Thursday, April 25, 2024
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क्या कोरोनो वायरस टीके का विरोध करने वालों को कमजोर कर सकता है?

नई दिल्ली: तीन बच्चों की एक अमेरिकी मां लंबे समय से ‘एंटी-वैक्सर्स’ (anti-vaxxer) समूह की ऑनलाइन सदस्य रही हैं. एंटी-वैक्सर्स समूह छोटा है, लेकिन एक मुखर वैश्विक समुदाय है जो मानता है कि टीके खतरनाक होते हैं. ये अपना और अपने बच्चों का टीकाकरण नहीं करवाते.

लेकिन COVID-19 अब इस मां के विचारों को बदल रहा है. स्टेफनी नाम की इस महिला को अब प्रतिबद्ध एंटी-वैक्सर्स से नाराजगी का डर है और इनका मानना है कि अगर कोरोनो वायरस के कारण होने वाली सांस की बीमारी के लिए टीका बनाया जाता है तो वो टीका लगवा सकती हैं.

उसने रायटर को अमेरिका से फोन करके बताया कि ‘मैंने निश्चित रूप से इसके बारे में सोचा है’. उन्होंने इस बात पर भी निराशा जताई की कि टीकाकरण का विरोध करने वाला ये समुदाय इस महामारी की गंभीरता को कम आंक रहा है. उन्होंने कहा- ‘हम सभी इस वायरस से प्रभावित हो रहे हैं, स्कूल बंद हैं, युवा अस्पतालों में भर्ती हैं, और वे अभी भी ये कहते हैं कि टीकाकरण एक धोखा है”

जैसे ही दुनिया के वैज्ञानिक और दवा कंपनियां कोरोनावायरस का इलाज की ढूंढेंगे, टीके के दूसरे विरोधी उस नए टीके के खिलाफ मोर्चा खोल देंगे. 

फेसबुक पर एक पोस्ट में जब लोगों से पूछा गया कि अगर कोई टीका अनिवार्य कर दिया गया तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी, तो एक ब्रिटिश ने कहा कि ‘इनकार करेंगे, प्रदर्शन करेंगे’. 

लेकिन कुछ वायरोलॉजिस्ट कहते हैं कि टीके की खोज का इतने व्यापक स्तर पर समर्थन किया जाएगा कि विरोध गुम हो जाएगा.

वैक्सीन कॉन्फिडेंस प्रोजेक्ट (VCP) के लिए पोलस्टर ओआरबी इंटरनेशनल द्वारा किया गया हालिया सर्वे, जो टीकाकरण के मनोभाव पर नजर रखता है, इस विचार का समर्थन करता है.

फ्रांस में लॉकडाउन होने के एक दिन बाद करीब 1,000 लोगों के बीच वीसीपी सर्वे किया गया, जिसके अनुसार फ्रांस जहां 2018 में किया गया एक सर्वे ये बताता है कि तीन लोगों में से एक व्यक्ति टीके को सुरक्षित नहीं मानते, वहां 18 प्रतिशत लोग कोरोना वायरस के टीके के लिए मना करेंगे.

ऑस्ट्रेलिया में वीसीपी का आंकड़ा भी 7 प्रतिशत था. ब्रिटेन में करीब 2000 लोगों पर सर्वे हुआ, और एक हफ्ते बाद ऑस्ट्रिया में हुए सर्वे में 5 प्रतिशत लोगों ने विरोध दर्ज कराया.

फ्रांस एंटी-वैक्स आंदोलन के इतिहास के सह-लेखक लॉरेंट-हेनरी विग्नौड ने कहा, ‘अगर कल ही एक टीका उपलब्ध हो जाएगा तो हर कोई उसे लेने के लिए दौड़ पड़ेगा.’

उस नजरिए को अमेरिकी गैर-लाभकारी समूह चिल्ड्रन्स हेल्थ डिफेंस की उपाध्यक्ष मैरी हॉलैंड ने चुनौती दी थी, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में टीकाकरण की विरोधी रही हैं. उन्होंने कहा कि, ‘मुझे नहीं लगता कि ये वायरस बुनियादी तौर पर टीकों के बारे में लोगों की गहन चिंताओं को बदल पाएगा’.

‘मुझे किसी भी तरह का इंजेक्शन नहीं लगवाना’

हालांकि ‘एंटी-वैक्स’ शब्द कभी-कभी साजिश की तरह लगता है लेकिन बहुत से लोग बस साइड-इफेक्ट्स या उद्योग नैतिकता के बारे में ही फिक्रमंद होते हैं. वेलकम ट्रस्ट फंड द्वारा 2018 में कराए गए एक सर्वे के अनुसार, विश्व स्तर पर पांच में से एक व्यक्ति टीके को सुरक्षित नहीं मानता और इसपर विश्वास नहीं करता. 

