सियासी पड़ताल / धीरज चतुर्वेदी
सियासी गलियारों में कान पक गये कि अब मंत्रिमंडल विस्तार होगा। कब होगा यह कोई नहीं जानता. हालात ऐसे हैं कि मंत्रिमंडल का झुनझुना बजाना शिव सरकार कि मज़बूरी हैं। राजनैतिक कोरोना आपदा का दौर हैं तो अनार कम हैं ओर बीमार कि गिनती नहीं हैं। इसी दम पर राजयसभा चुनाव में दो सीटों पर बीजेपी का कब्ज़ा हो गया ओर शायद इसे बजाते हुए ही वो उपचुनाव कि जंग भी लड़ी जाएगी जिसके नतीजे शिव सरकार का भविष्य तय करने वाले हैं।
मंत्रीमण्डल विस्तार का गीत फिर गाया गया। राजनैतिक समझदार मंत्रिमंडल के विस्तार को भी सरकार के भविष्य का पहला मोड़ बताते हैं। अगर सिंधिया टीम ना होती तो संभव था, लेकिन अगर यह टीम कांग्रेस को अंगूठा नहीं दिखाती तो बीजेपी कि सरकार ही नहीं बनती। असल में तो पेंच भी कई हैं। बीजेपी में ताकत का नया खेमा बने सिंधिया को भी सेल्यूट मारना शिवराज कि मज़बूरी हैं तो दूसरी ओर सरकार का ओर राजयसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में ठप्पा लगाने वालो को साधना भी मज़बूरी हैं।
बसपा, सपा ओर निर्दलीय भी मंत्री पद कि ओर मुँहबाय तक रहे हैं। यह बीजेपी का नया गुट हैं जिसकी संख्या का गणित भी सरकार को डावांडोल कर सकता हैं। जैसे बसपा से निष्कासित रामबाई, जिन्होंने सौदेबाजी के कारण ही हाथ को छिटक बीजेपी पर लाड़ आया। वह तो खुलमखुल्ला कह रही हैं कि बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने उन्हें मंत्री बनाने का आश्वासन दिया हैं।
सपा से निष्कासित बिजावर क्षेत्र विधायक राजेश शुक्ला कि भी मंत्री बनने कि लालसा को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। निर्दलीय सुरेंद्र सिंह शेरा तो कांग्रेस फिर बागी होकर बीजेपी ओर फिर कांग्रेस व अंत में फिर बीजेपी में कि गई उछलकूद का कारण ही मंत्री बनने का ख्वाब हैं। कांग्रेस सरकार कि उठापटक के समय अगर कमलनाथ सरकार बचती तो सुरेंद्र सिंह ने खुद को गृह मंत्री घोषित ही कर दिया था। सुरेन्द्र सिंह कि डिमांड की खासियत हैं कि उन्हें मंत्री पद भी चाहिए वो भी उनके पसंद का पोर्टफोलियो होना चाहिये।
कहते हैं खाली हाथ आया हैं ओर खाली हाथ जायेगा पर सियासत में हाथ भर जाने पर ही आता हैं ओर तभी दूसरे दल में उछाल मारता हैं जब वहां भी झोली भर जाती हो। सियासत का यही तमाशा इन दिनों बीजेपी के भीतर चल रहा हैं। कांग्रेस के बागियों का बीजेपी से उमड़ा प्यार हो या सपा-बसपा-निर्दलीय हो, सभी अंतहीन इच्छाओ का आराध्य बीजेपी को मान चुके हैं। कांग्रेस के बागी अगर उपचुनाव में फतह करते हैं तो दो क्रिकेट टीम के बराबर विधायकों कि नई पौध भी मंत्री पद कि दौड़ में होंगी। साथ ही अभी शिव सरकार को समर्थन देने वाले अन्य दलों का कोई दिलीय प्रेम बीजेपी के प्रति नहीं हैं, बल्कि वो भी शर्तो का पताका लहराये हैं।
बीजेपी के साथ उलझन हैं कि अगर मंत्री पद कि मलाई से भरी थाली सभी बहारियो को परोस दी जाएगी तो विचारधारा को लेकर वर्षो से तप कर रहे बीजेपी का असल कैडर क्या खामोश बना रहेगा। बीजेपी के मूल कैडर के सीनियर विधायकों कि लम्बी सूची हैं। जिनका मंत्री बनने का दावा भी हैं ओर उनका हक़ भी बनता हैं। जैसे गोपाल भार्गव, राजेन्द्र शुकला बढ़े ब्राह्मण चेहरे हैं जिन्हे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। राजेंद्र शुक्ला कि दावेदारी पर उन्ही के विंध्याचल के सीधी से विधायक केदार शुक्ला ने पेंच फंसा दिया हैं.। केदार शुक्ला ने तो ऐलान कर दिया हैं कि ” में मंत्री बनूँगा ‘। मुख्य हैं कि केदार शुक्ला अपने बागी तेवर दिखाते रहे हैं। जिन्हे नज़रअंदाज़ किया गया तो कांग्रेस कि तरह बीजेपी को आइना देखना पढ़ सकता हैं।
ऑपरेशन लोटस के मुख्य किरदार पूँजीपति विधायक संजय पाठक, भूपेंद्र सिंह, अरविन्द भदौरिया को मंत्री पद से नवाजना बीजेपी कि मज़बूरी हैं। अन्य दावेदारों में गौरीशंकर बिसेन, विजय शाह, रामपाल सिंह, यशोधरा राजे सिंधिया, विश्वास सारंग, अजय विश्नोई, पारस जैन, महेंद्र हार्डिया, ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह, गोपीलाल जाटव वो चेहरे हैं जो शिव सरकार के पूर्व कार्यकाल में उनकी मंत्री परिषद का हिस्सा रहे हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण को भी उपकृत करना होगा।
नये चेहरों में रमेश मैंदोला, राजेंद्र पांडे, प्रदीप लारिया, यशपाल सिंह सिसोदिया, ओमप्रकाश सखलेचा सहित अन्य आधा दर्जन अन्य वो विधायक हैं जो कई बार चुनाव जितने के बाद भी मंत्री पद हासिल नहीं कर सके। इस बार यह भी टकटकी लगाये बैठे हैं। महिला दावेदारों में उषा ठाकुर, नीना वर्मा, मालिनी गोड को भी उम्मीद हैं कि इस बार उनका नंबर आएगा। कहते हैं संकट आने का क्रम भी अनवरत होता हैं। समस्याएं चारो ओर से घेरा बनाती हैं। बीजेपी भी इन संकटो के चक्रव्यूह में फंसी हैं। बीजेपी में कई क्षत्रप हैं जो मप्र के हर हिस्से में अपना अपना दम रखते हैं। इन ताकतवर खेमो को साधने ओर मनाने के लिये उनके समर्थित विधायकों को मंत्री परिषद का हिस्सा बनाना वो चुनौती हैं जिससे उबरना ओर निबटना आसान नहीं हैं। इसी पेशोपेश में मंत्री मण्डल का गठन उलझ रह गया हैं। तभी झुनझुना बज रहा हैं ओर मंत्री पद के दावेदार ख़ुश हैं कि उनका नंबर आएगा।