- आशा ने छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु की नस्ल बचाई, 2005 में राज्य में आशा इकलौती मादा वनभैंसा बची थी
- आशा ने 6 नर और एक मादा वनभैंसा खुशी को जन्म दिया, इस वजह से आशा वन विभाग के लिए खास थी
Dainik Bhaskar
Feb 19, 2020, 04:49 AM IST
रायपुर/देवभोग. उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट के रेस्क्यू सेंटर में सोमवार की रात मादा वनभैंसा आशा की मौत हो गई। आशा ने छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु की नस्ल बचाई। 2005 में राज्य में आशा इकलौती मादा वनभैंसा बची थी। सर्वे में इस सच के खुलासे के बाद वन विभाग हड़बड़ा गया। आशा को आनन-फानन में उदंती के घने जंगल में रेस्क्यू सेंटर बनाकर रखा गया। वहां आशा ने 6 नर और एक मादा वनभैंसा खुशी को जन्म दिया। इस वजह से आशा वन विभाग के लिए खास थी।
विभाग के अफसरों का दावा है कि उम्रदराज होने के कारण उसकी मौत हो गई। हालांकि तीन पशु चिकित्सकों की टीम ने उसका पोस्टमार्टम किया है। रिपोर्ट आने के बाद मौत के कारणों का पता चलेगा। अफसरों केे अनुसार रविवार की रात तक आशा बिल्कुल सामान्य थी। सोमवार को सुबह उसकी तबीयत खराब दिखी। वह एक जगह से उठ नहीं पा रही थी। वह चारा तक नहीं खा रही थी। कुछ देर तक उसे उठाने का प्रयास करने के बाद वन विभाग के आला अफसरों को खबर दी गई। वे खुद रेस्क्यू सेंटर पहुंचे। आशा की स्थिति देखकर मैनपुर-गरियाबंद और बलौदाबाजार से डाॅक्टर भेजे गए। उन्होंने कुछ दवाईयां दी, लेकिन रात को उसकी मौत हो गई। मंगलवार उसका अंतिम संस्कार किया गया। मुख्य संरक्षक वन्य प्राणी अतुल शुक्ला, एपीसीसीएफ अरुण पांडे समेत कई बड़े अफसर रेस्क्यू सेंटर पहुंचे। उनके सामने वहीं रेस्क्यू सेंंटर में अंतिम संस्कार किया गया।
उदंती टाइगर रिजर्व में अब 13 वन भैंसे, इसमें 4 मादा
आशा ने अभयारण्य को 7 वनभैंसे दिए है, इनमें 6 नर व पिछले साल जन्मी खुशी मादा शामिल हैं। खुशी अभी एक साल की है। वर्तमान में रेस्क्यू सेंटर में 7 व अन्य 4 और मादा वनभैंसा हैं। इन 4 को बाहर से लाया गया है, इनमें दो अभी शिशु अवस्था में हैं। इसके अलावा प्रिंस व श्यामू वनभैंसे को बाड़े से बाहर विचरण के लिए छोड़ा गया है, पर ग्रामीणों का कहना है कि ये भी कई महीनों से नजर नहीं आ रहे हैं।
ग्रामीण ने घर में बांध लिया था आशा को
आशा को लेकर ग्रामीणों और वन विभाग के बीच 2006-07 में काफी विवाद हुआ था। मैनपुर के पास एक ग्रामीण ने आशा को अपने घर में बांध लिया था। वह जंगल से भैंसों के झुंड के साथ गांव आ गई थी। एक ग्रामीण ने अपने बाड़े में बांध लिया था। वन विभाग के अफसरों को पता चलने पर वे पुलिस के साथ पहुंचे और उन्होंने आशा को अपने कब्जे में ले लिया। इसके विरोध ग्रामीणों ने मोर्चा खोल दिया और सड़क पर उतर गए। ग्रामीणों और वन विभाग के बीच कई दिनों तक तनाव रहा। बाद में तय किया गया कि उसकी शुद्धता की जांच करायी जाए। उसके बाद आशा के शरीर के हिस्से को जांच के लिए हैदराबाद के रिसर्च सेंटर भेजा गया। करीब दो साल बाद वहां से रिपोर्ट आई। उस रिपोर्ट में आशा को पूरी तरह से वनभैंस घोषित किया गया। उसके बाद ग्रामीण शांत हुए। हालांकि विवाद के दौरान आशा वन विभाग के पास ही थी।
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