Covid-19: कोरोना महामारी ने आज से तीन साल पहले जो तबाही मचाई थी, उसे शायद आप भूले नहीं होंगे. उस दौर में अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन को बताया था कि इस बात की बहुत ज्यादा संभावना है कि कोविड-19 वायरस चीन की वुहान लैब से फैला है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने उस दौरान फाइव आई इंटेलिजेंस शेयरिंग नेटवर्क बनाया था. जनवरी 2021 में इन फाइव आइज देशों की बैठक इस बात पर चर्चा करने के लिए बुलाई गई थी कि क्या कोविड चीनी लैब से लीक हुआ है या नहीं.
अमेरिका ने पेश किए थे सबूत
द टेलीग्राफ के मुताबिक, उस महीने एक फोन कॉल पर ट्रम्प प्रशासन में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन के मंत्रिमंडल में ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश सचिव डोमिनिक राब के अलावा कनाडा, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के प्रतिनिधियों को भी लैब से कोविड वायरस लीक होने के सबूत पेश किए थे.
पोम्पिओ ने कथित तौर पर कोविड महामारी के शुरुआती दिनों में विदेश विभाग की तरफ से जमा क्लासीफाइड अमेरिकी खुफिया रिपोर्टों का हवाला दिया था. द टेलीग्राफ के मुताबिक पोम्पियो ने कहा, ‘हमें कुछ सूचनाएं मिली हैं और सच कहूं तो वह लोटपोट कर देने वाला है. इस बात की बहुत ज्यादा संभावना है कि कोविड-19 वुहान लैब से ही लीक हुआ है. ‘
‘क्या चीन कुछ छिपा रहा है’
इससे पहले रिपोर्ट्स आई थीं कि चीन के मिलिट्री अधिकारियों ने कई साल तक वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के साथ मिलकर काम किया, जिसके कारण कोविड-19 महामारी फैली. इतना ही नहीं वुहान लैब के कुछ शोधकर्ता पहला केस आने से पहले ही बीमार पड़ गए थे. जानकारी के मुताबिक, कुछ वैज्ञानिकों ने वायरस की ताकत बढ़ाने के लिए भी लैब में रिसर्च की थी, जिसे लैब लीक थ्योरी में एक अहम सबूत के तौर पर देखा जा रहा है. चीन पर लैब लीक थ्योरी को लेकर WHO की जांच में रुकावट डालने का आरोप लगाया गया है, जो पहले से ही वैज्ञानिकों और सरकारों के बीच एक डिबेट का विषय है.
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