नई दिल्ली: चीन से शुरु हुए कोरोना वायरस ने भारत और दुनिया के दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव डाला है, ये एक महत्वपूर्ण सवाल है. चीन तो इस वर्ष अपनी GDP की विकास दर नहीं बताएगा लेकिन भारत समेत दुनिया के कई देशों के लिए भी खबर अच्छी नहीं है. Reserve Bank Of India यानी RBI ने भी माना है कि वर्ष 2020-21 में भारत की GDP ग्रोथ नेगेटिव हो सकती है. यानी अर्थव्यवस्था बढ़ने की बजाय माइनस में जा सकती है.
RBI का मानना है कि लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा है, और देश की GDP में जिन राज्यों की हिस्सेदारी करीब 60 प्रतिशत है, वो राज्य रेड और ओरेंज जोन में हैं, इसलिए इन राज्यों में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं.
इन राज्यों में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश शामिल हैं. भारत की तरह दुनिया के कई दूसरे देशों की अर्थव्यस्था भी कमजोर हो चुकी है.
Dubai Chamber of Commerce द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक दुबई की करीब 70 प्रतिशत कंपनियां अगले 6 महीनों में बंद हो सकती हैं. ये सर्वे 1 हजार 228 CEOs के बीच किया गया है.
लॉकडाउन में रियायतें देने के बावजूद अमेरिका में करीब 3 करोड़ 80 लाख लोग बेरोजगार हो चुके हैं. रूस की अर्थव्यस्था भी इस साल 5 प्रतिशत तक सिकुड़ सकती है. जापान की अर्थव्यस्था में भी 3.4 प्रतिशत की कमी आई है और जापान औपचारिक रूप से आर्थिक मंदी में जा चुका है. कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया की अर्थव्यस्था को करीब 660 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान है.
कोरोना वायरस से दुनिया को तबाह करके चीन ये सोच रहा था कि उसके लिए तो अब बड़ा मौका बन गया है. मंदी के बीच चीन की कंपनियां दुनिया के अलग अलग देशों में निवेश करके, उनकी बड़ी बड़ी कंपनियों की हिस्सेदारी खरीद कर, उन पर कब्जा करने के प्लान में जुट गई थीं. लेकिन ये पुरानी कहावत है कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, एक दिन वो खुद उसी गड्ढे में गिरता है. भारत जैसे कई देश चीन की चाल को पहले ही समझ गए थे, अब अमेरिका ने भी चीन के दांव को उलट दिया है. अमेरिका में वहां की सीनेट यानी जैसे हमारे यहां राज्यसभा होती है, उसने एक बिल पास किया है, जिससे चीन की कई कंपनियां अमेरिकी शेयर बाजार से आउट हो जाएंगी.
शेयर बाजार में कारोबार करने के लिए हर कंपनी को अब ये बताना पड़ेगा कि उस पर किसी भी दूसरे देश की सरकार का, किसी भी तरह का कंट्रोल नहीं है. इसके लिए अमेरिका की ही किसी अकाउंटिंग एजेंसी से कंपनी को ऑडिट करवाना पड़ेगा और आखिर में शेयर बाजार की निगरानी करने वाली संस्था से सर्टिफिकेट लेना पड़ेगा. इसके बाद ही वो अमेरिका के शेयर बाजार में कारोबार कर सकेंगी और अमेरिकी निवेशकों से पैसा जुटा पाएंगी.
अगर लगातार तीन साल तक किसी कंपनी ने खुद के बारे में पूरी जानकारी नहीं दी तो फिर ऐसी कंपनियों को शेयर बाजार से डीलिस्ट कर दिया जाएगा. अमेरिका में इस तरह का कानून बनने के बाद बहुत संभव है कि वो सभी चाइनीज कंपनियां अमेरिकी शेयर बाजार से बाहर हो जाएंगी, जो चीन की सरकार के नियंत्रण में हैं, जैसे पेट्रो-चाइना, चाइना टेलाकॉम, अल्यूमीनियम कॉरपोरेशन ऑफ चाइना, चाइना पेट्रोलियम.
