नई दिल्ली: कोरोना संकट (Coronavirus) के बीच उत्तरी अफ्रीकी देश ट्यूनीशिया (Tunisia) में फंसे 25 भारतीयों को वापस लाने में स्थानीय सरकार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सभी भारतीयों को ट्यूनीशियाई सैन्य विमान में थाईलैंड और वियतनाम के रास्ते भारत लाया गया.
भारतीय मिशन की इस सफलता पर हमारे प्रधान राजनयिक संवाददाता सिद्धांत सिब्बल ने ट्यूनीशिया में भारत के राजदूत पुनीत रॉय कुंडल (Puneet Roy Kundal) से बातचीत की. इस दौरान, कुंडल ने ट्यूनीशियाई सरकार को धन्यवाद देते हुए बताया कि ट्यूनीशिया में भारतीय राजनयिक व्यक्तिगत रूप से हर हफ्ते देश में फंसे भारतीयों से बात कर रहे थे. इस बीच, भारत सरकार की तरफ से कहा गया है कि भारत में ट्यूनीशियाई सरकार का कोई अधिकारी नहीं फंसा है, लॉकडाउन से पहले ही सभी को वापस भेज दिया गया था.
सिद्धांत सिब्बल: दोनों देश COVID-19 संकट में कैसे सहयोग कर रहे हैं?
पुनीत आर. कुंडल: भारत और ट्यूनीशिया के बीच बहुत ही ऐतिहासिक संबंध है, जो 1958 में शुरू हुए जब ट्यूनीशिया को स्वतंत्रता मिली. COVID-19 से ट्यूनीशिया हमारी तरह प्रभावित नहीं है. अब तक यहां 1046 मामले सामने आये हैं, और 47 मौतें हुई हैं. इसलिए वे इसे नियंत्रण में रखने में कामयाब रहे हैं. यहां की सरकार भारत जैसे रणनीति को अपना रही है. जैसे लॉकडाउन, उड़ानों पर प्रतिबंध, और विभिन्न शहरों के बीच आवाजाही पर रोक. ट्यूनीशिया भारत से कुछ दवाएं उपलब्ध कराने का अनुरोध करने की तैयारी में है, हालांकि हमारे पास अभी तक कोई औपचारिक अनुरोध नहीं आया है. हम ट्यूनीशियाई स्वास्थ्य पेशेवरों को COVID-19 महामारी से लड़ने में मदद करने के लिए ई-आईटीईसी पाठ्यक्रम प्रदान करने में स्थानीय सरकार के साथ सहयोग कर रहे हैं.
इस महामारी में ट्यूनीशिया के लिए कुछ बहुत अच्छी चीजें सामने आई हैं, इनमें से ज्यादातर पर विदेशी मीडिया का ध्यान गया है. जैसे यहां लॉकडाउन को सख्ती से लागू करवाने के लिए रोबोट व्हीकल का इस्तेमाल किया गया. साथ ही वे अस्पताल में मरीजों की जांच के लिए भी रोबोट इस्तेमाल कर रहे हैं. ट्यूनीशिया ने एक वेब-आधारित प्लेटफ़ॉर्म भी बनाया है जो फेफड़ों के एक्सरे को स्कैन करता है और पता लगाता है कि किसी व्यक्ति में कोरोना है या नहीं. दूसरे शब्दों में कहें तो वे संकट से निपटने में काफी हद तक सफल रहे हैं. हमारे लिए सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने 25 भारतीयों नागरिकों के सैन्य विमान से वापस भेजने की व्यवस्था की. विमान 21 मई को ट्यूनीशिया से रवाना हुआ और 22 को भारत पहुंच गया.
सिद्धान्त सिब्बल: क्या आप फंसे हुए भारतीयों को ट्यूनीशियाई सैन्य विमान से वापस लाने के अभियान के बारे में कुछ और बता सकते हैं?
