किसानी सुख-दुःख के चालीसा पढ़इया मन कहूँ ‘लकर –धकर के घानी /आधा तेल,आधा पानी’ झन कर दें.
पहिली हर घर म धान के कोठी राहय जिहां चार-पांच साल के धान सुरक्षित हो जाय. दशकों पहिली छत्तीसगढ़ धान के ‘कोठी’ रिहिस अब ‘कटोरा’ हे. महात्मा कबीर के बात सुरता आवत हे ‘धीरे–धीरे रे मना ,धीरे से सब होय /माली सींचे सौ घड़ा,ऋतू आए फल होय.‘ फेर धीर कतेक धरे जाय ? इहाँ राजनीति के कुकरी उड़ान दिखथे.
- News18Hindi
- Last Updated:
September 26, 2020, 1:18 PM IST
नवा बिल के अनुसार किसान मन ल समर्थन मूल्य मिलते रही. ‘वन नेशन, वन मारकेट’ के तहत अपन फसल जिहां चाही वुहाँ बेच सकत हे. किसान उत्पाद बेचे बर सुतंत्र रही. पार्टनर कंपनी के संग मिलके खाद्य-उत्पादन म मुनाफ़ा कमाही. पहिली ले तय दाम मिले के गारंटी रही. जब चाहे तब पेनाल्टी के बिना करार छोड़ सकत हे. ख़ास बात यहू हे के किसान के जमीन के बिक्री ,लीज ,गिरवी रखना निषिद्ध रही. सरकार के सोच हे के कारपोरेट के संग खेती करे से किसान के फ़ायदा बाढही, नवा तकनीक अउ उपकरण मिलही, किसान सुतंत्र, अउ सशक्त होही. ऐ बिल के विरोध करइया मन एला विकास के नहीं विनाश के बिल बतावत हें. एमा राजनीति के चकरी चलत हे. किसान ल केंद्र साध डरिस. अब राज्य–सरकार मन उठा-पटक करना शुरू कर दे हे. कारपोरेट जगत किसान के कतेक भला करहीं इहि प्रश्न हवे. रूको, देखो, समझो और किसान ल मजबूत होवन देव. अभी तक ‘गाय चराय राउत अउ दूध पिए बिलैय्या’‘ वाले स्थिति रिहिस. सब बने रहि त फेर केहे जहि ’छत्तीसगढ़ के खेडा अउ मथुरा के पेड़ा’ कहावत सार्थक होही.
किसानी सुख-दुःख के चालीसा पढ़इया मन कहूँ ‘लकर –धकर के घानी /आधा तेल,आधा पानी’ झन कर दें. आजकल छत्तीसगढ़ म ‘टठिया न लोटिया,फोकट के गौटिया’वाले बात घलो सुनाथे. फोकटइय्या करजा ले के घी पियइय्या मन के संख्या कमती नइ हे. गर्व से करजा लेव. पटाही उप्पर इही सुनात हे. चुनाव के समे करजा माफ़, बिजली बिल हाफ के सूत्र चुनावी गणित म फिट अउ हिट होगे. विधासभा चुनाव म अतेक सीट मिलगे के चुनावी सूत्र के रचना करइया मन अकबकागें. डेढ़ साल म बहकत दिखत हे. केंद्र के किसान सम्मान निधि छत्तीसगढ़ म बस्ता म बंधाय हे. किसान अपन खाता अलत-पलट के देखत हें केंद्र के पइसा नइ आय हे. समर्थन मूल्य म धान खरीदी के बोनस किश्त दे हे. हमर छत्तीसगढ़ म किसान मन ले खरीदे गे समर्थन मूल्य वाले धान खुल्ला गोदाम म रखे जथे. हर साल लाखों बोरा धान पानी म सर जथे. एखर इंतजाम करे बर कोनो सरकार ह सूत्र नइ निकालिस.पहिली हर घर म धान के कोठी राहय जिहां चार-पांच साल के धान सुरक्षित हो जाय. दशकों पहिली छत्तीसगढ़ धान के ‘कोठी’ रिहिस अब ‘कटोरा’ हे. महात्मा कबीर के बात सुरता आवत हे ‘धीरे–धीरे रे मना,धीरे से सब होय/माली सींचे सौ घड़ा,ऋतू आए फल होय.‘ फेर धीर कतेक धरे जाय? इहाँ राजनीति के कुकरी उड़ान दिखथे.