Donald Trump: कौन हैं ट्रंप, काहे का ट्रंप…आखिर सुपरपावर अमेरिका के राष्ट्रपति को लेकर ऐसी बातें क्यों कही जा रही हैं? ये जानने के लिए आपको अमेरिका के पुराने और नए मित्र यानी इजरायल और सीरिया से जुड़ी एक बड़ी खबर को समझना चाहिए.
हाल ही में सीरिया में अल्पसंख्यक DRUZE मुसलमानों को कट्टरपंथियों और सीरियाई फौज से बचाने के लिए. इजरायली वायुसेना ने सीधे सीरियाई सेना के हेडक्वार्टर पर बम बरसा दिए थे. इस बमबारी के चौबीस घंटों बाद यानी 18 जुलाई की रात को डॉनल्ड ट्रंप के दफ्तर से बयान आया कि अमेरिका ने जो युद्धविराम प्रस्ताव दिया है. उसपर इजरायल और सीरिया सहमत हो गए हैं. लेकिन क्या वाकई ट्रंप इजरायल और सीरिया के बीच सहमति बना पाए. इस सवाल का जवाब आपको सीरिया के सीमावर्ती प्रांत स्वेदा में हो रही हलचल से पता चल जाएगा.
ट्रंप के दोस्त ने भेज दी फौज
सीरिया के राष्ट्रपति और ट्रंप के दोस्त कहे जाने वाले अहमद-अल-शारा ने दोबारा विवादित क्षेत्र की तरफ अपनी फौज भेज दी है. जबकि इजरायली फौज ने स्वेदा में अपनी सीमा को खोल दिया है. इस सीमा से घुसकर इजरायली फौज DRUZE मुसलमानों की मदद कर रही है.
अहमद-अल-शारा की दलील है कि अमेरिका की अनुमति के बाद फौज भेजी गई है जबकि इजरायल का दावा है जब तक DRUZE मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो जाती तब तक इजरायली सेना आगामी सैन्य अभियानों के लिए तैयार रहेगी.
सीरिया-इजरायल अपने हिसाब से ले रहे फैसले
यानी सीरिया और इजरायल ने ट्रंप को बता दिया है. भले ही वो युद्धविराम का क्रेडिट ले रहे हों. लेकिन हकीकत की जमीन पर सीरिया और इजरायल अपनी नीतियों के हिसाब से ही फैसले ले रहे हैं. इजरायल ने तो ट्रंप की बात पूरी तरह नहीं मानी. लेकिन ब्रिटिश खुफिया एजेंसी MI-6 के एक पूर्व निदेशक ने DRUZE मुसलमानों के क्षेत्र स्वेदा को लेकर इजरायली नीति पर एक आकलन सामने रखा है. आखिर सीरिया में इजरायल क्या करना चाहता है ये समझने के लिए आपको ये आकलन बेहद गौर से समझना चाहिए.
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— Zee News (@ZeeNews) July 19, 2025
सीरिया में दमिश्क, एलेप्पो, होम्स और हामा जैसे बड़े शहरों और इलाकों पर अहमद-अल-शारा के आतंकियों का कब्जा है. सीरिया के उत्तर पूर्व में कुर्द विद्रोहियों का दबदबा है. सीरिया के समंदर किनारे बसे इलाकों पर असद समर्थक एलेवाइट्स का प्रभाव है. इजरायल चाहता है कि सीरिया के पश्चिमी हिस्सों पर DRUZE मुसलमानों की मिलिशिया का कब्जा हो जाए ताकि सीरिया के एक हिस्से में इजरायल का भी प्रभाव लंबे वक्त तक बना रहे.
नेतन्याहू को होंगे दो फायदे
सीरिया में इजरायल समर्थित गुटों की वजह से नेतन्याहू को दो फायदे होंगे. पहला फायदा ये कि वो अहमद-अल-शारा के इजरायल विरोधी आतंकियों को सीमा से दूर रख पाएंगे और दूसरा फायदा ये कि दोबारा हिज्बुल्ला जैसे गुट सीरिया में इजरायल विरोधी साजिशों को अंजाम नहीं दे पाएंगे. लेकिन नेतन्याहू के इस दांव ने ट्रंप की अरब नीति को चारों खाने चित कर दिया है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं ये समझने के लिए आपको ट्रंप की योजना और ट्रंप के फैसलों को गौर से समझना चाहिए.
असद सरकार के तख्तापलट के बाद सीरिया में रूस का दखल खत्म हो गया था. ट्रंप चाहते थे कि रूस की जगह अमेरिका सीरिया में प्रभाव बढ़ाए. असद के तख्तापलट से सीरिया में ईरान के लिए समर्थन खत्म हो गया था. ट्रंप का प्लान था कि वो अहमद-अल-शारा के आतंकियों का इस्तेमाल कर मिडिल ईस्ट में ईरान के प्रॉक्सी गुटों को नुकसान पहुंचाएं.
ट्रंप की हो रही किरकिरी
इसी वजह से ट्रंप ने अहमद-अल-शारा से हाथ मिलाया था. सीरिया में काबिज आतंकियों से प्रतिबंध हटाने का भरोसा दिया था. आपको याद होगा, जब ट्रंप सीरिया से लौटे थे तो उन्होंने अहमद-शारा नाम के इस आतंकी को हैंडसम तक करार दे दिया था.
स्वेदा में आतंकियों को दोबारा भेजकर अहमद-अल-शारा ने साबित कर दिया कि वो ट्रंप के साथ डील करेंगे. ट्रंप के हुक्म की तामील नहीं करेंगे. दूसरी तरफ स्वेदा में इजरायली फौज की कार्रवाई और कथित युद्धविराम के साथ शर्तें जोड़ना, ये बता गया. कम से कम सीरिया के मुद्दे पर इजरायल उस नीति का पालन नहीं करेगा, जो ट्रंप चाहते हैं. इन हालातों की वजह से ही. आज ट्रंप की कथित पावर और रुतबे की किरकिरी हो रही है और इसी वजह से कहा जा रहा है कौन हैं ये ट्रंप और काहे का वो युद्धविराम जिसपर ट्रंप गुरूर कर रहे थे.