छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में आदिवासियों में जारी है अनूठी परंपरा.
काेंडागांव के आदिवासी 700 साल से एक अनूठी और भक्ति भावना से भरी परंपरा को निभा रहे हैं. वहां होने वाले मेलों में ग्राम देवी-देवताओं की अनुमति ली जाती है, इसके लिए आम के पत्ते पर सभी ग्राम देवी-देवताओं को मेले में शामिल होने का निमंत्रण दिया जाता है.
- Last Updated:
March 5, 2021, 10:50 AM IST
आम की पत्ती से निमंत्रण
जिले में हर साल फागुन महीने में वार्षिक मेले का आयोजन होता है . जिसमे शामिल होने के लिए मेला समिति के सदस्य साप्ताहिक बाजार में आये व्यापारियों,ग्रामीणों को आम की टहनी से निमंत्रण देते है , गाँव का कोटवार आम पत्ते लेकर मेला समिति के सदस्यों के साथ साप्ताहिक बाजार में घूमकर 16 मार्च से शुरू होने वाले मेले में शामिल होने के लिए आम की टहनी के जरिये निमंत्रण दे रहा है.
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में 700 साल से जारी है आदिवासियों की अनूठी परंपरा.
700 साल पुरानी है ये परंपरा
700 साल पुरानी इस परंपरा को आज भी बदलते इस युग में निभाया जाता है लोगो का मानना है की आम का पत्ता शुभ माना जाता है हर धार्मिक अनुष्ठान में आम के पत्ते का उपयोग किया जाता है .समिति के सदस्यों का कहना है की यदि आम के पत्ते से मेले का निमंत्रण नहीं दिया जाता है तो लोग खासकर स्थानीय व्यापारी मेले में नहीं आते है.
कील गड़ाकर की जाती है सुरक्षा
मेले में लोगो को आमंत्रित करने के बाद लोगों की सुरक्षा की व्यवस्था के लिए कील गाड़ी जाती है.ताकि मेले में आये लोगों पर कोई आपदा न आए इस रस्म को मांडो रस्म कहा जाता है. मेला आयोजन समिति के नरपति पटेल ने बताया की यहां होने वाले मेले में ग्राम देवी देवताओं की अनुमति प्राप्त करना, देवी पहुंचानी की रस्म अदा करने के साथ सभी ग्राम देवी-देवताओं को मेले में शामिल होने का निमंत्रण देना यह धार्मिक प्रक्रिया मेला शुरू करने से पहले की जाती है.
यहां की रस्म रिवाज के अनुसार, मेले को निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए यहां आने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए मेला स्थल के कोनो में कील गाड़ने की रस्म निभाई जाती है. ताकि मेला और यहां आने वालों पर कोई आपदा न आए और मेला निर्विघ्न संपन्न हो जाए.