नई दिल्ली – भारत और रूस के संयुक्त उद्यम से बनी ब्रह्मोस मिसाइल की क्षमता से प्रभावित होकर अब रूस ने अपनी सेना में ब्रह्मोस-नेक्स्ट जनरेशन (BrahMos-NG) को शामिल करने के संकेत दिए हैं. हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान ब्रह्मोस की अचूक मारक क्षमता ने दुनिया को चौंका दिया था, जब यह साबित हुआ कि इसे दुनिया का कोई भी एयर डिफेंस सिस्टम रोक नहीं सकता.
यह मिसाइल, जिसे भारत और रूस ने मिलकर बनाया है, अपनी गति और सटीकता के लिए जानी जाती है. ऑपरेशन सिंदूर में इसकी सफलता के बाद से दुनिया के कई देशों ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है, जिससे ब्रह्मोस एयरोस्पेस उत्साहित है और अपने उत्पादन में तेजी ला रहा है.
ब्रह्मोस का बढ़ता जलवाब्रह्मोस की बढ़ती मांग का एक प्रमुख कारण इसकी कम लागत और अत्यधिक विनाशकारी क्षमता है. ब्रह्मोस एयरोस्पेस अब उत्पादन को बड़े पैमाने पर बढ़ा रहा है, जिससे इसकी प्रति यूनिट लागत कम हो सके. लागत कम होने से इसे खरीदने वाले देशों की संख्या में और वृद्धि होने की उम्मीद है.रूस का अपनी सेना में BrahMos-NG को शामिल करने का विचार इस मिसाइल की श्रेष्ठता का सबसे बड़ा प्रमाण है.
रूस, जो खुद एक प्रमुख सैन्य शक्ति है, का इस मिसाइल पर भरोसा जताना भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. यह न केवल दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों को और मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक हथियार बाजार में भारत की स्थिति को भी बेहतर बनाएगा.इस फैसले से यह भी साफ होता है कि भारत अब केवल हथियारों का खरीदार नहीं, बल्कि एक प्रमुख निर्यातक भी बन रहा है. ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों की सफलता ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के लिए भी एक बड़ी प्रेरणा है.