दिन- शनिवार
वक्त.- करीब दोपहर के 01 बजे
स्थान- तर्रेम थाना क्षेत्र का सिगलेर से लगे जोन्नागुंड़ा जंगल में क्या हुआ था- सुरक्षा बल और नक्सलियों के बीच मुठभेड़, जिसमें 22 जवानों को शहादत देनी पड़ी, 31 जवान घालय हो गए, 01 जवान लापता
किस कैंप के थे जवान- नरसापुर कैंप के 420 जवान, मिनपा कैंप के 483 जवान, उसुर कैंप के 200 जवान, पामेड़ कैंप के 195 जवान और तर्रेम कैंप के 760 जवान शामिल थे.
घटना- सर्च ऑपरेशन पर निकले जवानों को लौटते वक्त नक्सलियों ने एंबुश में फंसा लिया और ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दी, जिसमें 22 जवानों की शहादत हुई. शहीद जवानों के शव 4 अप्रैल रविवार तक घटना स्थल से वापस लाई जा सकी.
मुठभेड़ के बाद कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मनहास लापता हो गए
ऐसे चला सर्च ऑपरेशन
04 अप्रैल रविवार को जवानों की तीन टीम घटना स्थल से शहीद जवानों के पार्थिव देह को लाने में जुटी तो वहीं चार छोटी-छोटी टीम लापता जवान के सर्च में जुटी रही. देर शाम होने तक तलाशी अभियान चलाया गया मगर घटना स्थल के तीन-चार किलोमीटर दूरी तक राकेश्वर सिंह मनहास का कोई पता नहीं चला. सोमवार को भी चला सर्च अभियान, लेकिन तमाम जद्दोजहद के बाद भी लापता जवान का पता नहीं चला. इसी बीच कुछ अंदुरूनी सुत्रों से खबर आई की लापता जवान का नक्सलियों ने अपहरण कर लिया है.
06 अप्रैल को प्रेसनोट और फोटो जारी
अपह्त जवान को लेकर दर्जनों कयासों के बीच नक्सलियों ने प्रेसनोट जारी कर जवान राकेश्वर सिंह को कब्जे में लेने की जानकारी दी. प्रेसनोट के कुछ देर बाद एक फोटो भी वायरल हुआ जिसमें अपह्त जवान एक झोपड़ीनुमा स्थान पर सकुशल दिखाई दे रहे थे. अपने प्रेसनोट में नक्सलियों ने सरकार द्वारा मध्यस्त तय करने की शर्त पर सकुशल रिहाई की बात लिखी.
सरकार ने तय किए मध्यस्त-पत्रकारों ने की मध्यस्ता
कहने के लिए तो सरकार ने गोपनीयतौर पर बस्तर के गांधी कहे जाने वाले पद्मश्री धर्मपाल सिंह सैनी, पूर्व शिक्षक और गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलम बोरैया, समाजिक कार्यकर्ता और गोंडवाना
समाज की उपाध्यक्ष सुखमती हपका और जय रूद्र करे को मध्यस्था की जिम्मेदारी दी. मगर स्थानीयतौर पर वास्तविक में मध्यस्त की भूमिका बीजापुर के दो युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर और गणेश मिश्रा ने निभाई. पूरे अभियान के दौरान नक्सलियों ने इन्हीं दोनों पत्रकारों से बातचीत की. इतना ही नहीं जब जवान को छोड़ा गया तब भी नक्लियों द्वारा यह कहा गया कि हम मुकेश और गणेश के भरोसे जवान को छोड़ रहे हैं, जवान सकुशल वापस लौटे इसकी जिम्मेदारी मुकेश और गणेश की है. इस दौरान सरकारी मध्यस्त मुकदर्शक की तरह खड़े रहे.
जन अदालत लगाकर जवान को किया रिहा
अगवा जवान राकेश्वर सिंह मनहास को छोड़ने से पहले नक्लियों ने 12 गांव के ग्रामीणों के सामने ग्राम तुमलगुड़ा में जन-अदालत लगाया. एक हजार से अधिक की भीड़ के सामने काफी देर तक भाषण दिया. जब ग्रामीणों द्वारा एक स्वर में रिहा करने को कहा गया तब जवान को रिहा किया गया. नक्सलियों के भाषण के दौरान जवान राकेश्वर सिंह के आंख पर पट्टी और हाथ बंधे हुए थे.
