Wednesday, July 2, 2025
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कछोरा भीर के अउ पेरउसी मिंझार के माटी मतावन दे …

नानपन ले खलखला के हांसत कूदत अपन संसार मा मगन रहिके कतको योजन ला सहारा देके बिता दिस. घर बार अउ संसार ला समझइया ओखर असन जीव अउ कोनो नइ हो सकिन.

  • News18Hindi

  • Last Updated:
    October 22, 2020, 11:28 PM IST

कोदो पयरा के पेरउसी थोकन चिक्कट होथे. छाबे-मुंदे बर, कोठ, भिथिया उचाए बर, भांड़ी पलानी चढ़ाए बर अउ कतको काम मा माटी अपन गुन के अनुसार उपयोगी हावय. कोठी, ढाबा, पऊला, कोदो दरे के जाँता सब्बो जगा देखले माटी के नाम. तें सब्बो जगा नारी परानी ला पाबे. ओखर मान मा ओला घर के लछमी केहे जाथे तेन अइसने थोरे ए. सब्बो जनम मा नारी के श्रेष्ठता हावय. माटी असन खटाना अउ अपन अवरदा तक चटके रहना एही ओखर काम ए. जतन करइया ला नारी परानी के उपकार मानना चाही. महिला, पुरुष मा तुलना करथें. अरे भाई हो जतका बुता ला सकेले के जिम्मा नारी परानी ला मिले हे ततका तो पुरुष मन सोंचबे नइ करंय. मुंधरहा ले खटावत-खटावत, बोरे सकेले के बेरा तक देखबे ते उही हा रमे रथे. घर-परिवार, लोग, लइका अउ उपरहा मा खेतखार मा. बासी पसिया ननइया कोने इही हमर घर जिनगी ला संवार के रखइया नारी परानी हरय.

नानपन ले खलखला के हांसत कूदत अपन संसार मा मगन रहिके कतको योजन ला सहारा देके बिता दिस. घर बार अउ संसार ला समझइया ओखर असन जीव अउ कोनो नइ हो सकिन. आज ले अपन बलशाली हिरदे मा मया के संगे-संग मिहनत ला घलोक धरे बांधे राखे हे. पेरउसी असन सांझर-मिंझर होके रेंगइया, अवइया, जवइया मन घलोक ऊंखर हाथ के जस ला देखते ते अपन भाग ला संहराथे. खानदान के पहिचान बनइया ला भला कोनो बरोबरी के बुता नइ करय कहिके काबर छोटेपन के दर्जा देथें. हांसत खेलत जिनगी बिताने वाला मन के उम्मर घलोक बाढ़ जथे. सुख अउ दुःख एला सोचबे ते सोचते रहिजाबे. आना-जाना लगे हे अइसे सोंच के स्वीकार करना हमर मानव स्वभाव मा होना चाही. जतका दिन जीना हे अपन आसपास के अनुभो लेवत देवत जीना हे अइसे होना चाही. कतको गुनवान अउ गुनवन्तिन मन समाज ला ऊंचा उठाइन अउ आने वाला कल बर नवा सोंच विकसित करिन.

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एदे अइसने चलत-चलत कतका विकास होगे. सोंचे नइ पाबे अउ सुविधा घर बइठे आ जाथे. उवत-बुड़त ले कतको काम सकलाए नइ राहय. समय कम पड़गे तइसे लागथे, फेर समय ला हमन बांधे-छांदे के नियम बना डारे हन तेकरे सेती लागथे के समय कम होगे कहिके. तें लगे रा. बने गिनहा ला चिन्हे के तोला अजम होना चाही. सब्बो रकम के इहां मनखे मिलही. रद्दा चलत अपन जांगर के चलत ले. कुछु न कुछु सोंच विचार करत रहना चाही. कतकोन जगा सामाजिक व्यवस्था घलोक तार-तार होवत दिखथे तभो ले थीरबांह राखना चाही. कोनो समय कइसे होथे अउ कोनो समय कइसे. समय ला झुकोए के उदिम करने वाला आगू जागे हार नइ मानय. चुप ले बड़े सुख नहीं. समय के मांग हे ते चुप राह फेर अपन जेन जिम्मेदारी हे तेखर ले मुंह झन मोड़. जीवन ले भागना अच्छा बात नोहय. जीवन अनमोल हे. घटबढ़ तोर हाथ मा नइये. अपन सोंच ला चाकर कर.

बरोबरी के चक्कर मा झन पर. जेन जिंहा हावय अपन हिसाब मा हावय. सबके अपन मान सम्मान हे. अइसने सोंचबोन तभे आने वाला समाज मा नवा तरक्की बर तियार होही. सब्बो काम मा सब्बो झन के सहभागी होवय. (यह लेख लेखक के निजी विचार हैं)




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