अमेरिका के शेयर बाजार में करीब 600 चाइनीज कंपनियां लिस्ट हैं, यानी शेयर बाजार में कारोबार करती हैं. इनमें से कई सरकारी और कई निजी कंपनियां हैं. लेकिन इस बिल के आने के बाद अब चीन की निजी कंपनियों को भी डर लग रहा है. चीन की टेक्नोलॉजी कंपनी बाइडू (Baidu) ने तो बिल आने के साथ ही खुद को अमेरिकी शेयर बाज़ार से डी-लिस्ट करने का प्लान बना लिया.
इसमें एक बात और भी है कि बाइडू (Baidu) के संस्थापक रॉबिन ली हों या फिर ई-कॉमर्स की बड़ी चाइनीज कंपनी अलीबाबा के जैक मा हों, चीन के इन बिलेनियर्स उद्योगपतियों की दौलत का सीधा संबंध अमेरिकी शेयर बाजार से भी है. जाहिर है कि अमेरिका ने इस तरह के बिल से चीन की कंपनियों और उनके उद्योगपतियों पर दबाव बना दिया है. अब अमेरिकी शेयर बाजार में इन चाइनीज कंपनियों के शेयर गिर रहे हैं.
अमेरिका की चिंता ये भी है कि चीन की कंपनियां अमेरिकी निवेशकों से शेयर बाजार के जरिए पैसा भी जुटाती हैं और अमेरिका में उन्हीं की कंपनियों को बिजनेस में पीछे भी छोड़ देती हैं. इससे धीरे धीरे अमेरिका में चीन की कंपनियों का दबदबा बढ़ रहा है. इसलिए अमेरिका के पास अब बड़ा मौका आया है कि वो चीन की कंपनियों के दबदबे को कम कर सके और अपनी कंपनियों को बढ़ावा दें.
यहां एक बात ये भी है कि चीन की कंपनियों का ट्रैक रिकॉर्ड और कामकाज साफ सुथरा नहीं रहा है. अमेरिका में अभी कुछ हफ्ते पहले ही लुकिन कॉफी नाम की चाइनीज कॉफीहाउस चेन के हिसाब किताब में गड़बड़ी और हेराफेरी पाई गई थी. ये अमेरिका में बड़ा ब्रांड बन चुका था, जो अमेरिकी स्टारबक्स को टक्कर दे रहा था, लेकिन जब इसका फ्रॉड सामने आया तो अमेरिकी शेयर बाजार से इसे डीलिस्टिंग का नोटिस मिल गया.
अब नया बिल अमेरिकी कांग्रेस यानी वहां की संसद के दूसरे सदन में जाएगा, वहां से पास होने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति इस पर मुहर लगाएंगे और ये कानून बन जाएगा. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि इस बिल को अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी दोनों के सीनेटर लेकर आए. यानी चीन के मामले में अमेरिका में कोई पार्टीबाजी नहीं है, सबकी एकराय है.
इससे चीन के सब मंसूबे धरे के धरे रह गए हैं, जो अपनी कंपनियों के जरिए इस संकट के दौर में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सेंध लगाने की कोशिश में था. लेकिन अमेरिका समय रहते चीन की कंपनियों से सावधान हो गया और वहां पर एक तरह से चीन की कंपनियों का बहिष्कार शुरू हो चुका है. वैसे ये कभी ना कभी होना ही था.
क्योंकि चीन से फैले कोरोना वायरस ने अमेरिका का जितना नुकसान किया है, उसका उतना नुकसान अब तक किसी ने नहीं किया. इस वायरस से अमेरिका में 96 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, इतने लोग तो अमेरिका ने पिछले 40-50 वर्षों में लड़े अपने सब युद्धों में भी नहीं गंवाए. अमेरिका की अर्थव्यवस्था तबाह है, उसके 4 करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके हैं. ऐसी हालत होने के बाद भला दुनिया के कौन से देश को चीन पर गुस्सा नहीं आएगा.