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This is the stand of the Ministry of Agriculture on the decision of the Supreme Court regarding the new Farm laws – नए कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कृषि मंत्रालय का यह है रुख

कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार की इच्छा के विरुद्ध है.

नई दिल्ली:

नए कृषि कानून (Farm Laws) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले को भारत सरकार ने अपनी इच्छा के खिलाफ बताया है लेकिन साथ ही कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सर्वमान्य होना चाहिए. अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा समिति गठित करने के फैसले के बाद 15 जनवरी को पहले से तय बैठक होगी या नहीं, ये किसान नेताओं (Farmers’ Leader) के रुख पर निर्भर करेगा. नए कृषि कानूनों पर बढ़ते विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा के बाद कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी (Kailash Chaudhary) ने NDTV को दिए इंटरव्यू में कहा कि “सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमारी इच्छा के विरुद्ध है. हम नहीं चाहते थे कि संसद में जो कानून पास हुआ उस पर रोक लगे. लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट का फैसला सर्वमान्य है. हम उसका स्वागत करते हैं.”

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किसान सगठनों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया है कि

इसमें बिल के समर्थकों को शामिल किया गया है. लेकिन एनडीटीवी से बातचीत में कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने इन सवालों पर सरकार का रुख साफ़ किया.    

कैलाश चौधरी ने कहा कि “आज किसान संगठन के नेता कह रहे हैं कि समिति में उन सदस्यों को शामिल किया गया है जो कानून का स्वागत कर चुके हैं. मैं यह कहना चाहता हूं कि किसान नेता राकेश टिकैत ने भी एक बार इन नए कानूनों का स्वागत किया था और कानून पारित होने के बाद प्रधानमंत्री का धन्यवाद भी किया था. हम किसान संगठन के नेताओं से निवेदन कर चुके हैं कि जो बातचीत की शुरुआत में उन्होंने प्रस्ताव रखे थे कानून में बदलाव के, उससे समस्या का हल निकल सकता है.” 

15 जनवरी की बैठक किसान संगठन के नेताओं और कृषि मंत्री ने बातचीत करके तय की थी. अब किसान यूनियन के नेता इस पर आगे क्या कहते हैं, इस पर ही निर्णय होगा कि 15 जनवरी की बैठक होगी या नहीं.

उधर बीजेपी ने बुधवार को कहा कि सभी पक्षों को कोर्ट के फैसले को स्वीकार करना चाहिए. बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि “सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन को लेकर फ़ैसला सुनाया. भाजपा इस फ़ैसले को स्वीकार करती है. कोर्ट की गरिमा में राष्ट्र की गरिमा है. आशा रखते हैं कि कोर्ट के फ़ैसले को दूसरा पक्ष भी स्वीकार करेगा और बताए गए रास्ते पर सभी आगे बढ़ेंगे.”

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एक तरफ सरकार चाहती है कि किसान नेता बातचीत की मेज़ पर आएं वहीं दूसरी तरफ किसान सगठनों ने अपना विरोध तेज़ कर दिया है. ऐसे में बातचीत के ज़रिए इस विवाद को सुलझाने की कोशिशें आगे बढ़ सकेंगी, ऐसे हालात फिलहाल कम दिखाई दे रहे हैं. 


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