वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है, जो इस साल 26 मई 2025 को है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और वट पेड़ यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं।*व्रत का महत्व*वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।

इस दिन व्रत रखने और पूजा-पाठ करने से व्रती को यमराज देवता के साथ-साथ त्रिदेवों की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही प्रेम जीवन में मधुरता बढ़ती है। पौराणिक कथा के अनुसार, यमराज ने देवी सावित्री के पति सत्यवान के प्राणों को बरगद के नीचे ही लौटाया था।
पूजा विधि
1. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके पीले या लाल रंग की साड़ी पहनें और सोलह शृंगार करें।
2. हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें।
3. वट के पेड़ के नीचे सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखें और उनकी पूजा करें।
4. पेड़ में जल, अक्षत, फल, फूल और मिठाई अर्पित करें।
5. वृक्ष में रक्षा सूत्र (कलावा) बांधें और सात बार परिक्रमा करें।
6. हाथ में काले चने लेकर व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
7. ब्राह्मण को दान दें।
8. शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें।
सावित्री-सत्यवान की कथा
सावित्री एक पति-परायण नारी थी, जिसका पति सत्यवान था। सत्यवान की मृत्यु के बाद सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राणों की भीख मांगी। सावित्री की भक्ति और श्रद्धा से प्रसन्न होकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को लौटा दिया और उन्हें 100 पुत्रों का वरदान दिया।*शुभ मुहूर्त*- सूर्योदय: प्रातः काल 5:45- अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:57 से लेकर दोपहर 12:50 मिनट तक- ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः काल में 04:09 से लेकर 04:57 मिनट तक- राहुकाल: सुबह में 07:25 से लेकर 09:04 मिनट तक- अमृत काल: प्रातः काल में 03:24 से लेकर 04:49 मिनट तकआज के दिन वट सावित्री व्रत की पूजा करने से पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना पूरी होती है। ¹
