रिपोर्ट : रामकुमार नायक
महासमुंद. रंगों के पर्व होली की बात ही निराली है. खासकर छत्तीसगढ़ के गांवों मे होली को लेकर कई तरह की परंपरा आज भी देखी जाती है. होली के अवसर पर वर्षों पुरानी डंडा नृत्य परंपरा उन्हीं एक प्राचीन परंपराओं में से एक है. छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में आज भी होली के दिन पुरुष गाजे-बाजे के साथ डंडा नृत्य करते है. डंडा नृत्य को कुहकी अथवा रहस नृत्य भी कहते है. महासमुंद जिले के ग्राम बिरकोनी में 70 से 75 वर्ष के बुजुर्ग इस परंपरा का आज भी निर्वाह कर रहे है. हालांकि कुछ गिने-चुने बुजुर्ग ही इस में आगे है. सभी कलाकार अपने गांवों में अपनी वैभव को जिंदा रखने वाले कलाकार है और अभी भी इस विधा से जुड़कर छत्तीसगढ़ के संस्कृति को बढ़ा रहे है.
महासमुंद जिले के ग्राम बिरकोनी में परंपरा के अनुसार यहां कई दशकों से होलिका दहन के बाद गांव में डंडा नृत्य करते है. इस गांव में फागुन मास आते ही परम्परागत डंडा नृत्य की गूंज सुनाई देने लगती है. जो होली के दिन तक कृष्ण राधा के लीला मंचन संगम कार्यक्रम के साथ किया जाता है. ग्राम के बालक-बालिकाएं त्योहार के पहले जैसे ही शाम होती है, समूह में एकत्रित हो जाते है और डंडा नृत्य करते है.
बुजुर्गों ने की थी शुरुआत
गांव के बुजुर्गों ने बताया कि जब हम सभी बच्चे थे तभी गांव के बड़े लोगों ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. वर्तमान में बच्चों की टोलियां होलिका दहन के पूर्व रामायण मण्डलियों के साथ चौक-चौराहे और घर-घर जाकर कृष्णा तथा राधा वेश-भूषा में नृत्य करते है. इस नृत्य से कृष्ण-राधा होलिका परम्पराओं से जुड़े गीत गाकर दर्शकों का मन मोह लेते है. आज की पीढ़ी को इस परम्परा से जोडऩे राम मंदिर, दुर्गा मंदिर, शीतला माता मंदिर में श्री कृष्ण लीला मंचन किया जाता है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Chhattisgarh news, Mahasamund News
FIRST PUBLISHED : March 07, 2023, 18:41 IST
Source link


