छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा जिले के अंतर्गत नक्सली प्रभावित एक गांव ऐसा भी है, जहां के लोग अपने विवादों को मिल बैठकर स्वयं ही निपटाते हैं और पिछले 25 सालों में यहां के ग्रामीणों ने गांव में घटित होने वाले किसी भी मामले के लिए थाने में प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई है।
यह गांव दंतेवाड़ा जिले के कुआकोंडा थाने से चार किलोमीटर दूर उदेला गांव है। यहां पिछले 25 सालों में ग्रामीणों ने गांव में घटित होने वाले किसी भी प्रकरण के लिए थाने में एफआईआर दर्ज नहीं कराई है। इस गांव के लोग अपने बीच के होने वाले झगड़ों या विवादों को स्वयं ही निपटाते हैं और पुलिस तथा न्यायालयों के चक्करों से दूर रहते हैं।
कुआकोण्डा के थानेदार जितेन्द्र साहू ने बताया कि लगभग पांच सौ आबादी वाले आदिवासी बाहुल्य उदेला गांव के ग्रामीणों ने अपनी परम्परा को आज भी कायम रखा है। साहू ने बताया कि कभी – कभी गांव की समस्या का निराकरण करने के लिए ग्रामवासियों द्वारा उन्हें बुलाया भी जाता है, जहां उनकी समस्या का निराकरण किया जाता है लेकिन आज तक इस गांव में कोई भी प्रकरण पंजीबध्द नहीं किया जा सका।
जबकि इसके अगल- बगल के गांव के कई मामले थाने में दर्ज हैं। यहां के बुजुर्गों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने हमेशा मिलजुलकर विवाद निपटाने की सलाह दी थी। यह गांव 1994 में कुआकोंडा थाना के अंतर्गत समाहित हुआ। तब से लेकर अब तक एक भी प्रकरण या शिकायत थाने में दर्ज नहीं कराई गई है। यदि गांव का कोई भी व्यक्ति अपराध में लिप्त रहता है या पाया जाता है तो उसे अर्थदंड के साथ गांव से बाहर करने की भी सजा मिलती है। इस निर्णय का प्रभाव आज भी कायम है और ग्रामीण बिना किसी व्यवधान के इसे मान रहे हैं।