भावुक हुए राकेश्वर सिंह मनहास
मध्यस्त मुकेश चंद्राकर की मानें तो पूरे जन-अदालत के दौरान राकेश्वर सिंह भावुक रहे, नक्लियों द्वारा गोंडी-हलबी में भाषण दिया गया जिसका मूल राकेश्वर सिंह को समझ तो नहीं आया मगर सार यही रहा की उन्हें अब रिहा कर दिया जाएगा. जब जवान के आंखों से पट्टी हटाई गई, हाथ खोले गए तो जवान राकेश्वर सिंह बेहद ही भावुक हो गए.
पूरी कहानी राकेश्वर सिंह की ही जुबानी
अपहरण की कहानी दस मुंह से दस तरह की सुनाई जा रही है. मगर न्यूज़ 18 हिन्दी आपको अपहरण और रिहाई की पूरी कहानी जवान राकेश्ववर सिंह की ही जुबानी सुनाने जा रहा है. दरअसल बीजापुर के जिन दो युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर और गणेश मिश्रा ने प्रमुख मध्यस्त की भूमिका निभाई उनमें से मुकेश चद्राकर न्यूज 18 के ही बीजापुर संवाददाता हैं. पूरे घटनाक्रम के बारे में जवान राकेश्वर सिंह ने इतमिनान से मुकेश चंद्राकर से बात की.
दोनों के बीच हुई बातचीत के मुताबिक, 3 अप्रैल के दोपहर बाद जब ऑपरेशन से लौटते हुए जवान एंबुश में फंसे गए तो दोनों ओर से करीब चार घंटे तक फायरिंग चलती रही. इस दौरान राकेश्वर सिंह बेहोश हो गए. जब उन्हें होश आया तो नक्सलियों के पीएलजीए की टीम ने उन्हें बंदी बना लिया. होश आने के बाद जवान के आंख पर पट्टी बांधी गई. दोनों हाथ को पीछे की तरफ कस कर रस्सी से बांधा गया और फिर दिनभर इधर से उधर घुमाते रहे. नक्सलियों ने अपह्त जवान राकेश्वर सिंह मनहास को घटना स्थल के करीब 15 किलोमीटर के भीतर ही रखा, उन्हें 06 दिनों तक इधर से उधर घुमाया गया. रिहाई के बाद राकेश्वर सिंह ने बताया कि नक्लियों ने उन्हें कभी टार्चर नहीं किया. वक्त पर खाना देते रहे. रात को सोने के लिए भी इंतजाम किया जाता था. नक्सली हमेशा आपस में गोंडी-हल्बी में बात करते थे. एक नक्सली ही टूटी फूटी हिंदी जानता था, जो राकेश्वर सिंह से संवाद करता था.
क्या थी रणनीति
नक्सल मामलों के जानकार और नक्सल संवाद पर पीएचडी करने वाले डॉ. संजय कुमार शेखर की मानें तो जवान राकेश्वर सिंह मनहास का अपहरण नक्सलियों के बड़े नेताओं को स्थान बदलने के लिए वरदान साबित हुआ. न्यूज 18 हिन्दी से चर्चा करते हुए डॉ. संजय कुमार शेखर ने कहा कि नक्सलियों द्वारा जब भी किसी बड़ी घटना को अंजाम दिया जाता है तो उनसे सामने स्थान बदलने और सुरक्षित स्थान पर पहुंचना एक बड़ी चुनौती होती है क्योंकि घटना के तुरंत बाद फोर्स के जवान बेहद गुस्से में रहते हैं और बदला लेने के लिए उस क्षेत्र में लगातार अभियान चलाते हैं जिसमें कई बार नक्सली मारे भी गए हैं. मगर इस केस में राकेश्वर सिंह मनहास के रूप में नक्सलियों को वरदान हाथ लगा. 6 दिनों के भीतर इनके सभी बडे़ नेता स्थान बदल कर सुरक्षित ठिकाने पर जब पहुंच गए तब जवान को छोड़ा गया होगा.
राकेश्व सिंह मनहास ने सभी का जताया आभार
अगवा जवान राकेश्व सिंह मनहास अपनी रिहाई के बाद सभी का आभार जताया. फिर पत्रकारों के मोटरसायकल पर ही बैठकर तर्रेम थाने तक पहुंचे जहां पुलिस अधीक्षक सहित तमाम बड़े अधिकारियों
की मौजूदगी में मध्यस्तों ने जवान को अधिकारियों के सुपुर्द किया. जवान के सकुशल रिहाई के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ऐलान किया हैं कि मध्यस्त की भूमिका निभाने वाले सभी का सम्मान करेंगे और जवान से मिलकर हौसला अफजाई करेंगे.