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Saturday, December 27, 2025
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भोपाल मेमोरियल अस्पताल को मिली नई सफलता : BMHRC के डॉक्टर्स ने अपंग बच्चे को पैरों पर खड़ा किया

4-4.5 लाख रुपये का ईलाज प्रधानमंत्री जनारोग्य योजना से नि: शुल्क कर दिखाया

भोपाल। भोपाल में गैस पीड़ितों के लिए बनाए गए भोपाल मेमोरियल अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर (BMHRC) में डॉक्टर्स ने चमत्कार कर दिखाया है। लगभग अपंग हो चुके बच्चे को डॉक्टर्स ने आपरेशन करके स्वस्थ्य कर दिया है। बताया जाता है कि सिलवानी में रहने वाला 11 वर्ष का एक बच्चा साइकिल चलाते हुए गिर गया था। इस वजह से उसकी गर्दन और सिर के बीच की हड्डी अपने स्थान से हट गई और इसने स्पाइनल कॉर्ड को दबा दिया। वह इस वजह से लगभग अपंग हो गया था। उसके हाथ और पैर दोनों ने काम करना बंद कर दिया था। वह अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। उसे अपने हर कार्य के लिए घर के सदस्यों पर निर्भर रहना पड़ता था। इस बच्चे का बीएमएचआरसी के न्यूरो सर्जरी विभाग में दो चरणों में सफल ऑपरेशन हुआ है। बच्चा अब पहले से काफी बेहतर है और अपने पैरों पर चलने लगा है। डॉक्टरों का कहना है कि बच्चा अगले 6 महीने में पूरी तरह ठीक हो जाएगा।

जटिल कार्य को सफलतापूर्वक किया : डॉ. मनीषा श्रीवास्तव

Dr. Manisha Shrivastava Director BMHRC Bhoapl


बीएमएचआरसी भोपाल की प्रभारी निदेशक डॉ मनीषा श्रीवास्तव ने बताया कि न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने एक बेहद मुश्किल कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। मरीज की उम्र और उसकी स्थिति के मद्देनजर यह काफी जटिल सर्जरी थी। खुशी की बात है कि बच्चे की हालत में सुधार हो रहा है और वह जल्द ही सामान्य जीवन व्यतीत कर पाएगा। ​मध्य प्रदेश के चुंनिंदा निजी अस्पतालों में ही ऐसा ईलाज होता है। वहां भी सर्जरी पर 4—4.5 लाख रुपये का खर्च आता है, लेकिन बीएमएचआरसी में प्रधानमंत्री जनारोग्य योजना से मरीज की निशुल्क सर्जरी की गई।

निराश आए थे, आशा के साथ जा रहे : डॉ. संदीप सोरते

Dr. Sandeep Sorte, BMHRC Bhoapl

बीएमएचआरसी के न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. संदीप सोरते ने बताया कि बच्चे के माता—पिता कई अस्पतालों से निराश होने के बाद बीएमएचआरसी आए थे। सीटी स्कैन और एमआरआई जांच करने के बाद बच्चे का दो चरणों में ऑपरेशन करने का फैसला किया गया। पहले चरण में स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव बना रही एक हड्डी को मुंह के रास्ते से सर्जरी कर काटा गया। इस पूरे ऑपरेशन में करीब 3—4 घंटे का समय लगा।

7-8 घंटे में सफल ईलाज : डॉ. सौरभ दीक्षित

Dr. Sourabh Dixit, BMHRC Bhoapl

न्यूरो सर्जरी विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. सौरभ दीक्षित ने बताया कि कुछ दिन बाद दूसरा चरण किया गया। इस चरण में गर्दन के पीछे की हड्डी को काटकर बाकी हड्डी को स्क्रू और रॉड से जोड़ा गया। इस तरह पूरी नस स्पाइनल कॉर्ड पर पड़ रहे दबाव को हटाया गया। इस चरण में कुल 7—8 घंटे का समय लगा। ऑपरेशन के बाद मरीज की फिजियोथेरेपी शुरू की गई।

फिजियोथेरेपी से हुआ सुधार : डॉ. नेहल शाह

Dr. Nehal Shah, BMHRC Bhoapl

बीएमएचआरसी के फिजियोथेरेपी विभाग में फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. नेहल शाह ने बताया कि ऑपरेशन से पहले मरीज की मांसपेशियों में कोई ताकत नहीं थी, जिसके लिए उसे हाथ पैरों के कुछ व्यायाम करवाए गए। सांस के लिए भी कसरत बताई गई। ऑपरेशन के बाद जैसे-जैसे मांसपेशियों ने काम करना शुरू किया, उसे कुछ और व्यायाम करने के तरीके सिखाए गए एवं व्हील चेयर पर घुमाया गया। फिर जैसे ही पैरों में और ताकत बढ़ी तो उसे डायनेमिक फुट-ड्रॉप स्प्लिंट लगा कर चलाया गया एवं डिस्चार्ज के समय घर के लिए भी व्यायाम सिखाया गया। फिजियोथेरेपी के कुछ दिन बाद अब उसकी हालत में धीरे—धीरे सुधार हो रहा है।

डॉ दीक्षित ने बताया कि मरीज का एक बार में ऑपरेशन करना मुमकिन नहीं था, क्योंकि एक बार स्पाइन कार्ड पर दबाव बनाने वाली हड्डी को एक बार आगे से काटना था और एक बार पीछे से। बच्चे की उम्र कम थी, इसलिए उसे कितने समय तक बेहोश करके रखना है, इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी था।

बीएमएचआरसी के निश्चेतना विभाग में प्रोफेसर डॉ सारिका कटियार ने बताया कि ऑपरेशन के लिए मरीज को जनरल एनेस्थीशिया देना होता है। मरीज को बेहोश करने व कत्रिम सांस देने के लिए एक ट्यूब को मुंह से फेफड़ों तक पहुंचाया जाता है। चूंकि मरीज की स्पाइनल कॉर्ड गर्दन की हड्डी से दबी हुई थी, इसलिए ट्यूब को अंदर तक पहुंचाना बहुत रिस्की था। सर्जरी के बाद इस ट्यूब को बाहर निकालना भी उतना ही मुश्किल होता है। अगर थोड़ी भी गड़बड़ होती है, तो मरीज पैरालिसिस का शिकार हो सकता है। ऑपरेशन के दौरान ऐसे मरीजों की हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर बढ़ता—घटता रहता है, इसे मेंटेन करना बहुत मुश्क़िल होता है। डॉ संदीप सोरते ने बताया कि सिर और गर्दन का जोड़ काफी नाजुक होता है। इसके आसापास खून की बड़ी और प्रमुख धमनियां होती हैं, इसलिए ऑपरेशन करने में अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती है। ऑपरेशन के दौरान अधिक ब्लीडिंग होने का खतरा भी होता है। ऑपरेशन के बाद मरीज के लंबे समय तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर चले जाने की आशंका होती है।

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