नई दिल्ली, एजेंसी। आजाद भारत का सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था। जिसमें नेल्ली और आस-पास के गांवों में महज 6 घंटे में जोहरा की मां समेत 2600 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। मरने वालों में ज्यादातर बांग्ला भाषी मुसलमान थे। ये नरसंहार इंदिरा गांधी की सरकार में हुआ था। मामले की जांच हुई, रिपोर्ट बनी, लेकिन सार्वजनिक नहीं की गई। मृतकों के परिजनों को मुआवजे में 5 हजार रुपए और टीन शेड मिले और घायलों को महज 1500 रुपए। 18 फरवरी 1983 को हुए नेल्ली नरसंहार को आज ठीक 40 साल पूरे हो चुके हैं। बताया जाता है कि आजादी के बाद से ही बांग्लादेश से सटे असम के जिलों में खूब पलायन हुआ। 70 के दशक में इंदिरा गांधी की सरकार ने बांग्लादेश से आए करीब 40 लाख बांग्ला भाषी मुस्लिमों को वोटिंग का अधिकार दे दिया। असम की जनसंख्या 1971 में 1 करोड़ 46 लाख से 1983 में 2 करोड़ 10 लाख हो गई। इससे असम मूल निवासी नाराज हो गए। उन्हें डर सताने लगा कि अब स्थानीय लोगों को संसाधनों पर अवैध तरीके से आए बाहरी लोगों का कब्जा हो जाएगा। असम में राष्ट्रपति शासन था और धीरे-धीरे तनाव बढ़ता जा रहा था। स्थानीय संगठन और खासकर स्टूडेंट यूनियनों के विरोध प्रदर्शनों ने जोर पकड़ लिया। दो छात्र संगठन आमने-सामने थे। इनमें से एक संगठन था असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), जो चुनाव नहीं चाहता था। दूसरा था आल असम माइनरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (आमसू) जिसे चुनाव से कोई परहेज नहीं था। उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कांग्रेसी नेता गनी खान चौधरी के साथ इलाके का दौरा किया और 1983 में चुनाव का ऐलान कर दिया। स्थानीयों की मांग थी कि नई वोटर लिस्ट बनाई जाए। इसे अनसुना कर दिया गया और 1979 की मतदाता सूची पर ही चुनाव कराने का ऐलान किया गया। आसू नहीं चाहता था कि चुनाव हो। उनकी मांग थी कि अवैध रूप से रह रहे प्रवासी मुसलमानों को बाहर निकाला जाए। आसू ने ऐसा न किए जाने पर चुनाव में वोटिंग का विरोध किया। 14 फरवरी यानी घटना से चार दिन पहले मतदान था। जिन इलाकों में नरसंहार हुआ था, वहां के मुस्लिम बहुल्य गांवों में स्थानीय आंदोलनकारियों ने मीटिंग बुलाई। यहां ऐलान कर दिया कि गांव से कोई भी चुनाव में भाग लेगा तो उसे समाज से निकाल दिया जाएगा और 500 रुपए का जुर्माना भी लगाया जाएगा। इन सब के बीच चुनाव चल ही रहे थे कि 18 फरवरी की घटना वाले इलाके नौगांव से 150 किलोमीटर दूर डारंग के गोहपुर में हिंसा की खबरें आ गईं। वहां की बोरो जनजाति ने असमियों की हिंसा से तंग आकर ऐलान कर दिया कि वो चुनाव में भाग लेंगी। बोरो जनजाति और प्लेन ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम (PTCA) नामक संगठन के कार्यकर्ताओं के बीच तनाव बढ़ गया। यहां हिंसा हुई और अफवाह फैल गई कि 17 गांवों को जला दिया गया है, जिसमें 1000 लोगों की जान चली गई है। तीन दिन बाद, 17 फरवरी को जब पुलिस ने आखिरकार इलाके की छानबीन शुरू की, तो पता चला कि हमला दोनों तरफ से किया गया था। बोरो जनजाति के तकरीबन 27 गांवों पर हमला किया गया था और 30 लोगों को मार दिया गया था। इसके बाद जवाबी हिंसा हुई थी और कुल मृतकों की संख्या 100 आंकी गई। 16 फरवरी को नेल्ली के पास लाहौरीगेट के इलाके में लालुंग जनजाति के पांच बच्चे मृत पाए गए तो स्थानीयों का गुस्सा बढ़ता गया। इस दौरान प्रशासन ने अपनी तरफ से 1,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया और 22 लोगों पर NSA लगाकर उन्हें हिरासत में ले लिया। इस घटना के एक दिन बाद 17 फरवरी को इसी जगह पर तीन मुस्लिम बच्चों के शव मिले। इसी दिन नेल्ली और आसपास के इलाके में मुस्लिमों को दूसरे चरण के मतदान से रोक दिया गया। 18 फरवरी, सुबह 8 बजे। बंदूकों, भालों, तलवारों से लैस भारी भीड़ के जत्थे ने सबसे पहले बोरबारी गांव को तीन तरफ से घेर लिया। इस गांव के लोगों के पास अब कोपिली नदी की तरफ जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। “जय ऐ अहोम!” और ‘लॉन्ग लिव मदर असम’ का नारा लगाते उपद्रवियों ने लोगों को मारना-काटना शुरू कर दिया।
40 साल पहले 2,600 लोगों को मार डाला, 6 घंटे में ही शव लगा दिए ठिकाने


