उज्जैन: धर्मधानी उज्जैन में शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी के अवसर पर नगर की सुख-समृद्धि के लिए सदियों पुरानी ‘नगर पूजा’ की अनोखी परंपरा का निर्वहन किया गया। इस विशेष पूजन में, नगर के 40 से अधिक देवी-भैरव मंदिरों में मदिरा (शराब) का भोग लगाया गया और पूरे पूजा मार्ग पर इसकी धार डाली गई।
कलेक्टर ने किया पूजा का शुभारंभ, 27 किमी तक मदिरा की धारनगर पूजा का शुभारंभ सुबह 7:30 बजे चौबीस खंभा स्थित प्राचीन माता महामाया और महालया मंदिर से हुआ। कलेक्टर रौशन कुमार सिंह ने सबसे पहले माता को मदिरा का भोग लगाकर पूजा की शुरुआत की।
इसके बाद, शासकीय अधिकारी और कोटवारों का दल ढोल-ढमाकों के साथ शहर के विभिन्न स्थानों में स्थित 40 से अधिक देवी और भैरव मंदिरों के लिए रवाना हुआ। यह दल नगर के करीब 27 किलोमीटर लंबे पूजा मार्ग पर मदिरा की धार लगाते हुए चलता है। भोग में मदिरा के साथ पूड़ी, भजिए, गेहूं व चने की घुघरी भी अर्पित की जाती है।सम्राट विक्रमादित्य के काल से चली आ रही है परंपरामान्यता है कि उज्जैन में नगर पूजा की यह परंपरा सम्राट विक्रमादित्य के काल से चली आ रही है। प्राचीन काल में राजा-महाराजा इस परंपरा का निर्वहन करते थे, और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसे सरकार की ओर से कराया जाता है।
मान्यता: कहा जाता है कि ऐसा करने से नगर में मौजूद अतृप्त आत्माएं तृप्त होती हैं और नगर में सुख-समृद्धि व समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
उद्देश्य: यह पूजन नगर के देवी, भैरव आदि देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, जिन्हें अनादिकाल से नगर का रक्षक माना जाता है।14 घंटे चलता है पूजा का सिलसिलायह नगर पूजा करीब 14 घंटे तक चलती है। सुबह चौबीस खंभा स्थित मंदिर, जिसे प्राचीन उज्जैन का मुख्य द्वार माना जाता है, से शुरू होकर, पूजा का सिलसिला शाम तक जारी रहता है।
समापन: पूजा का समापन देर शाम हांडी फोड़ भैरव मंदिर पर होता है, जहां शराब से भरी एक मटकी फोड़ दी जाती है।
भोग सामग्री: इस पूजन के लिए आबकारी विभाग द्वारा 31 बोतल शराब उपलब्ध कराई जाती है। मदिरा के अलावा, पूजा में सिंदूर, कुंकुम, मेहंदी, चूड़ी, नारियल, चना, पूरी-भजिए, दूध, दही, इत्र आदि 40 तरह की चीजों का उपयोग किया जाता है। साथ ही, हनुमान मंदिरों में ध्वजा भी अर्पित की जाती है।
बाइट, कलेक्टर रोशन कुमार सिंह, कलेक्टर
बाइट, प्रदीप शर्मा, एसपी