- 2019 एलओसी के पास गांवों में रहने वालों के लिए बड़ी मुश्किलों वाला रहा
- अधिकारियों का कहना है कि नियंत्रण रेखा पर शांति काल जैसी स्थिति नहीं
मोहम्मद इमरान ख़ान अपने स्कूल के बाहर सीढ़ियों पर बैठा है. उसके पांव में पट्टी है. साथ में बैसाखी है. वो खुले क्षेत्र में अपने से छोटे बच्चों को खेलते हुए देख रहा है. नियंत्रण रेखा के पार पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) के गांव यहां से देखे जा सकते हैं.
नियंत्रण रेखा एक आभासी रेखा है जो कश्मीर के दोनों हिस्सों को अलग करती है. ये क्षेत्र काफी अर्से से वॉर ज़ोन बना हुआ है. 16 वर्षीय इमरान तीन महीने पहले धाराती गांव में नियंत्रण रेखा के पार से हुई गोलाबारी में घायल हो गया था. इस हमले ने उसे जीवन भर के लिए दिव्यांग बना दिया. नियंत्रण रेखा के पास भारत की ओर से लगाई कटीली बाड़ के साथ ये गांव बसा हुआ है.
नियंत्रण रेखा पर लगातार टकराव का माहौल बने रहने की वजह से इमरान की तरह ही कई लोग और घायल हुए. कई को जान से भी हाथ धोना पड़ा.
इमरान की मांग फूलजान बेगम उस वक्त को याद करके ही सिहर जाती हैं. वो कहती हैं- हम कहीं नहीं जा सकते. हम कहीं शरण नहीं ले सकते. मेरे दो और बेटे हैं. अगर उन्हें भी कुछ हो गया तो क्या होगा?
घाटी में नागरिक आबादी के लिए 2019 साल बहुत मुश्किलों वाला रहा. इसी साल फरवरी में पुलवामा सीआरपीएफ के 40 जवान आत्मघाती कार हमले में शहीद हो गए. इसके बाद भारतीय वायुसेना ने पीओके में जाकर आतंकियों के ठिकानों को एयर स्ट्राइक में तबाह कर डाला.
स्थानीय प्रशासन और सेना, दोनों के अधिकारियों का कहना है कि नियंत्रण रेखा पर शांति काल जैसी कोई स्थिति नहीं है.
2019 में नियंत्रण रेखा पर सीजफायर उल्लंघन की घटनाएं दुगनी हो गई हैं. इनमें से आधी घटनाएं 5 अगस्त 2019 के बाद हुईं. बता दें कि 5 अगस्त को ही भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाया गया था. अब जम्मू और कश्मीर को राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में बदला जा चुका है.
इमरान ने आपबीती सुनाते हुए कहा, ‘मैं गोलाबारी में घायल हुआ. मेरे साथ दो और लोग थे. मेरे चाचा और एक दोस्त. जिस वक्त ये गोलाबारी हुई हम सड़क निर्माण के काम में लगे हुए थे. मेरी तरह और भी कई जीवन भर के लिए दिव्यांग हुए लेकिन मुझे या औरों को सरकार से बहुत कम मदद मिली. हमें अपना ध्यान खुद ही करना है. ना मैं स्कूल जा सकता हूं और ना ही काम कर सकता हूं.’
इमरान के चेहरे पर उस हमले की दहशत अब भी देखी जा सकती है. गोलाबारी में घायल होने के बाद से इमरान स्कूल नहीं जा सका है. उसका अधिकतर वक्त राजौरी में अस्पताल में ही बीता.
यहां छात्रों को भी हमेशा खौफ के साये में रहना पड़ता है क्योंकि पाकिस्तान की ओर से बढ़ाए गए तनाव की वजह से स्कूल भी इसकी जद में आने से बचे नहीं रहते. गांव में इमरान से छोटे भी कई बच्चे हैं जो अपने भविष्य को लेकर आशंकित दिखाई दिए.
10 वर्षीय शाबनाज़ कौसर ने कहा, “जब गोलाबारी चलती है तो स्कूल लंबे समय तक बंद रहता है. हमारे अभिभावक हमें बाहर नहीं निकलने देते.”
कई बच्चे अपना अनुभव बताते हुए झिझकते हैं. 7 वर्षीय मुस्तफ़ा सिर्फ सिर को हां या ना में हिलाकर किसी सवाल का जवाब देता है. बहुत ज़रूरी होने पर ही वो मुंह से कोई शब्द निकालता है.
सरकारी स्कूल के एक कोने में जर्जर सा ढांचा खड़ा है. ये अधूरा बना बंकर है. इसी के साथ ही बच्चों के खेलने का क्षेत्र है जहां झूले लगे हुए हैं.
एक और गांव में बच्चों के लिए सेना की ओर से स्कूल का संचालन किया जाता है. यहां भी बच्चों के लिए बंदूकों की तड़तड़ाहट और गोलाबारी के धमाके कोई नई बात नहीं रही है. लेकिन उनकी इच्छाएं भी वैसी ही हैं जैसे कि उनकी उम्र के किसी भी बच्चे की होती हैं जो देश के अन्य हिस्सों में रहते हैं.