पुनीत आर. कुंडल: जब वंदे भारत मिशन शुरू हुआ, तो विदेशों में फंसे भारतीय, खासकर ब्लू कॉलर कर्मचारियों वापस लाने पर ध्यान केंद्रित किया गया. हमारे यहां ऐसे केवल 45 भारतीय थे, जिन्हें फंसे हुए भारतीय नागरिकों की श्रेणी में रखा गया था. भारत के 10 अलग-अलग राज्यों से आने वाले इन 45 लोगों के लिए फ्लाइट की व्यवस्था करना एक कठिन काम था.
ट्यूनीशिया अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए विमान भेज रहा था. हम इंतजार में थे कि यदि उसका कोई विमान भारत या पूर्व में कहीं जाता है तो हम मदद मांग सकते हैं. हमें 3 दिन पहले बताया गया कि सेना का एक मालवाहक विमान वियतनाम और थाईलैंड जा रहा है और दिल्ली में फंसे ट्यूनीशियाई नागरिकों को वापस लेकर आएगा. जानकारी मिलते ही हम तुरंत हरकत में आये और हमने दिल्ली में ट्यूनीशिया के दूतावास से संपर्क किया, हमने यहां विदेशी कार्यालय से संपर्क किया और उनसे विमान में भारतीयों को जगह देने का अनुरोध किया.
25 भारतीयों ने इस विमान से वापस जाने में दिलचस्पी दिखाई. वे ट्यूनीशिया के 4-5 शहरों में फैले हुए थे. लिहाजा हमने पूरे देश में संबंधित अस्पतालों से संपर्क किया और सुनिश्चित किया कि उन्हें टेस्ट में किसी तरह की परेशानी न हो. फिर हमने उनके ट्यूनिस आने की व्यवस्था की और राजधानी में उनके लिए एक होटल बुक किया. विमान के उड़ान भरने वाले दिन मैं हवाई अड्डे पर था और यह सुनिश्चित किया कि किसी को कोई समस्या न हो. मैं कहना चाहूँगा कि प्रक्रिया बेहद आसान थी और दूतावास, सभी कर्मचारियों ने कड़ी मेहनत की.
सिद्धान्त सिब्बल: फंसे हुए भारतीयों तक सहायता कैसे पहुंची?
पुनीत आर कुंडल: हमने एक 24X7 हेल्पलाइन शुरू की और हमने सभी का दूतावास में पंजीकरण करवाया. इसके अलावा, हम प्रत्येक फंसे हुए भारतीय से सप्ताह में दो बार बात करते थे. ऐसा इसलिए संभव हो सका क्योंकि उनकी संख्या कम थी. हमने यहां अपना कांसुलर ऑफिस असाइन किये, जो सप्ताह में एक या दो बार प्रत्येक व्यक्ति से बात करता था. मैंने व्यक्तिगत रूप से उनमें से कुछ लोगों से बात की, इसमें एक 19 वर्षीय मेडिकल स्टूडेंट भी शामिल था, जो एक स्थानीय परिवार के साथ रह रहा था.
मुझे उस परिवार को धन्यवाद कहना चाहिए, क्योंकि उसी ने मेडिकल स्टूडेंट के खाने, रहने की व्यवस्था की, करीब 2 महीनों तक उसकी अच्छे से देखभाल की. अधिकांश प्रोफेशनल थे, इसलिए पैसों की कोई समस्या नहीं थी. लेकिन उनसे रोजाना बात करना, उनकी उम्मीद बढ़ाना, यह विश्वास जागृत करना कि उन्हें कुछ नहीं होगा, चुनौतीपूर्ण काम था.
