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बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के संसदीय क्षेत्र में शर्मनाक अत्याचार; विकास के नाम पर तोड़े गरीबों के आशियाने

मामला झांसी-खजुराहो नेशनल हाईवे निर्माण का

बिना मुआवजा दिये ही बारिश में तोड़ दिये मकान

चुनाव में वोट की भीख मांगने वाले नेता गायब

धीरज चतुर्वेदी, छतरपुर।
बारिश के मौसम में दर्जनों मकानों को सड़क कंपनी के बुलडोजर ने रौंद दिया। मुआवजा भी नहीं मिला पर बेघर हो गये। मामला झाँसी से खजुराहो फोरलेन सड़क निर्माण से जुडा है।

जिला प्रशासन कि लापरवाही ओर मुआवजा वितरण कि अनिमित्ताओ ने कई किसानो कि जमीने छीन ली ओर सेकड़ो लोगो को बेघर कर दिया। अब लावारिस होने के बाद इनकी आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं है। यहाँ तक कि 12 वी कक्षा तक के सरकारी स्कूल के भवन तक को जमीदोज कर दिया बिना यह परखे कि स्कूल के 11 सौ बच्चों का भविष्य अब क्या होगा। अन्याय कि मुखालफत करने में वह नेता ओर जनप्रतिनिधि भी गायब है जो इन बेसहारो कि पीड़ा पर राहत का मलहम लगा सके। जिन्हे केवल चुनाव के समय जनता कि याद आती है। शर्मनाक क्या होगा जिस इलाके में प्रशासनिक कहर बरपाया जा रहा है वहां के सांसद वह वी डी शर्मा है जो मप्र बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी है।

कोरोना के कहर से कही अधिक प्रताड़ना इन दिनों छतरपुर जिले के लोगो को सहन करनी पढ़ रही है। झाँसी से खजुराहो मार्ग के फोरलेन का निर्माण कार्य तेज गति से चल रहा है। पीएनसी कम्पनी को यह ठेका दिया गया है। मुआवजा वितरण में अनिमित्ताओ ने सेकड़ो लोगो को विकास कि अवधारणा में सड़को पर लावारिस छोड़ दिया है। बिना मुआवजा वितरण किये कई किसानो कि जमीने छीन ली गई तो कई के आशियाने उजाड़ दिये गये। राजनगर जनपद के ग्राम घूरा में तो 12 वी कक्षा तक के सरकारी स्कूल के आधे से अधिक भवन को धूल में मिला दिया। जिला प्रशासन ने यह तक नहीं सोचा कि स्कूल में अध्यनरत बच्चों के भविष्य का क्या होगा। बिना वैकल्पिक व्यवस्था या नये भवन निर्माण के पहले प्रशासन ने कैसे सड़क निर्माण कम्पनी को स्कूल भवन गिराने कि अनुमति दे दी। इसे लेकर प्रशासनिक अधिकारियो कि नीयत पर आरोप लग रहे है।

बारिश के दिन है बिना मुआवजा दिये मकानों को तोड़ कर सेकड़ो परिवारों भटकने पर मजबूर कर दिया गया है। विडंबना है कि जिला प्रशासन कि मिली भगत से नौगाव, छतरपुर, राजनगर जनपद के सेकड़ो गाँवो में कोहराम मचा है पर वह जनप्रतिनिधि नजर नहीं आ रहे जो जनता दुख तकलीफ की आवाज़ मुखर करने के लिये ही जनता द्वारा चुने जाते है। खास है कि मुआवजा वितरण में प्रशासनिक बदनीयती के खिलाफ कई लोगो ने सागर कमिश्नर के यहाँ अपील कर रखी है। कुछ लोगो ने हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया। अदालत ने छह माह में कमिश्नर कोर्ट को अपील निराकरण करने का आदेश पारित किया। अब इसे क्या कहेँगे कि हाई कोर्ट का आदेश जारी हुए करीब तीन वर्ष हो गये लेकिन कमिश्नर कोर्ट से अपीलों का निराकरण नहीं हुआ।

अपील के बिना अंतिम आदेश के जिला प्रशासन कि सहमति से किसानो कि जमीन छीन उस पर सडक निर्माण शुरू हो गया ओर कैसे घर उजाड़ने का तांडव किया जा रहा है। विकास कि आड़ में किसान मज़बूरी में मजदूर बन रहा है ओर अपने आशियानो को बिखरते देखने वाले केवल बददुआ दे सकते है। इसके आलावा उनका दुख कोई सुनने वाला भी नहीं है। क्या यही है आत्मनिर्भर भारत कि परिकल्पना जहाँ हर किसी के हक़ पर डाका डाल उसे निर्भरता के उपदेश पढ़ाया जा रहा है।

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