Friday, April 26, 2024
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Bihar Assembly Elections 2020 rift between grand alliance Sharad Yadav Tejashwi Yadav

खास बातें

  1. बिहार में इस साल के अंत में होंगे विधानसभा चुनाव
  2. शरद यादव की अगुवाई में चुनाव लड़ने की मांग
  3. JDU, BJP और LJP मिलकर लड़ेंगी चुनाव

पटना:

बिहार में सत्तारूढ़ नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व वाले एनडीए (NDA) के खिलाफ महागठबंधन में दो फाड़ हो गए हैं. एक का नेतृत्व राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) कर रहे हैं और दूसरे का नेता फिलहाल चुना जाना बाकी है. बीते शुक्रवार शरद यादव (Sharad Yadav) के पटना आने पर इसको लेकर एक बैठक हुई, जिसमें उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha), पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) और मुकेश निषाद (Mukesh Nishad) शामिल हुए.

इस गुट के कुछ नेताओं ने शरद यादव के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने की भी मांग की. फिलहाल साफ है कि लोकसभा चुनाव के बाद RJD नेतृत्व से ज्यादा तवज्जो ना मिलने के कारण इन नेताओं के पास अब अपना रास्ता ढूंढने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा. वहीं RJD का कहना है कि इन नेताओं से बातचीत एक सीमा से ज्यादा संभव इसलिए भी नहीं है कि सब मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं और सीटों की संख्या की मांग उनके पार्टी में मौजूद नेताओं से कहीं अधिक होती हैं. फिलहाल RJD सुप्रीमो की तरफ से इस बात का कोई संकेत नहीं मिला है कि विधानसभा चुनाव में इन लोगों को साथ रखना हैं या नहीं.

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शुक्रवार को हुई बैठक के बाद शरद यादव को अधिकृत किया गया कि वो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) से मिलकर समन्वय समिति और सीटों के बंटवारे पर बातचीत करें. शरद यादव शनिवार को रांची में लालू यादव से मुलाकात कर सकते हैं. हालांकि इस बैठक से कांग्रेस पार्टी के बिहार नेतृत्व ने अपने आप को अलग रखा लेकिन माना जा रहा हैं कि कांग्रेस फिलहाल लालू यादव के साथ अपनी सीटों का मामला सुलझाएगा ना कि इन दलों के फेर में फंसेगा.

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वहीं RJD नेताओं का कहना है कि फिलहाल इन दलों के नेताओं को बिना किसी शर्त के तेजस्वी यादव को नेता मानना होगा, हालांकि लोकसभा चुनाव के पूर्व इन्होंने इस बात पर सार्वजनिक सहमति दी थी लेकिन इस चुनाव में करारी हार के बाद मुकर गए. इसके बाद उपचुनाव में भी RJD ने अपना तालमेल केवल कांग्रेस पार्टी से रखा था. RJD के एक तबके का मानना है कि अगर ये पार्टियां अलग-अलग चुनाव मैदान में जाती हैं तो उसका उन्हें बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होगा.

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