- एक हफ्ता पहले रामनगर के किराना दुकानदार 65 साल के बुजुर्ग कोरोना पाजिटिव पाए गए थे
- उन्होंने विदेश तो क्या, महीनों से देश में भी कोई यात्रा नहीं की, पूरे प्रदेश में खलबली मच गई थी और कम्यूनिटी स्प्रैड का खतरा मंडरा रहा था
दैनिक भास्कर
Apr 02, 2020, 02:19 AM IST
रायपुर. (प्रमोद साहू) एक हफ्ता पहले रामनगर के किराना दुकानदार 65 साल के बुजुर्ग (नाम नहीं लिखेंगे) कोरोना पाजिटिव पाए गए थे। जब यह खुलासा हुआ कि उन्होंने विदेश तो क्या, महीनों से देश में भी कोई यात्रा नहीं की, तब पूरे प्रदेश में खलबली मच गई थी और कम्यूनिटी स्प्रैड का खतरा मंडरा रहा था। एम्स में उनका छह दिन इलाज चला और दो रिपोर्ट नेगेटिव आ गई। उन्हें अस्पताल से छुट्टी देकर 14 दिन के लिए निमोरा सेंटर में क्वारेंटाइन किया गया है।
इस बुजुर्ग ने भास्कर को फोन पर बताया कि मौसम बदलने से सर्दी-खांसी होती रहती है, वही हुई थी। 15 दिन से दवाई खा रहे थे पर ठीक नहीं हो रही थी बल्कि अचानक बढ़ गई। रात में पुलिस के साथ डाक्टरों की टीम घर आई। एंबुलेंस में अस्पताल ले गए, तब समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। वहां बंद कर दिया, जैसे कैदी हो गई हो। डाक्टर-नर्सें रेनकोट पहनकर आते थे, दूर से बात करके चले जाते थे। शुरू में डर गया, पर अब लगता है कि सब मेरी जान बचाना चाहते थे। अब ठीक हूं। इलाज अच्छा है, डरने की कोई बात नहीं है।
प्रदेश में अब तक कोरोना के जितने मरीज सामने अाए हैं, सब युवा हैं और फाॅरेन ट्रैवल की हिस्ट्री है यानी महीनेभर के भीतर इंग्लैंड या अन्य देशों से लौटे थे। रामनगर के किराना दुकानदार सबसे उम्रदराज मरीज थे और कोई ट्रैवल हिस्ट्री भी नहीं थी। इसलिए उन्हें लेकर पूरी सरकारी मशीनरी चिंतित थी और कोरोना के फैलाव को लेकर डाक्टर तथा विशेषज्ञ कई तरह के कयास भी लगा रहे थे। बुजुर्ग ने बताया कि जब उन्हें अस्पताल में एक कमरे में कैद कर दिया गया, तब तक समझ नहीं अाया था कि अाखिर उनके साथ क्या हो रहा है। सर्दी-खांसी होती रही है, लेकिन ऐसा क्या हुअा कि इस तरह कैद किया गया, यह सोच-सोचकर डिप्रेशन होने लगा था। दो दिन बाद पता चला कि उन्हें कोरोना हुअा है। तीन-चार दिन तो यही सोचता रहा कि अाखिर यह हो कैसे गया?
मुझे बड़े से अस्पताल में ले गए। पहली बार इस अस्पताल में अाया। मुझे एक कमरे में बंद किया गया। वहां कोई नहीं अाता था। डाक्टर, नर्सें और बाकी लोग अाते थे, लेकिन दूर से बात करते थे। सभी रेनकोट जैसे कपड़े में होते थे। सिर से पांव तक पूरी तरह पैक। शुरू के एक-दो दिन बेहद बेचैनी लगी। ऐसा लगा कि कैद हो गया हूं। जीवनभर एक कमरे में नहीं रहा। घरवालों को भी मिलने के लिए नहीं अाने दिया गया। सारे लोग दरवाजे के बाहर से बात करते थे। एक-दो दिन बाद समझ अाया कि मेरी जिंदगी बचाने के लिए यह सावधानी रखी जा रही है। तब हिम्मत की, और ठीक होने लगा।
दुकान से चलती है रोजी-रोटी
बुजुर्ग ने बताया कि वे प्लास्टिक का सामान बेचते है। उसी से गुजर बसर होता है। वे जल्दी घर जाना चाहते हैं और अपना दुकान लगाना चाहते हैं। अपनी पसंद का भोजन करना चाहते हैं। उन्होंने लोगों से कहा कि कोरोना से डरने की जरूरत नहीं है। सिर्फ सावधानी और सतर्कता बरतने की आवश्यकता है, यह बीमारी ठीक हो जाती है।
भोजन से दवा तक सब समय पर
बुजुर्ग ने कहा-मुझे अस्पताल में बंद कमरे में भी पूरी सुविधा दी गई। भोजन से लेकर दवाई तक की व्यवस्था अच्छी थी। सब चीज ठीक समय पर दी जाती रही। अस्पताल अच्छा था, इलाज बहुत अच्छे से हुअा। इसीलिए सारा डर खत्म हो गया और अब मैं बिलकुल ठीक हूं। सबसे कहना चाहता हूं कि कोरोना रायपुर में ठीक हो जाएगा, डरने की बात नहीं है।
पत्नी-बच्चों को 25 से नहीं देखा
अस्पताल में ठीक होने के बाद अब मुझे 14 दिन के लिए क्वारेंटाइन किया गया है। यहां भी किसी से नहीं मिलना है। लेकिन अब मैं घर जाना चाहता हूं। पत्नी औ दोनों बेटों, अपने छह नाती-पोतों से मिलना चाहता हूं। लेकिन सभी को क्वारेंटाइन में रख दिए हैं। मुझे यह भी पता चला है कि मेरे किराएदार को भी लाकर यहीं या कहीं और क्वारेंटाइन किया गया है।
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