नेपाल में हाल के घटनाक्रम ‘जूलियस सीजर’ की कहानी की याद दिलाते हैं। जैसे रोमन सम्राट सीजर की हत्या का खुलासा होने के बाद जनता पागल हो गई थी और षड्यंत्रकारियों से मिलते-जुलते नाम वालों को भी मार डाला था, वैसे ही हालात आज नेपाल में दिखाई दे रहे हैं।सत्ता और व्यवस्था में बदलाव एक आवश्यक प्रक्रिया है, लेकिन भीड़ द्वारा किया गया वर्तमान कृत्य एक जघन्य अपराध है। निर्दोष लोगों को मारने से न तो कोई वास्तविक बदलाव आएगा और न ही शांति स्थापित होगी। इस तरह के कृत्यों से केवल नफरत की आंधी पैदा होती है, जो समाज को और भी अधिक अस्थिर बना देती है।
भीड़तंत्र अक्सर एक बेकाबू स्थिति पैदा कर देता है, जहाँ तर्क और कानून का कोई स्थान नहीं होता। यह न्याय और निष्पक्षता की नींव को हिला देता है। जब एक समाज भीड़ के हाथों में चला जाता है, तो वहाँ कोई भी सुरक्षित नहीं रहता, चाहे वह निर्दोष ही क्यों न हो। यह स्थिति भ्रष्टाचार से भी अधिक खतरनाक है, क्योंकि भ्रष्टाचार में कानून और व्यवस्था के दुरुस्त होने की उम्मीद होती है, जबकि भीड़तंत्र में ऐसी कोई उम्मीद नहीं बचती।
नेपाल में जो हो रहा है, वह एक चेतावनी है कि भावनाओं से प्रेरित और बिना किसी तर्क के की गई कार्रवाई, भले ही उसका उद्देश्य कितना भी नेक क्यों न हो, हमेशा विनाशकारी परिणाम लाती है। शांति और व्यवस्था तभी बनी रह सकती है, जब कानून का राज हो और हर व्यक्ति को न्याय पाने का अधिकार हो।