यहां अधिकतर लड़कियां डॉक्टर या पत्रकार बनना चाहती हैं वहीं लड़के सेना में भर्ती होना चाहते हैं. सेना यहां बच्चों के लिए मॉक ड्रिल भी कराती है. इसमें अभ्यास किया जाता है कि गोलाबारी शुरू होने पर कैसे बच्चों को सुरक्षित बंकर में पहुंचाया जाए.
बारहवीं क्लास में पढने वाली आफिया नाज़ ने कहा, ‘गोलाबारी होने पर भी बंकर में हमारी क्लासेज जारी रहती हैं जिससे कि हमारी पढ़ाई प्रभावित ना हो.’ आफिया नाज़ खुद डॉक्टर बनना चाहती हैं. बंकर में एक वक्त में करीब 100 बच्चे गोलाबारी की स्थिति में भी सामान्य रूप से पढ़ सकते हैं.
इन सारी विषम परिस्थितियों से जूझते हुए भी ये बच्चे बड़े होकर कुछ बन कर दिखाना चाहते हैं. ये सभी राष्ट्र की सेवा करना चाहते हैं.
विकास के अभाव और यहां की आबादी के लिए रोजगार के सीमित अवसरों की वजह से परिवारों को अपना वजूद बचाए रखने का संकट दिख रहा है.
पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की कोशिशें लगातार जारी हैं. इसका पैटर्न हर जगह एक जैसा ही है. घुसपैठ की कोशिशों के वक्त ही नियंत्रण रेखा के पार से सीजफायर का उल्लंघन हुआ. उसी वक्त भारी गोलाबारी हुई.
नगरोटा में स्थित 16 कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल हर्ष गुप्ता ने कहा, “बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद पाकिस्तान की ओर से आतंकियों की घुसपैठ कराने की कोशिशों में तेजी आई. ऐसा ही अनुच्छेद 370 हटाने के बाद हुआ. अनुमानों के मुताबिक पीरपंजाल रेंज के दक्षिण में आतंकियों की संख्या बढकर 250 हो गई.”
आतंकियों के मूवमेंट और गतिविधियों को रोकने के लिए पूरी चौकसी बरती जा रही हैं. इसके लिए सर्विलांस सिस्टम और दिन-रात काम करने वाले कैमरों का सहारा लिया जाता है.
जो लोग एलओसी के पास स्थित गांवों में रहते हैं उनके लिए ज़िंदगी और भी मुश्किल है. उन्हें गोलाबारी की चपेट में आने का अधिक खतरा रहता है. ऐसे ही एक गांव में रहने वाले मोहम्मद आरिफ खान कहते हैं, बंकर बनाना सही योजना है लेकिन इसमें वक्त लगेगा. नियंत्रण रेखा के पास के गांवों में दिक्कत ये है कि बंकर बनाए भी जाते हैं तो वो फिर गोलाबारी में क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. खान कहते हैं कि बंकर और अधिक संख्या में बनाए जाने चाहिए.
एक और नागरिक मोहम्मद अकरम कहते हैं, “दिन हो या रात यहां हर पल युद्ध की स्थिति रहती है. सिविल सरकार से बहुत कम मदद मिल रही है और हम दुनिया से कटे हुए हैं.”
यहां अधिकतर लोग गुज्जर या बकरवाल समुदाय से आते हैं. जिनमें से अधिकतर चरवाहे हैं. उनकी भेड़ें और पशु गोलाबारी की चपेट में आते रहते हैं जिनसे उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है.
कश्मीर के ऊंचे क्षेत्र जहां बर्फ की चादर से ढके हुए हैं, नियंत्रण रेखा पार से फोकस पीरपंजाल रेंज के दक्षिण में शिफ्ट कर दिया गया है. नौशेरा, सुंदरबनी, कृष्णा घाटी, भिंबर गली, पुंछ जैसे क्षेत्रों में लगातार गोलाबारी और टकरावों की वजह से तनाव बना हुआ है.
भारतीय सेना नियंत्रण रेखा के पार संदिग्धों के मूवमेंट और संदिग्ध घरों पर बारीकी से नजर रखे हुए है. ऐसे संदिग्ध घरों की संख्या में इजाफा हुआ है.
16 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हर्ष गुप्ता ने इंडिया टुडे टीवी को बताया, ‘ऐसे कई नागरिक घर हैं जिनका लॉन्च पैड की तरह इस्तेमाल हो रहा है. हमें उसकी जानकारी है और हम उनकी पहचान कर चुके हैं. इनका इस्तेमाल पाकिस्तान घुसपैठ कराने के लिए कर रहा है. पाक अधिकृत कश्मीर के कुछ गांव बिल्कुल नियंत्रण रेखा के पास हैं. यहां कई घरों का इस्तेमाल पाकिस्तान डिफेंस कामों के लिए कर रहा है.’
जो वरिष्ठ सेना अधिकारी ने कहा वो ‘इंडिया टुडे’ ने खुद भी अग्रिम चौकियों पर जाकर देखा. अधिकारियों ने बताया, “एलओसी के पार गांवों में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई नागरिक मूवमेंट की आड़ में आतंकियों की घुसपैठ की फिराक में रहती हैं. इनमें से कई गांवों में पाकिस्तान के पूर्व सैनिकों को बसाया गया है जिससे कि वो घुसपैठ कराने में मदद कर सकें.”