पुरानी कहावत है किसान कर्ज में जन्म लेता है, कर्ज में पूरा जीवन बिताता है और कर्ज में ही मर जाता है। यह आज भी सही है। यही कारण है कि युवाओं का खेती-किसानी से मोहभंग हो रहा है।नौजवान पीढ़ी गांव में नहीं रहना चाहती है। यदि युवा खेती नहीं करेंगे तो भविष्य के किसान कहां से आएंगे। वहीं, युवाओं का मानना है कि किसानों को फसलों का समुचित मूल्य नहीं मिल पाता है। जितनी भी सरकारें आई गईं, उनमें ज्यादातर ने किसानों को राजनीति का जरिया बनाकर सियासत चमकाने में ही दिलचस्पी ली। किसान को लेकर राजनीति होती रही, लेकिन किसानों को लेकर कोई कारगर नीति अभी तक नहीं बनी है। किसानों के हित और आर्थिक तरक्की के लिए व्यवहारिकता के धरातल पर जितना काम होना चाहिए था, वह नहीं हुआ। इसलिए किसान बदहाल हैं। बुंदेलखंड की खेती घाटे का सौदा है, इस कारण युवाओं का इस ओर रुझान नहीं है।
कृषि कार्यों में युवाओं की भागीदारी काफी अहम है। लेकिन, कृषि योग्य भूमि के आकार में गिरावट, तकनीकी ज्ञान के अभाव, वित्त की सहज उपलब्धता नहीं होने, कृषि उत्पादों के लिए कारगर मार्केटिंग सुविधा का अभाव होने, नीतिगत मामलों में युवाओं की सीमित भागीदारी होने और व्यवसाय के तौर पर खेती की खराब छवि होने से ग्रामीण युवाओं का तेजी से खेती से मोहभंग हो रहा है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में कृषि पर और संकट आने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
युवाओं की रुचि पर दिया था जोर
कृषि क्षेत्र में युवाओं द्वारा दिलचस्पी कम लेने पर चिंता जताते हुए मशहूर कृषि विशेषज्ञ एमएस स्वामीनाथन की अगुआई वाले राष्ट्रीय किसान आयोग ने वर्ष 2006 में अपनी रिपोर्ट में कृषि क्षेत्र में युवाओं की रुचि बनाई रखने की जरूरत पर जोर दिया था। लेकिन, अभी तक इस दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं।
किसान केवल राजनीतिक मोहरा बनकर रह गया है। राजनीतिक पार्टियां किसानों को राजनीति का जरिया बनाकर सियासत चमकाने में ही रहती हैं। किसानों के लिए कोई भी कारगर नीति नहीं बनाता है, इस वजह से दिन प्रतिदिन खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। इस वजह से युवा किसानी से इतर रोजगार के अन्य विकल्प तलाश रहा है।
– देवेंद्र प्रताप सिंह
युवाओं का हो रहा खेती से मोहभंग
