Friday, July 4, 2025
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दंतेवाड़ा: कोरोना के डर में शव को दफनाने नहीं मिली गांव में जमीन, नाले में हुआ अंतिम संस्कार Dantewada: Burying the dead body in fear of Corona land in the village, funeral in the drain | dantewada – News in Hindi

दंतेवाड़ा: कोरोना के डर से शव दफनाने के लिए नहीं मिली जमीन, नाले में हुआ अंतिम संस्कार

सांकेतिक चित्र.

देशभर में कोरोना वायरस (Coronavirus) के संक्रमण को लेकर एक अलग ही दहशत लोगों में देखने को मिल रही है. इसका एक नमूना छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण में देखने को मिला.

दंतेवाड़ा: देशभर में कोरोना वायरस (coronavirus) के संक्रमण को लेकर एक अलग ही दहशत लोगों में देखने को मिल रही है. इसका एक नमूना छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण में देखने को मिला. यहां सामान्य मौत के बाद भी युवक के शव को दफनाने के लिए गांव में जमीन नहीं मिली. इतना ही नहीं परिवार के सदस्यों ने कोरोना वायरस के दहशत के चलते उसे कंधा तक नहीं दिया. मजबूरी में गांव के पास ही नाले में युवक के शव का अंतिम संस्कार किया गया.

दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर के मुताबिक दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 65 किमी दूर कटेकल्याण ब्लॉक के गांव गुड़से गांव से जुड़ा मामला है. खबर के मुताबिक नक्सल प्रभावित इस गांव में कोरोना वायरस को लेकर इतनी दहशत है कि एक युवक की मौत के बाद गांव की ही मिट्टी में उसे दफनाने के लिए जगह नहीं मिली. युवक की अर्थी को कंधा देने के लिए न तो परिवार का कोई सदस्य आया, न ही कोई ग्रामीण शामिल हुआ. अंतिम संस्कार के लिए भी जगह नहीं मिली तो शव को नाले में दफना दिया गया. युवक को कोरोना नहीं था, उसकी मौत सामान्य थी.

आंध्र प्रदेश में करता था काम

अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक 22 साल का लखमा पिछले 6 महीने से आंध्र प्रदेश में मिर्ची ताेड़ने का काम करता था. 25 मार्च को उसकी वहीं पर मौत हो गई. जब गांव के लोगों को यह बात चली तो उन्हें संदेह हुआ कि लखमा की मौत कोरोना की वजह से हुई है. गांव के लोगों ने आंध्र प्रदेश में ही अंतिम संस्कार करने को कह दिया. हालांकि, लखमा जिस व्यक्ति के लिए काम करता था, उसने शव गुड़से गांव में भेज दिया. गांव वाले भड़क न जाएं, इसलिए दफनाने की तैयारी उन्हीं दो ग्रामीणों ने की, जो आंध्र प्रदेश से शव के साथ गांव लौटे थे. ग्रामीण बताते हैं कि आनन-फानन में लखमा का शव महुए के एक पेड़ के नीचे दफना दिया गया. जिस ग्रामीण की जमीन पर वह पेड़ था, वह भड़क गया. दफनाए शव को फिर से निकलवाना पड़ा. आखिरकार उसे गांव में बहने वाले नाले के अंदर गड्ढा खोदकर दफनाना पड़ा.बताई अपनी बदनसीबी

दैनिक भास्कर में छपी खबर के मुताबिक लखमा के परिवार वाले शव घर आने के बाद भी बेटे को आखिरी बार नहीं देख पाए. लखमा परिवार में सबसे छोटा था. बड़े भाई कुम्मा मड़कामी बताते हैं कि लखमा 6 महीने से आंध्र प्रदेश में काम कर रहा था. गांव में दफनाने की जगह भी नहीं मिली. ऐसे माहौल में माता-पिता बेटे का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाए. हमसे ज्यादा बदनसीब कोई नहीं होगा. कटेकल्याण के मेडिकल ऑफिसर डॉ. एडी बारा कहते हैं कि जांच के लिए टीम गांव में गई थी. हमें बताया गया कि युवक को सर्दी, खासी जैसे लक्षण नहीं थे. मौत की वजह कोरोना नहीं है, फिर भी हमने गुड़से गांव को निगरानी में ले लिया है.

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First published: April 9, 2020, 4:22 PM IST




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