Monday, February 10, 2025
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फिर खेला गया खूनी खेल , सैकड़ो हुए घायल- लाख कोशिशों के बाद भी नही मानते लोग..

एक ऐसी खूनी परंपरा जिसने आजतक कई जाने ले लीं न जाने कितनों को घायल किया और कई कोशिशों के बाद आज भी यह खूनी परंपरा जारी है । जी हाँ हम बात कर रहे हैं पांढुर्ना ज़िले के पत्थरों से खेले जाने वाले गोटमार मेले की जिसने आजतक न जाने कितनी जाने ले ली. न जाने कितने लोग घायल हो गए और न जाने कितने लोग आज तक पत्थरो के ज़ख्म लिए घूम रहे हैं । 2023 तक पांढुर्ना में खेला जाने वाला यह खूनी खेल छिंदवाड़ा ज़िले की परंपरा के रूप में जाना जाता था । परंतु पांढुर्ना के ज़िला बन ने के बाद यह अब पांढुर्ना का एतेहसिक खेल कहलाय जाने लगा है ।- और इस साल भी यह खूनी परंपरा जारी रही इस वर्ष इस खूनी खेल में सरकारी आंकड़े के हिसाब से 200 से ज़्यादा लोगों घायल हुए वहीं अनऑफिशियल 600 के आसपास घायल बताए जा रहे हैं और 17 लोग गंभीर रूप से घायल हुए जिन्हें उपचार हेतु नागपुर रेफर किया गया ।

यह अंधविश्वासी परंपरा सैकड़ो सालों से निरंतर जारी है । इस परंपरा को रोकने प्राशासनिक स्तर और सामाजिक स्तर पर भी अनेकों प्रयास किए जाते हैं शांति समीति की बैठक बुलाई जाती है । यहाँ तक के अंधविश्वास के खिलाफ काम करने वाले संस्थान भी इस परंपरा से लोगों को बाहर निकालने ले लिए काम कर चुके हैं लेकिन नतीजा सिफर है । इस खूनी परंपरा पर पांढुर्ना और सांवरगांव वासियों का मानना है के अगर यह खूनी खेल नही खेला जाएगा तो अपशगुन होगा । यहाँ तक के पांढुर्ना के राजनेता वोट बैंक की राजनीति के लिए इस परंपरा पर बोलने से भी कतराते हैं ।- कब और कहां खेला जाता है गोटमार – पोला पर्व के दूसरे दिन पांढुर्ना और सांवरगांव के बीच जाम नदी के पुल पर यह खूनी खेल खेला जाता है जो गोटमार के नाम से प्रसिद्ध हैं ।

सैकड़ों सालों से पांढुर्ना और संवारगांव के बीच जाम नदी में बीचों-बीच चंडी माई के मंदिर में पूजा के बाद झंडा लगाया जाता है और पत्थर बाज़ी के बीच जो झंडा निकलने में कामयाब होता है वो गांव विजय होता है ।- लोग यह खूनी खेल पत्थरों से न खेलें उसके लिए प्रशासन द्वारा टेनिस बॉल की व्यवस्था भी कराई जाती है लेकिन इसके बावजूद परंपरा में अंधे लोग पत्थरों से ही इस खूनी खेल को खेलते हैं और एक दूसरे का खून बहाते हैं । – शराब का भी होता है जमकर सेवन . यूँ तो गोटमार के एक दिन पहले से शराब दुकानें बंद कर दी जाती हैं लेकिन उसके बावजूद लोग जमकर शराब का सेवन करते हैं और नशे में एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं । –

खेल के पीछे क्या है मान्यता –

इस खेल के पीछे 2 कहानियां हैं – एक कहानी प्रेम प्रसंग से जुड़ी हुई है जिसमे पांढुर्ना का युवक और संवारगांव की युवती के बीच प्रेम था और युवक युवती को संवारगांव से भगा कर पांढुर्ना ला रहा था तभी अचानक संवारगांव के लोगों ने देखा और पत्थर बरसाना शुरू लर दिए जिसमे जवाबी कार्यवाही में पांढुर्ना से भी पत्थर चले और पत्थरों की चोट से प्रेमी युगल की मौत हो गई । और फिर यह खेल एक परंपरा बन गया जो आज तक खूनी खेल के रूप निभाया जा रहा है । और झंडे को युवक युवती का प्रतीक मानते हुए पत्थर बाज़ी के बीच नदी में उतरकर झंडा निकलने की प्रतियोगिता होती है ।-

वहीं दूसरी कहानी के अनुसार भोंसले राजा की सेना पांढुर्ना में रहती थी और जाम नदी पर युद्धाभ्यास करती थी जिसमें झंडा बांधा जाता था और सेना दो टुकड़ों में बंट कर पत्थर बाज़ी के बीच झंडा निकालती थी । हालांकि इन दोनों कहानियों में ज़्यादा प्रसिद्ध प्रेमी युगल की दास्तान है । तमाम अंधविश्वास जागरूक संस्थाए इस पर काम कर चुकी हैं के पांढुर्ना के लोग इस खेल से बाज़ आ जाएं यहाँ तक के टेनिस बॉल भी प्रशासन के बार उपलब्ध कराकर देख चुका है लेकिन बावजूद इसके लोग इस खूनी परंपरा को निभाए बिना नही मानते ।

बाईट – पांढुर्ना कलेक्टर , अभय देव सिंह

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