Tuesday, April 16, 2024
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योग का कमाल: दूर हो रही मानसिक और शारीरिक अपंगता

योग का आइकॉन बना छतरपुर का मानसिक दिव्यांग


इंसान की शक्ति उसकी आत्मा में होती है और आत्मा कभी विकलांग नही होती

छतरपुर / धीरज चतुर्वेदी

इस दुनिया में असम्भव कुछ भी नहीं, हम वो सबकुछ कर सकते
है जो हम सोच सकते है, और हम वो सब कुछ सोच सकते है जो हमने आज तक नहीं सोचा। बचपन से मानसिक ओर शारीरिक विकलांग ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति कि दम पर ना सिर्फ स्वयं को विकलांगता के अभिशाप से मुक्त करने कि कोशिश कि है बल्कि अन्य के लिये भी आदर्श बने है।

योगासन करते मनोज यादव


छतरपुर शहर के योगाचार्य रामकृपाल यादव का 27 वर्षीय पुत्र मनोज पैदायशी मानसिक ओर शारीरिक रूप से विकलांग है। अक्सर देखा गया है की शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को समाज में रहने वाले अन्य लोग एक अलग ही दृष्टि से देखते है| उन्हें वे अपने से कमतर आंकते है और उन्हें वे इतनी तव्वजों भी नहीं देते| मनोज के मजबूत आत्मबल का परिणाम आज उदाहरण है। योगाचार्य रामकृपाल यादव बताते है कि मनोज जन्म से पूरी तरह मानसिक रूप से अक्षम था। उसकी आँखों मे भेंगापन था ओर चलने मे भी परेशानी आती थी। पूरा परिवार परेशान था लेकिन घर मे ही योग कि पाठशाला ने मनोज को आज लगभग 40 प्रतिशत स्वस्थ कर दिया है। पिता रामकृपाल यादव के अनुसार उन्होंने अपने पुत्र को योग क्रिया के जरिये स्वस्थ करने का बीड़ा उठाया। जिसके सुखद ओर सार्थक नतीजे सामने आने शुरू हो गये है। मनोज को लगभग 7 वर्ष कि उम्र से पिता रामकृपाल ने आसनो ओर प्राणायाम का अभ्यास कराना शुरू किया। इसका यह असर हुआ कि मनोज कि मानसिक ओर शारीरिक कमिया दूर होती जा रही है। उसे बोलने मे थोड़ी दिक्कत आती है। मनोज को किसी बात को समझना ओर उसका अनुसरण करना आने लगा है। यहाँ तक कि वह अब अपने करीब सभी काम खुद कि दम ओर बूते पर कर लेता है। पिता रामकृपाल के अनुसार मनोज कुछ आसन बहुत सटीक ओर अच्छे रूप से कर लेता है। जिनमें पश्चिमोत्तानासन भू नमन आसन, सुप्त गर्भ आसन, स्कंध पादासन है। योग क्रियाओ मे मनोज के प्राणायाम कपालभाति अनुलोम विलोम एवं उद्गीथ प्राणायाम आसन देखने ओर सीखने लायक है। जिसे कोई नहीं कह सकता कि मनोज मानसिक तोर पर अक्षम है। रामकृपाल यादव बताते है कि प्राणायाम के अभ्यास से मनोज कि बुद्धि, शारीरिक अपंगता ओर सोचने समझने कि क्षमता मे अप्रत्याशित सुधार आया है।


मानसिक ओर शारीरिक अपंगता पर विजय हासिल करने के जूनून मे पिता योगाचार्य रामकृपाल यादव का कठोर परिश्रम ओर उनका संकल्प है तो असली हक़दार तो मनोज है जिसने अपंगता को हुनर मे अपनी आत्मशक्ति कि दम पर बदल दिया। कहते है कि अपने इरादों को इतना मजबूत रखना कि दिव्यांग से दिव्य बन जाओ. उन तमाम दिव्यांगो के लिए इक मिशाल बन जाओ जो निराशा के सागर में डूब जाते है, यही कर दिखाया है मनोज के जज्बे ने।

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