सिद्धान्त सिब्बल: भारतीय राजनयिकों के लिए जीवन कैसा रहा है, डिजिटल डिप्लोमेसी पर कितना भरोसा बढ़ा है…
पुनीत आर. कुंडल: जीवन अब डिजिटल है, हमने वास्तव में बहुत सारी गतिविधियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरित कर दिया है. मैं कहना चाहूंगा कि पूरी प्रक्रिया भारत के प्रधानमंत्री से शुरू हुई, जिन्होंने उसे सार्क नेताओं तक पहुंचाया. G20 देशों तक पहुंचाया, हमारे विदेशमंत्री एफएम एस जयशंकर ने डिजिटल तकनीक का उपयोग करते हुए सभी समकक्षों तक पहुंच बनाई, जो वास्तव में हमें प्रेरित करता है. देश में डिजिटल ढांचा अच्छा है. हमने बहुत सारी डिजिटल गतिविधियों को ऑनलाइन स्थानांतरित कर दिया है. काम की गति थोड़ी कम हो गई है, लेकिन हमने गतिविधि को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है.
हमने ट्यूनीशिया को ITEC प्रोग्राम की पेशकश की है. 120 ट्यूनीशियाई हर साल भारत आते थे. COVID-19 के बाद यह संभव नहीं था इसलिए हमने इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से उन्हें COVID पर ट्रेनिंग प्रदान की. मैं आपको बताना चाहूंगा कि 6 ट्यूनीशियाई नागरिक लॉकडाउन से ठीक पहले भारत में थे, लेकिन लॉकडाउन की घोषणा से पहले हम उन्हें वापस भेजने में सफल रहे. यह भी ध्यान देने योग्य बात थी कि हमने सुनिश्चित किया कि ट्यूनीशियाई सरकार का कोई भी अधिकारी या प्रशिक्षु भारत में न फंसा रहे.
सिद्धान्त सिब्बल: डिजिटल कूटनीति पर फोकस बढ़ा, लेकिन आप दोनों देशों के बीच संबंधों को कैसे देखते हैं, खासकर COVID-19 के बाद?
पुनीत आर. कुंडल: डिजिटल डिप्लोमेसी कायम रहेगी. हम दोनों ही इस बात को समझते हैं. जैसा कि मैंने कहा, ट्यूनीशिया में एक अच्छा डिजिटल बुनियादी ढांचा है. वे बहुपक्षीय संगठनों और मंचों के साथ डिजिटल रूप से बहुत सारी बातचीत कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि बहुत जल्द हमारे विदेश मंत्री और ट्यूनीशियाई विदेश मंत्री के बीच एक टेलीफोन पर बातचीत होगी. दिल्ली में हमारे विदेश मंत्रालय द्वारा भी इस पर संज्ञान लिया गया है और हम आशा करते हैं कि बहुत जल्द ही हमारी कुछ डिजिटल बैठकें होंगी, जिन पर हमें जीवन सामान्य होने से पहले गर्व होना चाहिए.
ट्यूनीशिया और भारत में 445 मिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार है. हमारे पास एक द्विपक्षीय निवेश परियोजना है, जिसे ट्यूनीशिया इंडिया उर्वरक संयंत्र कहा जाता है और भारत संयंत्र के उत्पादन का 100% खरीदने के लिए प्रतिबद्ध है. TATA और महिंद्रा जैसी बड़ी कंपनियां यहां वाहनों का उत्पादन करती हैं, हमारे पास इलेक्ट्रिकल कंपनियां हैं. वास्तव में, मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि 20 तारीख को एक भारतीय कंपनी ने यहां सबस्टेशन बनाने का कॉन्ट्रैक्ट जीता है. COVID19 के बाद भी विशेष रूप से आर्थिक और व्यापार क्षेत्र में द्विपक्षीय बातचीत जारी रहेगी.
कुछ वक़्त पहले भारतीय विदेशमंत्री यहां आये थे और उन्होंने संसद के अध्यक्ष और राष्ट्रपति अध्यक्ष के साथ मुलाकात की और ट्यूनीशियाई विदेश मंत्री से दोनों देशों के संबंधों पर विस्तार से चर्चा की. ट्यूनीशिया के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं और आगे भी यह रिश्ते जारी रहेंगे.