- कोटा क्षेत्र के ग्राम नरौतीकापा की घटना, 12 साल की छात्रा का तालाब से मिला शव
- घर में मिला सुसाइड नोट : मैडम केवल एक सवाल ही हल कराती हैं, मुझे मत ढूंढना
Dainik Bhaskar
Feb 27, 2020, 09:48 AM IST
बिलासपुर. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में 12 साल की बच्ची ने तालाब में कूदकर खुदकुशी कर ली। घर से मिले सुसाइड नोट में छात्रा ने छत्तीसगढ़ी में लिखा है, “मैं आपकी बेटी दीपिका मरावी पढ़ नहीं सकती हूं। गणित म इंग्लिस पढ़ाते। एक ठोक ल बस पढ़ाते, ओकर बाद अपन घर से बना के लाहा कहिथे। तव सब के घर में बताथे और मोर घर में कोने नई हे, तव कोन बताही। मेडम ह घर से बना के लाहा कहथे। त मैं नई बनाए सकौं त का करहूं। अउ मोला मत खोजहा। दीपिका मरावी।’
23 फरवरी की शाम से घर से गायब थी, 25 को परिजनों ने एफआईआर दर्ज कराई
कोटा थानाक्षेत्र के ग्राम नरौतीकापा निवासी दीपिका मरावी (12) पिता गोवर्धन मरावी गनियारी के हसरत कांवेंट स्कूल में 6वीं कक्षा की छात्रा थी। 23 फरवरी की शाम करीब 5 बजे दीपिका अचानक अपने घर से गायब हो गई। परिजनों ने उसकी काफी तलाश की, लेकिन पता नहीं चला। इसके बाद उन्होंने 25 फरवरी को थाने में सूचना दी। पुलिस उसका पता लगाने में जुटी थी कि इसी बीच बुधवार सुबह उसका शव घर के पास ही खडहरी तालाब में मिला। गांव के ही विजय कौशिक ने उसके परिजनों को बताया।
घर से गायब होने से पहले दीपिका ने एक चिट्ठी छोड़ी थी। अपने पिता को हिंदी व छत्तीसगढ़ी में संबाेधित करते हुए पत्र लिखा गया है। इसमें कहा है कि उनकी बेटी पढ़ नहीं सकती है। गणित विषय को इंग्लिश में पढ़ाया जाता है। स्कूल में एक सवाल को ही बस पढ़ाते हैं उसके बाद अपने घर से बना के लाने के लिए बोलते हैं। सभी के घर में बताते हैं और मेरे घर में कोई बताने वाला नहीं है। मैडम घर से बनाकर कर लाने के लिए बोलती हैं। मैं नहीं बना सकती तो क्या करूं। और मेरे को अब मत ढूंढना। दीपिका मरावी।
पालक बच्चों से बार-बार उनकी समस्याएं पूछें: मनोचिकित्सक
मनोचिकित्सक डॉ संजय दिघ्रस्कर कहते हैं बच्चे स्कूल में क्या पढ़ रहे हैं और क्या उन्हें समझ में नहीं आ रहा है यह पालकों को अच्छी तरह से समझना चाहिए। यदि बच्चों के माता-पिता अनपढ़ होते हैं तो उन्हें अपने किसी रिश्तेदार की मदद लेनी चाहिए जो पढ़े लिखे हो। वे बच्चों से बात करें कि उन्हें कुछ समस्या तो नहीं है। स्कूल में शिक्षकों का बच्चों के साथ बर्ताव कैसा है यह भी पता लगाना चाहिए। इसी तरह पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य व कल्याण को जोड़ा जाना चाहिए।
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