे. पीछू कोती ले कलेचुप आथे, ओकर आय के आरो घला नइ पइस, पांव घला नइ बाजिस, अउ साफी मं मुंह ला बांध के कुकरम कर डरिस.

अड़बड़ छटपटइस, हाथ-गोड़ मारिस, दूनो हाथ ला घला कइसनो करके डोरी मं बांध डरिस. कुछु नइ कर सकिस. जब जाय ले धरथे तब नागिन कस बिफरत आनी-बानी बखानत थाना मं जाके रिपोट कराय के बात कहिथे. ओहर जानथे, थाना जाहूं तिहों मोर सुनवई नइ होय. एकर बाप गांव के गउंटिया हे, सरपंच हे, बड़े नेता हे. गरीब के कोन सुनहीं, पंचायत के पंच मन घला इकर पक्छ लिही अउ मुही ला दोसी ठहरा दिही, मोरे चाल-चलन ऊपर दाग लगा दिही. ये गांव मं कहां के नियाव हे. मोर असन कतको बहू-बेटी ला ये गांव के मन बरबाद कर देहें. छेरी (बकरी), मुरगी असन मुरकेट के हलाल कर देथे.

जउन कोती ले आय रिहिसे तउने कोती ले अजरहा, किरहा, हा लहुटगे, अपन करिया मुंह ला लेके. दिन बुड़गे, चंदा उगे. तन-बदन मं आगी बरत हे ओकर. सोचथे ये शरीर ला रख के का करिहौं, जल के मर जथौं. इज्जत चले गय, तब सब चले गय. नारी-परानी के इज्जत हा तो सब ले बड़े धन, पूंजी होथे. जब उही नइ बाचिस तब ये जिनकी अकारथ हे. गोसइया ला का मुख देखाहौं?

दीया-बाती घला बारे (जलाय) बर भुलागे. बही-भुतही असन बड़-बड़ाय ले धर लिस. का करौं, का नइ करौं, अइसन उलटा-पुलटा विचार मन मं आय ले धरलिस. अतके बेर परछी मं कोन कोती ले एक ठन मुसुआ आगे तेकर ऊपर बिलई के नजर परगे. ओला हबके खातिर ओहर दउड़ाय ले धरलिस. जी-परान देके मुसुआ कहां जाके लुकाइस ते ओ बिलई गम नइ पइस. एकर मन के चरित्तर ला देखत छितकीन सोचथे- कतेक खराब ये दुनिया होगे हे, कोनो बने ढंग ले इंहां जी नइ सकत हे. सबके जी सांसत मं हे.

रंघनी-खोली कोती जाथे, फेर उहू कोती ले लहूट के अंगना मेर आ जथे. मचोली माढ़े रहिथे तेमा बइठके चंदा कोती फेर निहारे ले धर लेथे. ओ पूछथे- बहिनी, ये बता तोर बदन मं ओ दाग दीखत हे, ओहा का के दागे? दाग तो आज मोरो जीवन मं लग गे, धब्बा लग गे. वइसने कस तहूं ला लगे हे का? बहुत बेर ले टक लगा के देखथे, फेर कुछु जवाब नइ मिलस. बही कस तो होगे रिहिस. सोचत रिहिस, पूछे हौं तेकर जवाब ओहर दिही, फेर नइ कुछु जवाब मिलिस तहां ले जानगे, जा मोरे जइसे हाल तोरो हो हे तेकरे सेती तैं कुछु नइ बोलत हस.

अंगना मेर ले उठके कुरिया मं आके खटिया मं लझरंग ले परगे. भोजन-पानी के सब चेत हरागे. सोचे लगिस- गोसइंहा आही तेला का बताहौं? बतांव के नइ बतांवव? बतावत हौं तभो फधीता हे, अउ नइ बताहौं तब ककरो मुंह ले ये बात ला कहुं सुन डरही अउ घर आके मोला पूछही, तब का जवाब दे हौं? बात ला छुपाय हस, अतेक बड़े जुरूम होगे हे, अउ नइ बताय कइही तब ओला में मुख देखाय के काबिल नइ रइहौं. कतेक बड़े आफत मोर मुड़ी मं कचार देस भगवान. फूट-फूट के रोवत हे छितकीन. खटिया मं परे हे, रोवत हे, गुनत हे, सोचत हे. कतका बेर नींद परिस, गम नइ पइस. बिहनिया ओकर घर वाला आके उठाथे- अरे छितकीन, कइसन सोवत हस आज. पहाटिया आगे हे, गाय ला दुहे बर, कसेली मांगत हे, कहां रखे हस

सुरूज नारायण बग-बग ले उगे हे. कउंवा कांव-कांव करत हे, चिरई मन चींव-चींव नरियावत हे, छानही ले ओ छानही मं मेछरावत हे. अपन दुनो हथेली ले मुंह ढाप लेथे अउ कहिथे- अई हाय, कइसन ढंग के सपना देख डरेंव आज. शरमा जथे, कांही बता नइ सकय गोसइंया ला. जब तिखार के पूछथे तब सपना के पूरा बात ल फोर-फोर के बताथे. दुनो झन खिलखिला के हांस भरथे.

(परमानंद वर्मा वरिष्ठ पत्रकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)

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Tags: Chhattisgarh Articles, Chhattisgarhi News


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