जोधपुर । देश के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े ने कहा कि किसी मामले में बदला लेने को न्याय नहीं कहलाया जा सकता है। बदला न्याय का विकल्प नहीं बन सकता है। किसी भी मामले में हाथों हाथ न्याय नहीं किया जा सकता है। न्याय मिलने की एक प्रक्रिया होती है। ऐसे में न्याय मिलने का थोड़ा इंतजार तो करना पड़ेगा। बोबडे ने हालांकि हैदराबाद में शुक्रवार सुबह हुए एनकाउंटर का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका सीधा-सीधा इशारा हैदराबाद से जुड़े घटनाक्रम की ओर था। देश में हाल ही में जो घटना हुई है, वह एक बड़ी डिबेट का विषय हो सकती है। उन्होंने कहा कि बदले की भावना से न्याय नहीं हो सकता है। वे जोधपुर में राजस्थान हाईकोर्ट मुख्यपीठ के नए भवन के लोकार्पण के अवसर पर बोल रहे थे।
व्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचाती है आलोचना
उन्होंने कहा कि कुछ लोगों का मानना है कि आलोचना जरूरी है लेकिन आलोचना व्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचाती है। इसके साथ ही सीजेआई ने अपने संबोधन में कहा कि बदले के लिए न्याय नहीं होना चाहिए। बदले की भावना से किया गया न्याय, न्याय चरित्र को ही बदल कर रख देता है।
उन्होंने कहा कि आपराधिक मामलों के निस्तारण की व्यवस्था में पुनःविचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि जिस तरीके से आपराधिक मामलों के निस्तारण में समय लग रहा है उसको लेकर इन बातों की तरफ सोचना होगा।
मध्यस्थ के जरिए मुकदमों की संख्या कम करें
अदालतों में मुकदमों की संख्या को मध्यस्थ के जरिये सुलझा कर काफी हद तक कम किया जा सकता है। हम सभी को इस बारे में मिलकर विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता मामले के कोर्ट में पहुंचने से पहले होनी चाहिये। इसके लिए देश के सभी जिलों में इस तरह के केन्द्र खुलने चाहिये। उन्होंने सुझाव दिया कि देश के सभी लॉ कॉलेजों में मध्यस्थता को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये। ऐसा करने से लोगों को त्वरित न्याय मिल पाएगा। साथ ही उन्होंने न्यायालयों में तकनीक का समावेश करने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में कई कार्यों को सरल बनाया गया है. इस तकनीक का बेहतर उपयोग किया जा सकता है।