चीन, जहां से कोरोनो वायरस निकला, वहां वीसीपी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए सर्वे से पता चलता है कि सुरक्षा ही चिंता का सबसे मुख्य कारण है. कई कांड हुए जिनसे लोगों का भरोसा टूटा. 2018 में एक दवा कंपनी पर रेबीज वैक्सीन के लिए गलत डेटा देने पर भारी जुर्माना लगाया गया था. कंपनी ने इस घटना के लिए माफी भी मांगी थी.

रायटर द्वारा जुटाई गई ऑनलाइन जानकारी में पाया गया कि फेसबुक पर कई पेज है जिनमें 2 लाख से ज्यादा सदस्य हैं, ट्विटर पर बच्चों की स्वास्थ्य रक्षा पर फीड हैं और YouTube पर भी ऐसे वीडियो हैं जिन्हें 7 लाख से ज्यादा बार देखा गया है. ये सभी ने काफी अविश्वास दिखाया है कि बेहद जल्दी में बनाए गए इस टीके का अनुचित परीक्षण किया जाएगा.

वीसीपी निदेशक हेइदी लार्सन ने कहा कि 2009 में H1N1 स्वाइन फ्लू महामारी के टीके पर भी यही चिंता का मुख्य कारण था.

सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार, 1976 में स्वाइन फ्लू के एक टीके के कारण, लगभग 1,00,000 लोगों में से एक को गुइलेन-बर्रे सिंड्रोम(Guillain-Barre syndrome) विकसित हो गया था जो प्रतिरक्षा-प्रणाली को कमजोर बना देने वाला विकार था.

अमेरिका के 67 वर्षीय विकी बार्नेक ने कहा, ‘मुझे किसी भी तरह का इंजेक्शन नहीं लगवाना, खासकर फास्ट-ट्रैक वैक्सीन.’  इनका मानना है कि एक मजबूत इम्यून सिस्टम ही बीमारी का मुकाबला करने के लिए काफी है. चिल्ड्रन हेल्थ डिफेंस से हॉलैंड ने कहा: ‘कुछ लोगों को टीके से कोई परेशानी नहीं होती, लेकिन कुछ पैरालाइज हो जाते हैं या मारे जाते हैं’.

हालांकि, सीडीसी महामारी विज्ञानियों द्वारा 2015 के शोध में कहा गया है कि ‘कई अध्ययनों और वैज्ञानिक समीक्षाओं में दुर्लभ मामलों को छोड़कर, टीकाकरण और मौतों के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया है”

जल्दी चाहिए टीका

VCP कोरोनावायरस को लेकर 18 महीने का ऑनलाइन अध्ययन ट्रैकिंग कार्यक्रम चला रहा है, साथ ही वो एक वैश्विक पोल भी कर रहा है ताकि वो सोशल डिस्टेंसिंग, आइसोलेशन, हाथ धोने और वैक्सिनेशन को लेकर लोगों के विचार जान सके. इस साल जनवरी से लेकर 15 मार्च के बीच हर दिन करीब 30 लाख सोशल मीडिया पोस्ट का विश्लेषण करने के बाद निदेशक डॉ हेइडी लार्सन ने कहा कि बड़ी संख्या में लोग इसका इलाज चाहते हैं. लोग चाहते हैं कि उन्हें जल्द से जल्द कोरोना के लिए कोई वैक्सीन मिल जाए.

वायरोलॉजिस्ट डॉ रॉबर्टो बरियोनी के मुताबिक कोरोना के प्रकोप के दौरान इटली में एंटी-वैक्स आंदोलन लगभग गायब ही हो गया. वहीं लंदन में रॉयल कॉलेज ऑफ जनरल प्रैक्टिशनर्स में टीकाकरण विभाग के प्रमुख जॉर्ज कसियानोस का कहना है कि कोरोना वायरस के लिए ऐसे सालाना वैक्सिनेशन की जरूरत है जो बहुत प्रभावी हो.

सवाल यह भी है कि टीके का इंतजार कर रहे लोगों को किस तरह जल्द से जल्द ये टीका वितरित किया जाए. सैन फ्रांसिस्को में COVID-19 पर काम कर रहे चिकित्सक डगलस एल हैच ने कहा कि आवश्यक कार्यकर्ता ही प्राथमिकता में रखे जाएंगे.




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